कब होगी आरबीआई द्वारा ब्याज दरों में कटौती? स्विस ब्रोकरेज फर्म की रिपोर्ट में मिली जानकारी

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अमेरिका में नीतिगत ब्याज दरों में कटौती के बाद भारत में भी ब्याज दरों में कटौती की उम्मीदें तेज हो गई हैं. देश की अर्थव्यवस्था, मुद्रास्फीति, और वैश्विक वित्तीय हालातों को देखते हुए विशेषज्ञ मान रहे हैं कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) जल्द ही रेपो रेट में कटौती कर सकता है. हालांकि, स्विस ब्रोकरेज फर्म यूबीएस (UBS) ने अपनी हालिया रिपोर्ट में इस उम्मीद पर समयरेखा साझा की है और बताया है कि आरबीआई की अगली मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक में कोई कटौती की संभावना नहीं है.

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दिसंबर में हो सकती है पहली कटौती

यूबीएस का मानना है कि अगले महीने होने वाली आरबीआई की एमपीसी बैठक में रेपो रेट में किसी प्रकार की कटौती की उम्मीद नहीं है. हालांकि, फर्म का कहना है कि दिसंबर 2024 में होने वाली बैठक में कुछ राहत मिल सकती है. रिपोर्ट के अनुसार, चालू वित्तीय वर्ष के दौरान आरबीआई रेपो रेट में 0.75 प्रतिशत तक की कटौती कर सकता है. इसकी मुख्य वजह कम होती खाद्य मुद्रास्फीति और बेहतर मानसून मानी जा रही है.

खपत वृद्धि में इजाफा

यूबीएस ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान भारत की खपत वृद्धि में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हो सकती है. यह खपत वृद्धि वित्त वर्ष 2023-24 के 4 प्रतिशत से बढ़कर 6 प्रतिशत से अधिक होने की संभावना है. इसके अलावा, रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि देश में के-आकार के खपत पैटर्न (K-shaped consumption pattern) में गिरावट आ सकती है, जिसका अर्थ है कि उच्च आय वाले और निम्न आय वाले समूहों के बीच खर्च करने की क्षमता में अंतर कम हो सकता है.

जीडीपी वृद्धि पर यूबीएस का आकलन

जहां भारतीय रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष के लिए 7.2 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि का अनुमान जताया है, वहीं यूबीएस का मानना है कि यह आंकड़ा 6.5-7 प्रतिशत के बीच ही रह सकता है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जिन राज्यों में आगामी महीनों में चुनाव होने हैं, उनकी फिजूलखर्ची पर नजर रखी जानी चाहिए. चुनावी राज्यों में बढ़ते खर्च को देखते हुए आर्थिक विकास और राजकोषीय घाटे पर प्रभाव पड़ सकता है.

चुनावी राज्यों में खर्च बढ़ने का खतरा

यूबीएस ने अपनी रिपोर्ट में इस बात पर भी जोर दिया है कि चुनावी राज्यों में बढ़ते खर्च की वजह से आगामी वर्षों में पूंजीगत व्यय पर असर पड़ सकता है. रिपोर्ट के अनुसार, देश के 11 राज्यों में या तो चुनाव हो चुके हैं या जल्द ही होने वाले हैं. इनमें से महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान और ओडिशा जैसे चार राज्यों ने अपने राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को बढ़ा दिया है.

यूबीएस का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में राज्यों ने 15वें वित्त आयोग द्वारा निर्धारित 3 प्रतिशत राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को नियंत्रित करने में सफलता पाई है. हालांकि, मौजूदा हालात में चुनावी राज्य अपने कल्याणकारी योजनाओं और प्रोत्साहनों पर खर्च बढ़ा रहे हैं, जिसके चलते चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे में 0.20 प्रतिशत की वृद्धि होने की संभावना है.

महाराष्ट्र सरकार का नया ऐलान

महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार ने महिलाओं के खातों में प्रत्येक महीने 1,500 रुपये जमा करने का एलान किया है. इस योजना से राज्य के खजाने पर सालाना 35,000 करोड़ रुपये से अधिक का खर्च आने का अनुमान है. इसी तरह की कई योजनाएं चुनावी राज्यों में देखने को मिल रही हैं, जो राजकोषीय घाटे को और बढ़ा सकती हैं.

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An Indian pedestrian walks out of The Reserve Bank of India (RBI) building in Mumbai on April 29, 2008. India’s central bank held key interest rates steady but hiked the percentage of cash banks must hold in reserve to 8.25 percent to curb inflation riding at over three-year highs.It was the second time the Reserve Bank of India had announced an increase in the cash reserve ratio (CRR) in two weeks as it seeks to suck out excess liquidity in the banking system and fight inflation now at 7.33 percent. AFP PHOTO Sajjad HUSSAIN

निष्कर्ष

स्विस ब्रोकरेज फर्म यूबीएस की रिपोर्ट के मुताबिक, अगले महीने होने वाली आरबीआई की बैठक में रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं होगा. हालांकि, दिसंबर में होने वाली बैठक में राहत मिलने की संभावना है. साथ ही, चुनावी राज्यों में बढ़ते खर्च पर कड़ी नजर रखने की जरूरत है ताकि देश की आर्थिक स्थिरता बनी रहे.

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