छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में कुछ समय पहले एक बिस्तर जिले के रहने वाले एक व्यक्ति ने याचिका दायर की थी जिसमें उसने अपनी मां के पार्थिव शरीर को उनकी ही निजी जमीन में दफनाने के लिए कोर्ट से इजाजत मांगी थी. कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि हर व्यक्ति को अपने धर्म के अनुसार अपनी मां का अंतिम संस्कार अपने खुद के रीति रिवाज के द्वारा करने का पूरा अधिकार रखता है.
छत्तीसगढ़ के एक जिले बस्तर से एक मामला सामने आया है जिसमें एक व्यक्ति ने हाई कोर्ट में अपनी मां के पार्थिव शरीर को उनकी ही निजी जमीन पर दफनाने के लिए याचिका दाहिर की थी जिस पर हाई कोर्ट ने मंजूरी दे दी है. और साथ ही हाई कोर्ट द्वारा पुलिस को यह आदेश दिए गए हैं कि जब तक उसे महिला का शव उसकी ही जमीन पर दफन नहीं कर दिया जाता तब तक उसके परिवार को पुलिस प्रशासन की ओर से सुरक्षा दी जाए.
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने इस फैसले को पुलिस अध्यक्ष, चिकित्सा महाविद्यालय जगदलपुर, और राज्य सरकार को इस याचिका के आदेश की जानकारी देने के लिए उप-माधिवक्ता प्रवीण दास से कहा है. अधिवक्ता प्रवीण तुलस्यान के द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार कोर्ट में न्यायाधीश ‘पार्थ प्रतीम साहू’ ने कहा कि हर व्यक्ति को संविधान के अनुसार सभ्य और ढंग से जीवन जीने का अधिकार है. इस पर पहले से ही कानून बना हुआ है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार मनुष्य अपने अनुसार सार्थक जीवन जी सकता है और यह बात मरे हुए व्यक्ति पर भी लागू होती है.
याचिका दायर क्यों करनी पड़ी?
अधिवक्ता के द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार छत्तीसगढ़ के बिस्तर जिले के एक गांव एर्राकोट के रहने वाले रामलाल कश्यप ने यह याचिका हाईकोर्ट में दायर की है. बताया जा रहा है कि उसकी मां की मृत्यु 28 जून को हो चुकी है इसके बाद वह अपने ईसाई धर्म के अनुसार अपनी मां के सबको अपनी ही निजी जमीन पर दफना चाहते हैं. लेकिन ऐसा करने से परपा थाने की पुलिस द्वारा उन्हें रोक दिया गया. और उसे अपनी मां के शब्द को 15 किलोमीटर दूर एक गांव कोरकपाल में बने एक अलग कब्रिस्तान में जाकर दफन करने के लिए कहा. इसके बाद व्यक्ति ने हाई कोर्ट में अपनी रीति-रिवाज के अनुसार संस्कार करने के लिए याचिका दाहिर कर दी. जगदलपुर के चिकित्सा महाविद्यालय में उसे व्यक्ति की मां के शव को रखा गया है.