Dusshera 2024
दशहरा भारत का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसे हर साल बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. इस त्योहार का मुख्य उद्देश्य बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. रावण का पुतला जलाकर यह संदेश दिया जाता है कि बुराई चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हो, अंततः सत्य और धर्म की विजय होती है. लेकिन क्या वास्तव में रावण के 10 सिर थे? इस प्रश्न का उत्तर पौराणिक कथाओं और प्रतीकों में छिपा है.
रावण, लंका के राजा और महाशक्तिशाली योद्धा, रामायण के मुख्य खलनायक माने जाते हैं. पौराणिक कथा के अनुसार, रावण के दस सिर थे। लेकिन यह सिर्फ एक प्रतीकात्मक रूप में देखा जाना चाहिए. रावण के दस सिर उसके दस मुख्य अवगुणों का प्रतीक हैं. ये अवगुण हैं:
काम (वासनात्मक इच्छा) – यह अवगुण व्यक्ति को अनैतिक और अनुचित कार्य करने के लिए प्रेरित करता है.
क्रोध – क्रोध व्यक्ति को मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर बनाता है.
लोभ (लालच) – लालच व्यक्ति को अपनी सीमाओं से बाहर जाकर गलत कार्य करने के लिए प्रेरित करता है.
मोह (मोह-माया) – मोह व्यक्ति को सत्य और धर्म से भटका देता है.
अहंकार (घमंड) – अहंकार व्यक्ति को अंधा कर देता है और उसे सही और गलत का अंतर समझ नहीं आता.
मत्सर (ईर्ष्या) – ईर्ष्या व्यक्ति को दूसरों के सुख-शांति को देखकर दुखी करती है.
अज्ञान (ज्ञान की कमी)-अज्ञान व्यक्ति को सत्य और असत्य में भेद करने से रोकता है.
गुरु-द्रोह (अवज्ञा) – यह व्यक्ति को अपने गुरु और बड़े-बुजुर्गों का अनादर करने के लिए प्रेरित करता है.
धर्म-अवज्ञा (धर्म का अपमान) – यह व्यक्ति को धार्मिक मार्ग से भटका देता है.
असंयम (संयम की कमी) – असंयम व्यक्ति को अपने आचरण और व्यवहार में अनियंत्रित बना देता है.
रावण के इन दस अवगुणों ने उसे बुराई का प्रतीक बना दिया. दशहरा पर रावण का पुतला जलाना इस बात का प्रतीक है कि हमें अपने भीतर के इन अवगुणों को समाप्त करना चाहिए और सत्य, धर्म, और अच्छाई के मार्ग पर चलना चाहिए.