सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने सोमवार को कहा कि शादी अगर टूटने की कगार पर है तो वह अपनी तरफ से तलाक का आदेश दे सकती है। पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत मिली विशेष शक्ति का इस्तेमाल कर अदालत यह आदेश दे सकती है। आपसी सहमति से तलाक के लिए लागू 6 महीने इंतज़ार की कानूनी बाध्यता भी ऐसी स्थिति में ज़रूरी नहीं होगी. सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संविधान पीठ ने यह फैसला दिया है।
क्या था मामला।
2014 में ऐसा ही एक मामला आया, इसका केस टाइटल था- ‘शिल्पा शैलेश बनाम वरुण श्रीनिवासन’. इस मामले को सुनते हुए 2 जजों की बेंच ने सुप्रीम कोर्ट की शक्ति पर विचार करना जरूरी माना. यह देखने की ज़रूरत समझी कि क्या तलाक के मामलों में भी सुप्रीम कोर्ट को विशेष शक्ति का इस्तेमाल करना चाहिए और क्या शादी को जारी रखना असंभव होना भी इसके इस्तेमाल का आधार हो सकता है?
2016 में यह मामला 5 जजों की संविधान पीठ को भेज दिया गया. सितंबर 2022 में जस्टिस संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, ए एस ओका, विक्रम नाथ और जे के माहेश्वरी ने इस मामले को सुना और अब बेंच का फैसला आया है. जजों ने यह माना है कि अनुच्छेद 142 की व्यवस्था संविधान में इसलिए की गई है, ताकि लोगों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट आदेश दे सके।
अनुच्छेद 142 के तहत विशेष शक्तियों का प्रयोग।
अनुच्छेद 142 के तहत अपनी विशेष शक्तियों का प्रयोग करते हुए सुप्रीम कोर्ट द्वारा इसे माफ किया जा सकता है। जिससे तलाक हासिल करने के लिए लंबी न्यायिक कार्यवाही के लिए फैमिलि कोर्ट गए बगैर सहमति वाले ऐसे जोड़ों के बीच जिनमें रिश्तों में सुधार की गुंजाइश नहीं बची हो, तलाक को मंजूरी देनी चाहिए. हालांकि सुनवाई के दौरान संविधान पीठ ने इस मुद्दे पर विचार करने का फैसला लिया कि क्या विवाहों को निश्चित तौर पर टूटने के आधार पर खत्म किया जा सकता है।
6 महीने की कानूनी बाध्यता ज़रूरी नहीं।
बेंच की तरफ से फैसला पढ़ते हुए जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि जब शादी को जारी रखना असंभव हो, तब सुप्रीम कोर्ट सीधे भी तलाक आदेश दे सकता है. आपसी सहमति से तलाक के मामले में जरूरी 6 महीने के इंतजार का कानूनी प्रावधान भी इस तरह के मामलों में लागू नहीं होगा।