Independence Day 2024:
Independence Day 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वतंत्रता दिवस पर लगातार 11वीं बार लाल किले पर तिरंगा फहराएंगे। इस उपलब्धि के बाद वे पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से आगे निकल जाएंगे,जिन्होंने लगातार 10 बार ऐसा किया था।15 अगस्त 1947 को पहली बार देश के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने लाल किले से तिरंगा झंडा फहराया था, तब से लेकर आज तक ये प्रथा है, की देश के प्रधानमंत्री ही ध्वजारोहण करते है।
पहला नंबर
पहले नंबर पर भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नाम है। उन्होंने 1947 से 1963 तक लगातार 17 बार तिरंगा फहराया।
दूसरा नंबर
इंदिरा गांधी ने 16 बार झंडा फहराया, 1966 से 1976 तक लगातार पांच बार और फिर 1980 से 1984 तक लगातार पांच बार झंडा फहरायाऐसा करने वाली वो दूसरी प्रधानमंत्री बनी।
तीसरे नंबर
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी का लाल किले पर झंडा फहराने का उल्लेखनीय रिकॉर्ड है। उन्होंने 2004 से 2013 तक लगातार 10 बार ऐसा किया।
जानकारी के मुताबिक इस साल “लाल किला” परिसर में आयोजित “स्वतंत्रता दिवस समारोह” में करीब 18,000 मेहमान शामिल होंगे। इनमें से 4,000 विशेष अतिथि महिलाओं, किसानों, युवाओं और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों सहित विभिन्न वर्गों से आएंगे।
वहीं इस साल के समारोह में ओलंपिक में भाग लेने वाले सभी एथलीटों को आमंत्रित किया गया है। इसमें पेरिस ओलंपिक में भाग लेने वाले एथलीट भी शामिल हैं। उनकी उपस्थिति का मकसद अंतरराष्ट्रीय मंच पर उनके योगदान और उपलब्धियों को सम्मानित करना है। इस साल स्वतंत्रता दिवस समारोह बहुत ही भव्य होने वाला है।
लाल किले की रोचक कहानी
कैसे बना लाल किला आपको बता दे की जिसे आज हम लाल किले के नाम से जानते है वो पहले किला -ए -मुबारक के नाम से जाना जाता था साल 1638 में सहजहा ने अपनी राजधानी दिल्ली ट्रांसफर कर दी. दिल्ली जिसे हम आज कहते हैं, तब ऐसी नहीं थी. पिछले बादशाहों ने इस शहर को अपने-अपने हिसाब से बनाया था. शाहजहां ने दिल्ली के नक़्शे में एक नई नक्काशी जोड़ी. और इसे नाम दिया, शाहजहानाबाद. जिसे हम आज पुरानी दिल्ली के नाम से जानते हैं.1639 में उन्होंने यमुना के पास एक जमीन चुनी, एक नया किला बनाने के लिए. और इसकी जिम्मेदारी सौंपी, दो भाइयों को. उस्ताद हामिद और उस्ताद अहमद. दोनों इससे पहले ताजमहल में हाथ की कारीगरी दिखा चुके थे. इसलिए दोनों को इस काम के लिए एक करोड़ रूपये की रकम दी गयी. और किले का काम शुरू हो गया. किला बनाने में 10 साल का समय लगा. बनाने में ज्यादातर लाल पत्थर का इस्तेमाल हुआ. इसलिए आगे जाकर इसका नाम लाल किला पड़ गया. हालांकि तब इसे किला-ए-मुबारक कहा जाता था
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