नेपोटिज्म के विषय पर मनोज बाजपेयी ने बात की और बताया कि नेपोटिज्म एक बेकार की बहस है. अगर कोई किसी स्टार को कास्ट करना चाहता है, तो उसे ऐसा करने से कोई नहीं रोक सकता, क्योंकि वह अपने पैसे खर्च कर रहा है. इसके साथ ही मनोज बाजपेयी ने बताया कि सबसे बड़ी समस्या ये है कि फिल्म एग्जिबिटर्स भेदभाव करते हैं.
‘सिर्फ एक इंडस्ट्री से मांग ठीक नहीं’
मनोज बाजपेयी का कहना है कि समस्या फिल्म को दिखाए जाने में है, जो एक्जिबिटर्स होते हैं, वह भेदभाव करते हैं। जब उसको 100 स्क्रीन्स दे रहे हैं, तो कम से कम मुझे 25 तो दो.उसी को दे दोगे तो मेरा क्या? जो जितना पावरफुल होता है, वह अपनी पावर का व्हील उतना घुमाता रहता है। फेयरनेस की डिमांड सिर्फ एक ही इंडस्ट्री से करना ठीक नहीं।’
नेपोटिज्म पर क्या बोले मनोज बाजपाई
एक इंटरव्यू के दौरान मनोज बाजपेयी ने कहा, ‘नेपोटिज्म ये बहुत बेकार की बहस है. इसका अधिकतर मलतब कनेक्शन और रिलेशनशिप से होता है. अगर आपके किसी के साथ अच्छे रिश्ते हैं, तो आप उसके साथ ज्यादा काम करना चाहेंगे, लेकिन अगर वो मेरी जगह किसी तायाजी के लड़के को लेने जा रहे हैं तो फिल्म में उसका पैसा है, जो करना चाहता है करे’.
मनोज बायपेयी की फिल्म ‘गुलमोहर’
मनोज बायपेयी इन दिनों फिल्म ‘गुलमोहर’ को लेकर चर्चा में हैं। यह फिल्म आज डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज हो गई है। राहुल वी चिटेला के निर्देशन में बनी इस फिल्म में शर्मिला टैगोर भी नजर आई हैं। इनके अलावा सिमरन , सूरज शर्मा , कावेरी सेठ , उत्सवी झा , जतिन गोस्वामी , चंदन रॉय और अमोल पालेकर जैसे सितारे भी अहम रोल में हैं
मनोज बाजपेयी ने बताया डिप्रेशन चले गए थे।
मनोज बाजपेयी ने बताया कि रिजेक्शन्स के बाद वो कुछ समय डिप्रेशन में रहे और उन्हें इस दौरान सुसाइड के खयाल भी आते थे. उन्होंने जोर देकर कहा कि ऐसे विचार उन लोगों के लिए असामान्य नहीं हैं जो डिप्रेशन से पीड़ित हैं. “मैं एक ऐसे डिप्रेशन में चला गया था जहां मुझे नहीं पता था कि अपनों का सामना कैसे करना है. और जब आपके पास केवल एक ही योजना होती है, तो आपको ऐसा लगता है कि सारे दरवाजे बंद हो गए हैं. यह वह समय था जब मेरे मन में सुसाइडल थॉट्स आए थे.”