पंजाब की सियासत को अगर किताब के पन्नों पर उतारा जाएगा तो प्रकाश सिंह बादल का नाम लिखे बिना इसे पूरा नहीं माना जाएगा. पंजाब के 5 बार मुख्यमंत्री रहे प्रकाश सिंह बादल का मंगलवार (25 अप्रैल) को एक निजी अस्पताल में निधन हो गया.
शिरोमणि अकाली दल के प्रवक्ता डॉ. दलजीत सिंह चीमा ने बताया कि प्रकाश सिंह बादल का अंतिम संस्कार 27 अप्रैल को उनके गांव बादल में होगा। 26 अप्रैल को सुबह 10 बजे उनका पार्थिव शरीर अंतिम दर्शनों के लिए चंडीगढ़ में पार्टी के सेक्टर-28 स्थित पार्टी मुख्यालय में लाया जाएगा।
प्रकाश सिंह बादल जीवन या राजनीति के क्षेत्र में आसानी से हार मानने वालों में से नहीं थे. बीते साल ही शिरोमणि अकाली दल (शिअद) ने विधानसभा चुनाव के लिए पंजाब के मुक्तसर जिले में लंबी सीट से उन्हें उम्मीदवार बनाया था.
हालांकि, इस विधानसभा चुनाव में प्रकाश सिंह बादल को पंजाब की राजनीति में पहली बार सत्ता में आने वाली आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी से करारी हार मिली थी. प्रकाश सिंह बादल यह चुनाव भले हार गए थे, लेकिन देश में चुनाव लड़ने वाले सबसे उम्रदराज व्यक्ति होने के नाते रिकॉर्ड बुक में उनका नाम दर्ज हो गया. बठिंडा जिले के बादल गांव के सरपंच बनने के साथ शुरू हुए लंबे राजनीतिक करियर में यह उनकी 13वीं चुनावी लड़ाई थी. वह 95 वर्ष के थे.
प्रकाश सिंह का जीवन।
प्रकाश सिंह बादल का जन्म 8 दिसंबर, 1927 को पंजाब के बठिंडा ज़िले के अबुल-खुराना गांव में हुआ था. उनकी माता का नाम सुंदरी कौर और पिता का नाम रघुराज सिंह था.
उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा एक स्थानीय शिक्षक से प्राप्त की. बाद में वे लांबी के एक स्कूल में पढ़ने लगे. वहां वे बादल गाँव से घोड़े पर सवार होकर पढ़ने जाया करते थे.
हाई स्कूल की शिक्षा के लिए वे फिरोज़पुर के मनोहर लाल मेमोरियल हाई स्कूल गए. अपने कॉलेज की पढ़ाई के लिए उन्होंने सिख कॉलेज, लाहौर में दाख़िला लिया. लेकिन माईग्रेशन लेने के बाद उन्होंने फोरमैन क्रिश्चियन कॉलेज में दाख़िला लिया और यहीं से स्नातक की डिग्री प्राप्त की.
बादल अपनी युवावस्था में राज्य सिविल सेवा के एक अधिकारी बनना चाहते थे, लेकिन अकाली नेता ज्ञानी करतार सिंह के प्रभाव में आकर उन्होंने राजनीति में प्रवेश कर लिया.
5 बार रहे पंजाब के सीएम।
पंजाब की राजनीति के दिग्गज नेता बादल पहली बार 1970 में मुख्यमंत्री बने और उन्होंने एक गठबंधन सरकार का नेतृत्व किया, जिसने अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया. इसके बाद वह 1977-80, 1997-2002, 2007-12 और 2012-2017 में भी राज्य के मुख्यमंत्री रहे. अपने राजनीतिक जीवन के आखिरी दौर में बादल ने अकाली दल की बागडोर बेटे सुखबीर सिंह बादल को सौंप दी, जो उनके अधीन पंजाब के उपमुख्यमंत्री भी बने.
कांग्रेस के टिकट पर लड़ा पहला चुनाव।
प्रकाश सिंह बादल का जन्म आठ दिसंबर 1927 को पंजाब के बठिंडा के अबुल खुराना गांव में हुआ था. बादल ने लाहौर के फॉरमैन क्रिश्चियन कॉलेज से स्नातक किया. उन्होंने 1957 में कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में मलोट से पंजाब विधानसभा में प्रवेश किया. 1969 में उन्होंने अकाली दल के टिकट पर गिद्दड़बाहा विधानसभा सीट से जीत हासिल की.
जब पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री गुरनाम सिंह ने कांग्रेस का दामन थामा तो अकाली दल फिर से संगठित हो गया. अकाली दल ने 27 मार्च, 1970 को बादल को अपना नेता चुना. इसके बाद अकाली दल ने जनसंघ के समर्थन से राज्य में सरकार बनाई. वह तब देश के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बने. यह बात दीगर है कि यह गठबंधन सरकार एक वर्ष से थोड़ा अधिक चली.
किसानों के हितों पर की राजनीति।
वर्ष 1972 में बादल सदन में विपक्ष के नेता बने, लेकिन बाद में फिर से मुख्यमंत्री बने. बादल के नेतृत्व वाली सरकारों ने किसानों के हितों पर अपना ध्यान केंद्रित किया. उनकी सरकार के महत्वपूर्ण निर्णयों में कृषि के लिए मुफ्त बिजली देने का निर्णय भी शामिल था.
एसवाईएल नहर का किया विरोध।
अकाली दल के नेता प्रकाश सिंह बादल ने सतलुज यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर के विचार का कड़ा विरोध किया, जिसका उद्देश्य पड़ोसी राज्य हरियाणा के साथ नदी के पानी को साझा करना था. इस परियोजना को लेकर एक आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए 1982 में उन्हें गिरफ्तार किया गया था. यह परियोजना पंजाब के निरंतर विरोध के कारण अभी तक लागू नहीं हो सका है.
बादल की राजनीति और उनका संघर्ष।
अकाली दल का शुरू से ही संघर्ष के साथ संबंध रहा है, चाहे भारत का स्वतंत्रता संग्राम हो, गुरुद्वारा सुधार आंदोलन हो या आज़ादी के बाद धर्म और पंजाब के मुद्दों को लेकर संघर्ष हो.
इन सभी संघर्षों में अकाली दल अग्रणी रहा है. मास्टर तारा सिंह और अन्य टकसाली पंथ नेताओं के साथ ने प्रकाश सिंह बादल को पार्टी का अनुशासित और वफादार कैडर बना दिया.
अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष तरलोचन सिंह अपने एक लेख में लिखते हैं कि उन्होंने प्रकाश सिंह बादल में सबसे बड़ी खूबी ये देखी कि वो पार्टी के प्रति वफादार रहे और बिना किसी झिझक के फैसलों का पालन करते रहे.
वो लिखते हैं कि पार्टी के कई फैसले व्यक्तिगत रूप से बादल को पसंद नहीं थे, लेकिन वो पार्टी की ओर से दी गई हर ड्यूटी को पूरी लगन से निभाते रहे.