सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं के लिए एक बहुत बड़ा फैसला लिया है जिसमें उन्होंने मुस्लिम महिलाओं को उनका गुजारे भत्ते का हक देने की बात कही है. सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बीवी नाग रत्न ने अपने एक बयान में कहा कि अब भारत में महिलाओं के द्वारा किए जा रहे त्याग और उनकी भूमिका को पहचान का वक्त आ गया है. साथी उन्होंने खाते और एटीएम खोलकर मुस्लिम महिलाओं को वित्तीय सहायता देने के बारे में भी कहा.
तेलंगाना की एक महिला ने लगाई याचिका
बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के द्वारा महिलाओं के लिए कहा गया कि महिलाओं के भरण पोषण के लिए उनका धर्म बाधा नहीं होना चाहिए. महिलाओं के भरण पोषण के लिए उनके पति जिम्मेदार हैं. यह मामला सुप्रीम कोर्ट में तेलंगाना की एक महिला ने भरण पोषण के लिए उठाया था. जिसमें की उस महिला का पति इस केस को हाईकोर्ट में हार गया था. इस मामले पर फैसला जस्टिस नागरत्ना और जस्टिस अॉगस्टीस जॉर्ज मसीह ने सुनाया है.

धारा 125 के तहत कर सकती हैं अपने पति से भत्ते की मांग
सुप्रीम कोर्ट के द्वारा फैसला सुनाते हुए साफ तौर पर कहा गया कि महिला चाहे किसी भी धर्म की हो उसे भरण पोषण का अधिकार है. साथ ही अगर कोई महिला भरण पोषण को लेकर परेशान है तो धारा 125 के तहत महिलाओं को अपने पति के खिलाफ मेंटेनेंस का केस डालने के लिए भी बताया. और महिला किसी भी धर्म की हो वह कैसे डाल सकती है इसमें कोई भी धर्म रुकावट पैदा नहीं कर सकता.
स्त्रियों के त्याग को समझने का समय आ गया है
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश नागरत्ना ने फैसले के दौरान यह भी कहा कि महिलाओं के त्याग और उनके कर्तव्य को समझने का समय अब आ गया है. साथ ही उन्होंने यह कहा कि यह बहुत जरूरी है कि अब भारत मैं रहने वाले पुरुष अपनी पत्नियों के त्याग को समझें और पहचाना साथ ही उन्होंने सलाह दी की वह अपनी पत्नियों के साथ ज्वाइंट अकाउंट खुलवाए.

महिला का अपने पति से 2017 में ही हो चुका था तलाक
अदालत ने यह फैसला तेलंगाना की एक महिला के केस पर सुनाया है जिसमें महिला ने अपने पति के खिलाफ भत्ते को लेकर मुकदमा जारी किया था जो पारिवारिक कोर्ट में चल रहा था. इसके बाद कोर्ट ने महिला को 20 हजार रुपए महीने का अंतिम गुजारा भत्ता देने का फैसला सुनाया था याचिकाकर्ता एक मुस्लिम महिला थी जिसने अपने पति के खिलाफ धारा 125 के तहत याचिका दाखिल करवाई थी. महिला ने 2017 में मुस्लिम पर्सनल लॉ के मुताबिक अपने पति से तलाक ले लिया था इसी बात को लेकर उसके पति मोहम्मद अब्दुल समद के द्वारा पारिवारिक कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी. इसके बाद हाई कोर्ट ने महिला के गुजारे भत्ते को ₹10 हजार रुपए कर दिया था. साथ ही हाईकोर्ट ने इस मामले को 6 महीने के अंदर सुलझाने के लिए पारिवारिक अदालत को निर्देश दिया था.

अधिनियम 1986 महिलाओं के लिए फायदेमंद
इस मामले को लेकर महिला के वकील द्वारा दी गई दलील में कहा गया कि मुस्लिम महिला धारा 125 के तहद अपने गुजारे भत्ते की मांग कर सकती है और साथ ही उसने यह भी कहा कि तलाक पर अधिकारों का संरक्षण अधिनियम 1986 महिलाओं के लिए बहुत फायदेमंद है खास करके मुस्लिम महिलाओं के लिए.