जीएसटी दरों पर भ्रम: अन्नपूर्णा रेस्टोरेंट विवाद के बाद नई बहस शुरू

GST

तमिलनाडु की अन्नपूर्णा रेस्टोरेंट चेन के एमडी और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बीच एक चर्चा के बाद जीएसटी दरों को लेकर नया विवाद खड़ा हो गया है. इस बातचीत में एमडी ने जीएसटी दरों की तार्किकता पर सवाल उठाए, जिसके बाद यह मामला गरम हो गया. जीएसटी जानकारों का मानना है कि खाने-पीने की वस्तुओं पर लगने वाले जीएसटी को लेकर लोगों में भारी भ्रम की स्थिति बनी हुई है.

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जीएसटी दरों पर उलझन

रेस्टोरेंट में खाना खाने पर 5 प्रतिशत जीएसटी लगता है, जबकि खाने के बाद आइसक्रीम मंगवाने पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगाया जाता है. इसी प्रकार, अगर कोई वर्जिन मोजितो या अन्य गैर-अल्कोहलिक पेय मंगवाता है, तो उस पर 28 प्रतिशत जीएसटी लगता है. यह दरें लोगों के लिए भ्रम की स्थिति पैदा करती हैं, और रेस्टोरेंट के मालिकों के लिए बिलिंग को भी जटिल बना देती हैं.

बन और क्रीम पर जीएसटी का मसला

अन्नपूर्णा रेस्टोरेंट के एमडी ने एक और दिलचस्प उदाहरण पेश किया. उन्होंने बताया कि बन पर कोई जीएसटी नहीं लगता, लेकिन अगर बन में क्रीम भर दी जाए, तो उस पर 18 प्रतिशत जीएसटी लागू हो जाता है. वहीं, क्रीम पर मात्र 5 प्रतिशत जीएसटी लगता है। इस प्रकार की असंगत दरों के चलते ग्राहक अक्सर कहते हैं कि उन्हें केवल बन दे दिया जाए और वे क्रीम को खुद लगा लेंगे. यह उदाहरण जीएसटी दरों की तार्किकता पर सवाल खड़ा करता है और इसके परिणामस्वरूप रेस्टोरेंट मालिकों को बिलिंग में भी समस्याओं का सामना करना पड़ता है.

अन्नपूर्णा एमडी ने मांगी माफी

इस विवाद के बाद अन्नपूर्णा चेन के एमडी का एक माफी वीडियो भी सामने आया, जहां उन्होंने वित्त मंत्री से अपनी टिप्पणी के लिए माफी मांगी. यह मामला केवल राजनीतिक चर्चा तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि जीएसटी दरों को लेकर नई बहस को भी जन्म दिया है.

विभिन्न वस्तुओं पर अलग-अलग दरें

जीएसटी दरों की उलझन केवल बन और क्रीम तक सीमित नहीं है. पैकेज्ड मिनरल वाटर पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगता है, जबकि सोया मिल्क और फल आधारित जूस पर 12 प्रतिशत जीएसटी लगाया जाता है. रेस्टोरेंट में एक साथ कई लोग अगर विभिन्न पेय पदार्थों का ऑर्डर देते हैं, तो बिलिंग की प्रक्रिया और भी जटिल हो जाती है.

कुछ साल पहले भी अथॉरिटी ऑफ एडवांस रूलिंग (एएआर) ने पराठा पर 18 प्रतिशत और रोटी पर 5 प्रतिशत जीएसटी लगने के नियम पर चर्चा की थी. इन असंगत दरों के चलते जनता के बीच भी असमंजस की स्थिति बनी रहती है.

जीएसटी दरों को तार्किक बनाना चुनौतीपूर्ण

जीएसटी के विशेषज्ञों का मानना है कि दरों को तार्किक बनाने की मांग लगातार उठती रही है. इसके लिए सरकार ने एक मंत्रियों के समूह (जीओएम) का गठन भी किया है, जो इस मुद्दे पर काम कर रहा है. हालांकि, दरों को तार्किक बनाना इतना आसान नहीं है, क्योंकि इससे सरकार के राजस्व पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. राज्य सरकारें अपने राजस्व में कटौती करने को तैयार नहीं होंगी, जिससे जीएसटी दरों में बदलाव करना चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है.

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निष्कर्ष

जीएसटी दरों को लेकर जनता और कारोबारियों के बीच असमंजस की स्थिति बनी हुई है. विभिन्न वस्तुओं पर अलग-अलग दरों के कारण बिलिंग और टैक्स समझने में कठिनाई हो रही है. हाल ही में उठे विवाद ने इस मुद्दे पर फिर से बहस को ताजा कर दिया है, और अब यह देखना होगा कि सरकार इस दिशा में क्या कदम उठाती है.

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