नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उस याचिका पर चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया, जिसमें प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में केवल पांच यादृच्छिक रूप से चयनित इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) को सत्यापित करने के बजाय चुनावों में सभी मतदाता सत्यापित पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) पेपर पर्चियों की गिनती की मांग की गई थी.
न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया और वकील और कार्यकर्ता अरुण कुमार अग्रवाल द्वारा दायर याचिका को एक गैर सरकारी संगठन, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) द्वारा दायर एक समान याचिका के साथ टैग किया, जिसमें समान राहत की मांग की गई थी.
सुप्रीम कोर्ट की एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड नेहा राठी के माध्यम से दायर याचिका में चुनाव आयोग के दिशानिर्देशों को चुनौती दी गई है, जिसमें कहा गया है कि वीवीपैट सत्यापन क्रमिक रूप से किया जाएगा, यानी एक के बाद एक, जिससे अनुचित देरी होगी.
क्या है नोटिस के अंदर
इसमें तर्क दिया गया कि यदि एक साथ सत्यापन किया गया और प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में गिनती के लिए अधिक संख्या में अधिकारियों को तैनात किया गया, तो पूरा वीवीपैट सत्यापन केवल पांच से छह घंटे में किया जा सकता है.
याचिका में यह भी कहा गया है कि सरकार ने लगभग 24 लाख वीवीपैट की खरीद पर लगभग 5,000 करोड़ रुपये खर्च किए हैं, वर्तमान में केवल लगभग 20,000 वीवीपैट की वीवीपैट पर्चियां ही सत्यापित हैं.
यह जरूरी है कि सभी वीवीपैट पर्चियों की गिनती की जाए और मतदाता को यह ठीक से सत्यापित करने का अवसर दिया जाए कि मतपत्र में डाला गया उसका वोट भी गिना गया है, जिससे उसे अपनी वीवी पैट पर्चियों को मतपेटी पर भौतिक रूप से डालने की अनुमति मिल सके. यह सभी बातें दलील में कहीं गई है