शारदीय नवरात्रि के दौरान देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है, जिनमें से एक रूप देवी कौशिकी का है. देवी कौशिकी ने शुंभ-निशुंभ जैसे शक्तिशाली असुरों का वध कर संसार को उनके आतंक से मुक्त किया था. इस अद्भुत कथा में देवी की उत्पत्ति और उनके शुंभ-निशुंभ से हुए युद्ध का वर्णन किया गया है.
देवी कौशिकी की उत्पत्ति
देवी कौशिकी की उत्पत्ति का उल्लेख देवीभागवत पुराण और दुर्गा सप्तशती में मिलता है. कथा के अनुसार, जब देवी पार्वती हिमालय में तपस्या कर रही थीं, तब उनके शरीर से काले रंग की परत हटकर एक नई देवी का जन्म हुआ, जिसे कौशिकी नाम से जाना गया. कौशिकी देवी की सुंदरता और शक्ति का अद्वितीय संगम थीं. यह देवी स्वयं पार्वती का ही एक रूप थीं, लेकिन उनकी शक्ति और स्वरूप अलग था.
शुंभ-निशुंभ का अहंकार और देवी से युद्ध
शुंभ और निशुंभ दो भाई थे, जो अत्यंत शक्तिशाली और अहंकारी असुर थे. उन्होंने पूरे त्रिलोक पर अपना अधिकार जमा रखा था और देवताओं को स्वर्ग से निष्कासित कर दिया था. एक दिन शुंभ ने देवी कौशिकी की सुंदरता के बारे में सुना और उन्हें विवाह का प्रस्ताव भेजा. देवी ने उनका प्रस्ताव ठुकराते हुए शर्त रखी कि अगर वे उन्हें युद्ध में हरा सकें, तभी वे उनसे विवाह करेंगी.
शुंभ-निशुंभ ने सोचा कि एक स्त्री से युद्ध करना उनकी प्रतिष्ठा के खिलाफ है, लेकिन अपनी अहंकारवश उन्होंने युद्ध स्वीकार कर लिया. उन्होंने अपनी सेना को देवी के खिलाफ भेजा, जिसमें उनके सेनापति धूम्रलोचन, चंड और मुंड जैसे असुर भी शामिल थे.
धूम्रलोचन, चंड और मुंड का वध
धूम्रलोचन, जिसका अर्थ होता है धुएं जैसी धुंधली दृष्टि, ने देवी से लड़ाई की, लेकिन वह उनका सामना नहीं कर सका और मारा गया. चंड और मुंड, जो अभिमान और मूर्खता का प्रतीक थे, ने भी देवी से युद्ध किया, लेकिन उनका भी अंत हो गया. इस कारण देवी को ‘चामुंडा’ के नाम से जाना गया, क्योंकि उन्होंने चंड और मुंड दोनों का वध किया.
शुंभ-निशुंभ का अंत
जब शुंभ और निशुंभ ने देखा कि उनकी पूरी सेना समाप्त हो गई है, तो वे स्वयं युद्ध के मैदान में उतरे.