सावन के महीने में क्यों निषेध है साग और दही का सेवन
सावन का महीना हिन्दू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है. इस महीने में भगवान शिव की पूजा-अर्चना का विशेष महत्व होता है. सावन के महीने में कई धार्मिक और सांस्कृतिक नियमों का पालन किया जाता है, जिनमें से एक महत्वपूर्ण नियम है साग और दही का सेवन न करना. इसके पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों ही कारण हैं, जो इस प्रथा को महत्वपूर्ण बनाते हैं.
धार्मिक कारण
धार्मिक दृष्टिकोण से सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित होता है. मान्यता है कि इस महीने में शिवजी कैलाश पर्वत से पृथ्वी पर आते हैं और अपने भक्तों पर कृपा बरसाते हैं. इसलिए, इस महीने में भक्तजन व्रत रखते हैं और सादा भोजन करते हैं. साग और दही का सेवन न करने के पीछे यह मान्यता है कि इस दौरान भूमि और जल में कई प्रकार के जीवाणु और कीटाणु सक्रिय हो जाते हैं, जिससे स्वास्थ्य समस्याएँ हो सकती हैं. इसलिए, इन्हें खाने से परहेज किया जाता है.
वैज्ञानिक कारण
सावन का महीना मानसून के दौरान आता है, जब वातावरण में नमी और तापमान बढ़ जाता है. इस मौसम में साग-सब्जियों में कीटाणु और बैक्टीरिया का संक्रमण बढ़ जाता है, जिससे खाद्य पदार्थ जल्दी खराब हो सकते हैं और खाद्य विषाक्तता का खतरा बढ़ जाता है. इसके अलावा, दही में भी इस मौसम में बैक्टीरिया तेजी से बढ़ते हैं, जो पाचन तंत्र के लिए हानिकारक हो सकते हैं. इसलिए, सावन के महीने में साग और दही का सेवन न करने की सलाह दी जाती है.
सावन का महीना धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण होता है और इसमें की जाने वाली पूजा-अर्चना एवं व्रत के साथ-साथ खान-पान के नियम भी महत्वपूर्ण होते हैं. साग और दही का सेवन न करने का नियम धार्मिक आस्था और वैज्ञानिक कारणों का मिश्रण है. इससे न केवल हमारे स्वास्थ्य की रक्षा होती है, बल्कि यह हमें प्राकृतिक परिवर्तन और उनके प्रभावों से भी अवगत कराता है.
सावन के दौरान इन नियमों का पालन करके हम अपनी धार्मिक आस्था को मजबूत कर सकते हैं और अपने स्वास्थ्य का भी ध्यान रख सकते हैं. इस प्रकार, सावन का महीना हमें संयम, श्रद्धा और स्वास्थ्य की दिशा में मार्गदर्शन करता है, जो हमारे जीवन को संतुलित और सुखद बनाता है.