भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक 7 अक्टूबर से 9 अक्टूबर 2024 तक आयोजित की जा रही है. इस बैठक में प्रमुख चर्चा का विषय रेपो रेट पर फैसला होगा. रेपो रेट वह दर होती है, जिस पर आरबीआई बैंकों को अल्पकालिक धनराशि उधार देता है. वर्तमान में यह दर 6.5% है और फरवरी 2023 से इसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है.
विशेषज्ञों का अनुमान है कि रेपो रेट में बदलाव की संभावनाएं सीमित हैं, बावजूद इसके कि अमेरिका के फेडरल रिजर्व ने हाल ही में ब्याज दरों में कटौती की है. विशेषज्ञ मानते हैं कि भारतीय रिजर्व बैंक अपने मौजूदा रुख को बरकरार रख सकता है.
विशेषज्ञों की राय
विभिन्न आर्थिक विश्लेषकों ने इस बैठक को लेकर अलग-अलग राय दी है. एसएंडपी ग्लोबल का अनुमान है कि अक्टूबर में दरों में कटौती हो सकती है, जबकि भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) इसे खारिज करता है. वहीं, यूबीएस के अनुसार दिसंबर में ब्याज दरों में कटौती संभव है.
यदि रेपो रेट में बदलाव नहीं होता, तो यह रियल एस्टेट, बैंकिंग, और उपभोक्ता वित्त क्षेत्र पर गहरा प्रभाव डाल सकता है. विशेष रूप से, होम लोन लेने वालों और अन्य वित्तीय उत्पादों का उपयोग करने वाले ग्राहकों को इस निर्णय का सीधा लाभ या हानि होगी. रेपो रेट में स्थिरता बाजार में निवेश को स्थिर बनाए रखेगी, जबकि कटौती की स्थिति में निवेशकों और ऋण लेने वालों को राहत मिल सकती है.
रेपो रेट का महत्त्व
रेपो रेट किसी भी देश की आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. जब रेपो रेट कम होती है, तो बैंक भी सस्ती दरों पर ऋण दे सकते हैं, जिससे आम लोगों को होम लोन और अन्य वित्तीय सेवाओं का लाभ उठाने में आसानी होती है. इसके विपरीत, दरें स्थिर रहने से बाजार में निवेश की स्थिति पर प्रभाव पड़ता है.
आरबीआई की इस बैठक के फैसले का असर रियल एस्टेट और वित्तीय क्षेत्र पर व्यापक होगा. यदि रेपो रेट में कोई कमी होती है, तो यह होम लोन लेने वालों के लिए एक राहत हो सकती है, वहीं निवेशकों को भी इसका फायदा मिलेगा. हालांकि, विशेषज्ञ यह मान रहे हैं कि इस बैठक में बड़े बदलाव की संभावना कम है.
निष्कर्ष
आरबीआई की आगामी एमपीसी बैठक पर सबकी नजरें टिकी हैं. रेपो रेट में कोई बदलाव न होने से जहां बाजार स्थिर रह सकता है, वहीं कटौती की स्थिति में आम जनता और निवेशकों को बड़ी राहत मिलेगी.