वन नेशन, वन इलेक्शन: क्या होगा इकोनॉमी पर असर? विशेषज्ञों की राय

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एक साथ चुनाव का प्रस्ताव

भारत में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ यानी एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने का प्रस्ताव लंबे समय से चर्चा में है. इससे न केवल चुनावी खर्चों में कटौती की उम्मीद है, बल्कि आर्थिक विकास दर पर भी इसका सकारात्मक असर हो सकता है. विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रणाली से भारतीय अर्थव्यवस्था को लाभ हो सकता है, खासकर जब जीडीपी वृद्धि में सुधार की बात आती है.

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तमिलनाडु का उदाहरण

विशेषज्ञों ने इस मुद्दे पर तमिलनाडु का एक दिलचस्प उदाहरण पेश किया है. 1996 में जब तमिलनाडु में लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ-साथ कराए गए, तो विकास दर में केवल 4.1 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई. इसके विपरीत, 2001 में जब चुनाव अलग-अलग कराए गए, तो विकास दर में 30 प्रतिशत तक की गिरावट आई. इससे स्पष्ट होता है कि अलग-अलग चुनाव विकास दर पर नकारात्मक असर डाल सकते हैं.

आर्थिक विशेषज्ञों की राय

कोविंद समिति को प्रस्तुत किए गए एक अध्ययन में बताया गया कि एक साथ चुनाव होने से देश की जीडीपी में 1.5 प्रतिशत तक की वृद्धि हो सकती है. चुनाव के दौरान लागू होने वाली आचार संहिता के कारण सरकारों का कामकाज प्रभावित होता है, जिससे विकास कार्यों में देरी होती है. इस अध्ययन में यह भी कहा गया है कि यदि एक साथ चुनाव कराए जाते हैं, तो सरकारें कम से कम 4.5 साल तक बिना किसी व्यवधान के विकास कार्यों पर ध्यान केंद्रित कर सकती हैं.

चुनावों का सामाजिक प्रभाव

बार-बार होने वाले चुनावों का केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक प्रभाव भी होता है. विशेषज्ञों का कहना है कि बार-बार चुनाव होने से सरकारों की निर्णय लेने की प्रक्रिया बाधित होती है, और इससे विकास परियोजनाओं में देरी होती है. एक अध्ययन के अनुसार, 1952 से 2023 तक भारत में औसतन हर साल 6 चुनाव हुए. ये आंकड़े केवल लोकसभा और विधानसभा के चुनावों से संबंधित हैं, अगर स्थानीय चुनावों को भी इसमें शामिल कर लिया जाए, तो चुनावों की संख्या और भी अधिक हो जाएगी.

मुद्रास्फीति और निवेश पर असर

‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ से मुद्रास्फीति दर पर भी सकारात्मक असर देखने को मिल सकता है. विशेषज्ञों ने यह निष्कर्ष निकाला कि जब चुनाव एक साथ होते हैं, तो मुद्रास्फीति की दर में कमी आती है, और इसके साथ ही निवेश में भी बढ़ोतरी देखी जाती है. यह आर्थिक स्थिरता के लिए एक महत्वपूर्ण कारक हो सकता है.

विश्लेषण के आंकड़े

अध्ययन में यह भी बताया गया कि 1952 से लेकर 2023 तक देश में औसतन हर साल 6 चुनाव हुए हैं. चुनावों की यह आवृत्ति सरकार के कामकाज को बाधित करती है, और इसके कारण विकास दर पर नकारात्मक असर पड़ता है. इस शोध पत्र में यह दावा किया गया है कि एक साथ चुनाव कराने पर वास्तविक राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद (GDP) दर में लगभग 1.5 प्रतिशत तक का अंतर देखा गया है.

चुनाव आचार संहिता का प्रभाव

चुनाव के समय लागू होने वाली आचार संहिता के कारण सरकारों के हाथ 12-15 महीने तक बंधे होते हैं. इसका मतलब है कि पांच साल के कार्यकाल में से सरकारें लगभग एक साल तक विकास कार्यों पर ध्यान नहीं दे पातीं. लेकिन अगर एक साथ चुनाव कराए जाते हैं, तो सरकारों को पूरे कार्यकाल में बिना किसी व्यवधान के विकास कार्य करने का समय मिलेगा.

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निष्कर्ष

‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ प्रणाली से न केवल चुनावी खर्चों में कमी आएगी, बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था को भी इससे बड़ा लाभ हो सकता है. विशेषज्ञों का मानना है कि इससे जीडीपी वृद्धि दर में 1.5 प्रतिशत तक की वृद्धि हो सकती है, साथ ही निवेश और मुद्रास्फीति पर भी इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. हालांकि, इसके साथ ही चुनावों के सामाजिक प्रभावों पर भी ध्यान देने की जरूरत है, जो कि सरकारों की निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करते हैं.

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