Lepakshi Temple
आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में स्थित लेपाक्षी मंदिर एक अद्भुत स्थापत्य कला का उदाहरण है. इस मंदिर का विशेष आकर्षण यहाँ का तैरता हुआ स्तंभ है, जिसे लोग “हवा में तैरता स्तंभ” के नाम से जानते हैं. यह स्तंभ जमीन से नहीं छूता और हवा में तैरता हुआ प्रतीत होता है. इस रहस्य को जानने के लिए देश-विदेश से अनेक पर्यटक यहाँ आते हैं.

लेपाक्षी मंदिर का निर्माण 16वीं शताब्दी में विजयनगर साम्राज्य के काल में हुआ था. इस मंदिर का स्थापत्य, मूर्तिकला, और शिल्पकला अत्यंत आकर्षक और अद्वितीय है. मंदिर के मुख्य गर्भगृह में भगवान वीरभद्र की मूर्ति स्थापित है, जो भगवान शिव का एक रूप है. इस मंदिर का नाम ‘लेपाक्षी’ संस्कृत भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ है “उठो पक्षी”. यह नाम रामायण की कथा से जुड़ा हुआ है, जिसमें जटायु पक्षी रावण से लड़ते हुए यहीं पर गिरा था और भगवान राम ने उसे “ले पाक्षी” कहकर उठने का आदेश दिया था.
मंदिर के मुख्य आकर्षण का केंद्र यह तैरता हुआ स्तंभ है. यह स्तंभ अन्य स्तंभों की तरह ही पत्थर से निर्मित है, लेकिन इसकी विशेषता यह है कि यह जमीन को नहीं छूता. पर्यटक और वैज्ञानिक इसे समझने के लिए अनेक बार प्रयास कर चुके हैं, लेकिन इसके रहस्य का पूर्ण समाधान अब तक नहीं हो पाया है. लोग कपड़ा या कागज का टुकड़ा इस स्तंभ के नीचे से निकालते हैं, जिससे यह प्रमाणित होता है कि यह स्तंभ हवा में तैर रहा है.

स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, यह स्तंभ वास्तुकला और शिल्पकला के अद्भुत कौशल का प्रतीक है. कुछ लोगों का मानना है कि यह स्तंभ वास्तुकला की तकनीकी विशेषज्ञता का परिणाम है, जिसमें पत्थरों के सही संतुलन और भार वितरण को ध्यान में रखा गया है. वहीं, कुछ लोगों का कहना है कि यह दिव्य शक्ति का चमत्कार है.
लेपाक्षी मंदिर का तैरता हुआ स्तंभ एक रहस्य बनकर आज भी लोगों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. यहाँ आने वाले पर्यटक इस अद्भुत दृश्य को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं और इसके पीछे की कहानी को जानने के लिए उत्सुक रहते हैं. इस मंदिर का ऐतिहासिक, धार्मिक, और सांस्कृतिक महत्व भी बहुत अधिक है, जो इसे भारत के महत्वपूर्ण धरोहर स्थलों में से एक बनाता है.
लेपाक्षी मंदिर का तैरता हुआ स्तंभ आंध्र प्रदेश का एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण है, जो यहाँ आने वाले हर व्यक्ति को अपने रहस्यमय और अद्वितीय सौंदर्य से मोहित कर देता है.