राजस्थान की जेल में उम्रकैद की सज़ा काट रहे एक दम्पति ने संतान प्राप्ति के लिए पैरोल की मांग की है। राजस्थान हाई कोर्ट द्वारा पैरोल की मांग खारिज करने पर दम्पति ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। आजीवन कारावास की सज़ा काट रहे इस दम्पति कि याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाई कोर्ट से ‘‘सहानुभूतिपूर्वक’’ विचार करने को कहा है।
दरअसल दंपति ने संतान प्राप्ति के लिए IVF कराने को लेकर सुप्रीम कोर्ट से पैरोल की मांग की है। जस्टिस सूर्यकांत और जे के माहेश्वरी की पीठ ने राजस्थान हाई कोर्ट के पिछले साल मई के फैसले के खिलाफ दंपति की ओर से दायर याचिका पर आदेश पारित किया।
सुप्रीम कोर्ट ने सहानुभूतिपूर्वक विचार करने को कहा
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए कहा “याचिकाकर्ता आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं और वर्तमान में वे ओपन एयर कैंप, दुर्गापुरा, जयपुर, राजस्थान में हैं, जहां वे एक क्वार्टर में एक साथ रहते हैं। यह एक ओपन जेल है। चूंकि याचिकाकर्ता का गीतांजलि मेडिकल कॉलेज और अस्पताल, उदयपुर में इलाज चल रहा है, इसलिए अधिकारी याचिकाकर्ताओं को उदयपुर की खुली जेल में स्थानांतरित करने के लिए तैयार हैं। अगर याचिकाकर्ता इस तरह के स्थानांतरण के लिए प्रार्थना करते हैं, तो दो सप्ताह के भीतर उचित आदेश पारित किया जाएगा।”
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया जाता है कि वे याचिकाकर्ताओं द्वारा सहानुभूतिपूर्वक और उनकी नीति के अनुसार अनुरोध पर विचार अगर कोई कोई कानूनी बाधा नहीं आती है तो उन्हें पैरोल दें।
राजस्थान हाई कोर्ट ने याचिका की थी खारिज
राजस्थान हाईकोर्ट ने पिछले साल ‘आकस्मिक पैरोल’ के उनके आवेदन को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि पत्नी के पिछले विवाह से पहले से ही दो बच्चे हैं। इसके खिलाफ याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि महिला की पिछली शादी से दो बच्चे हैं और याचिकाकर्ताओं ने पैरोल पर रहने के दौरान शादी की थी।
क्या है आईवीएफ
आईवीएफ एक फर्टिलिटी उपचार है जिसमें अंडों को शुक्राणु से अप्राकृतिक तरीके से मिलाया जाता है। यह प्रक्रिया मेडिकल लैब में नियंत्रित परिस्थितियों में की जाती है।यह प्रक्रिया इंफर्टिल दम्पति, और उन लोगों के लिए सहायक है जिनको कोई जननिक दिक़्क़त या परेशानी है।
कब मिलती है पैरोल
जब अपराधी की सजा पूरी नहीं हुई हो या समाप्त होने वाली हो। उससे पहले ही अस्थाई रूप से अपराधी को रिहा कर दिया जाए तो उसे पैरोल कहते हैं। अगर व्यक्ति जेल के भीतर किसी अवैध कामों में पाया जाता है तो उसे पैरोल नहीं मिल सकती है। पैरोल उन्ही कैदियों को मिलती है जिनका व्यवहार जेल में अच्छा होता है।
1894 के जेल अधिनियम और 1990 के कैदी अधिनियम के अनुसार, भारत में पैरोल के पुरस्कार को नियंत्रित करते हैं। अलग-अलग राज्यों में पैरोल को लेकर अपना एक अलग दिशा निर्देश सेट होता है। उदाहरण के तौर पर (बॉम्बे फरलो या पैरोल) नियम 1958 कारागार अधिनियम 1984 की धारा 59 (5) के तहत जारी किया गया था।