दाल की बढ़ती कीमतें और उत्पादन की स्थिति
भारत में हर साल लगभग 50 लाख टन अरहर दाल की आवश्यकता होती है, जबकि इसका उत्पादन 30 से 35 लाख टन के बीच रहता है. इसी असंतुलन के कारण अरहर दाल की कीमतों में लगातार वृद्धि हो रही है. दाल की बढ़ती कीमतों को देखते हुए, 2027 तक दाल में आत्मनिर्भर बनने का लक्ष्य बड़ा चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है. हालांकि, अरहर और मूंग की फसलों में हाल की वृद्धि ने आशा की किरणें जगा दी हैं। अगले महीने दलहन फसलों की अग्रिम अनुमान रिपोर्ट जारी करने की तैयारी चल रही है.
दालों की कमी और आयात की स्थिति
भारत खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर है और विभिन्न प्रकार के अनाज का निर्यात भी करता है. लेकिन, दलहन की भारी कमी के चलते हर साल 25 से 30 लाख टन दाल का आयात करना पड़ता है. इस स्थिति को देखते हुए, आगामी तीन वर्षों में दाल के मामले में आत्मनिर्भरता हासिल करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. इसके लिए दालों के उत्पादन, भंडारण और विपणन को बढ़ावा देने पर जोर दिया जा रहा है.
खेती के पैटर्न में बदलाव
खेती की प्रारंभिक रिपोर्ट में उत्साहवर्धक संकेत मिले हैं। इस वर्ष अब तक अरहर और मूंग की फसलों के रकबे में नौ लाख हेक्टेयर की वृद्धि देखी गई है. किसानों ने धान की फसल के साथ-साथ दलहन की ओर रुख किया है. यह बदलाव मुख्यतः दलहन फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में वृद्धि और सौ प्रतिशत खरीद की गारंटी की वजह से हुआ है. इस प्रोत्साहन के चलते अरहर और मूंग पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है.
दलहन फसलों का वर्तमान स्थिति
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, इस वर्ष दलहन की बुआई का रकबा पिछले वर्ष के 116.66 लाख हेक्टेयर के मुकाबले बढ़कर 125.13 लाख हेक्टेयर हो चुका है. इसमें और वृद्धि की संभावना है. अरहर दाल की मांग सबसे अधिक होने के कारण इसके रकबे में सर्वाधिक वृद्धि देखने को मिली है. वर्तमान में 45.78 लाख हेक्टेयर में अरहर की बुआई हो चुकी है, जो पिछले वर्ष से 5.04 लाख हेक्टेयर अधिक है. मूंग के रकबे में भी चार लाख हेक्टेयर की वृद्धि हुई है, और अब तक 34.74 लाख हेक्टेयर में इसकी बुआई की गई है.
भविष्य की दिशा और रणनीतियाँ
यह वृद्धि न केवल दाल के उत्पादन को बढ़ावा देगी बल्कि आत्मनिर्भरता की दिशा में भी महत्वपूर्ण कदम साबित होगी. कृषि क्षेत्र में हो रहे इस बदलाव से उम्मीद है कि दाल की कीमतों में स्थिरता आएगी और आयात पर निर्भरता कम होगी. इसके लिए सरकारी योजनाओं और नीतियों को सही दिशा में लागू करना होगा ताकि दलहन उत्पादन में स्थायीत्व और वृद्धि सुनिश्चित की जा सके.