Ganesh Chaturthi 2024: गणेश चतुर्थी के शुभ अवसर पर जानिए शुभ मुहूर्त, स्थापना विधि तथा ऐतिहासिक एवं पौराणिक महत्व

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Ganesh Chaturthi 2024

Ganesh Chaturthi 2024: हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी गणेश चतुर्थी का पर्व 7 सितंबर को बड़ी धूमधाम से मनाया जाएगा. यह पर्व 9 से 10 दिनों तक मनाया जाता है इसे गणेश उत्सव भी कहते हैं. इस दिन लोग अपने घर में भगवान गजानन की स्थापना एवं उनकी पूजा अर्चना करते हैं। गणेश उत्सव के इस शुभ अवसर पर आइये जानते हैं भगवान गणपति की स्थापना एवं पूजन विधि तथा गणेश चतुर्थी की ऐतिहासिक एवं पौराणिक कथा।

शुभ मुहूर्त

भगवान् गणेश की स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 8:00 से 9:30 तक तथा मध्यंत्र काल में 11:20 से एक 1:40 तक है तथा दोपहर में 2:00 से 5:30 तक है। भगवान गणेश की स्थापना के लिए दोपहर का समय सबसे शुभ माना गया है दोपहर में 11:54 से अभिजीत मुहूर्त शुरू हो रहा है जो की दोपहर 12:44 तक रहेगा जिस पर भगवान गणेश की स्थापना करना अति फलदायक सिद्ध होगा।

गणपति स्थापना एवं पूजन विधि

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गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की स्थापना करने के लिए सबसे पहले सुबह उठकर स्नान ध्यान करके स्वच्छ कपड़े पहनें, इसके बाद भगवान गणेश जी की जहां स्थापना करनी है उस स्थान की अच्छे से साफ सफाई करें और गणेश स्थापना का संकल्प करें।

इस वर्ष गणेश चतुर्थी पर एक बहुत ही शुभ योग शुभ योग बन रहा है इस दिन भगवान गणेश की स्थापना और पूजा करने से बहुत ही उत्तम फल की प्राप्ति होती है इसके अलावा आज बुधाद ,,आदित्य, सर्वार्थ सिद्धि और पारिजात योग भी बन रहा है माना जाता है कि इस अवसर पर भगवान गणेश की स्थापना करना बहुत ही शुभ होता है।

भगवान गणेश जी की स्थापना करने के लिए लाल वस्त्र बिछाकर उनके आँखों की पट्टी खोलें और आसन पर विराजमान करें ,तत्पश्चात भगवान गणेश का आवाहन करें ,इसके पश्चात हाथ में गंगाजल फूल और अक्षत लेकर गणेश जी के मंत्रो का जाप करें। भगवान गणेश जी को धूप एवं पुष्प अर्पित कर।उन्हें भोग लगाए। भगवान गणेश को मोदक एवं के मोतीचूर के लड्डू अत्यंत प्रिय हैं इसलिए उन्हें भोग में यहीअर्पित करें।

गणेश चतुर्थी की पौराणिक कथा

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एक बार देवता मदद मांगने भगवान शिव के पास आए। उस समय भगवान शिव के साथ कार्तिकेय और गणेश जी भी बैठे थे। देवताओं की बात सुनकर शिव जी ने कार्तिकेय वह गणेश जी से पूछा, तुम में से कौन देवताओं के कष्ट का निवारण कर सकता है, तब कार्तिकेय और गणेश दोनों ने ही स्वयं को इस कार्य के लिए सक्षम बताया। भगवान शिव ने दोनों की परीक्षा लेते हुए कहा कि तुम दोनों में से जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके आएगा वही देवताओं की मदद करेगा।

भगवान शिव के इतना कहते ही कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल गए परंतु भगवान गणेश जी सोच में पड़ गए कि वह चूहे के ऊपर चढ़कर सारी पृथ्वी की परिक्रमा करेंगे तो उन्हें इस कार्य में बहुत समय लग जाएगा तभी उन्हें एक उपाय सुलझा वे अपने स्थान से उठे और अपने माता-पिता की सात बार परिक्रमा करके वापस बैठ गए.

पृथ्वी की परिक्रमा करके लौटने पर कार्तिकेय स्वयं को विजेता बताने लगे, तब शिव जी ने श्री गणेश जी से पृथ्वी की परिक्रमा न करने का कारण पूछा तब गणेश ने कहा माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक है ,यह सुनकर भगवान शिव ने गणेश जी को देवताओं के संकट दूर करने की आज्ञा दी।

इस प्रकार भगवान शिव ने गणेश जी को आशीर्वाद दिया कि गणेश चतुर्थी के दिन जो भी तुम्हारा पूजन करेगा और रात्रि में चंद्रमा को अर्ध देगा उसके तीनों ताप यानी दैहिक ,दैविक तथा भौतिक ताप दूर होंगे। इस व्रत को करने से सभी व्रत धारी लोगों के सब तरह के कष्ट दूर होंगे और उसे जीवन में भौतिक शुभ सुविधाओं की प्राप्ति होगी चारों तरफ से मनुष्य की सुख समृद्धि बढ़ेगी तथा पुत्र ,पौत्र आदि धन ऐश्वर्य की कमी कभी नहीं होगी।

गणेश चतुर्थी का ऐतिहासिक महत्व

गणेश चतुर्थी की शुरुआत 12वीं शताब्दी में महाराष्ट्र में हुई थी, इस त्यौहार को मराठा राजा शिवाजी महाराज ने लोकप्रिय बनाया था। उन्होंने इस त्यौहार की शुरुआत अपने लोगों को एकजुट करने और हिंदू संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए किया था। शुरुआती दौर में इसे सिर्फ महाराष्ट्र में ही मनाया जाता था किंतु अब यह भारत के हर राज्य में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है और अब यह हिंदुओं का एक लोकप्रिय त्यौहार बन गया है।

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