दुर्गा पूजा का समय
शारदीय नवरात्र का पर्व हर साल आश्विन माह में मनाया जाता है. इस वर्ष, शारदीय नवरात्र का आरंभ 3 अक्टूबर से हुआ है और यह 11 अक्टूबर तक चलेगा. इसके बाद 12 अक्टूबर को दशहरा का पर्व धूमधाम से मनाया जाएगा. इस दौरान मां दुर्गा की पूजा-अर्चना की जाती है, जिसके कारण इसे दुर्गा पूजा कहा जाता है. विभिन्न स्थानों पर पंडाल सजाकर मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की जाती है और विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है.
दुर्गा पूजा का पौराणिक महत्व
दुर्गा पूजा का आयोजन एक महत्वपूर्ण पौराणिक कथा से जुड़ा हुआ है. पुरानी कथाओं के अनुसार, महिषासुर नामक राक्षस ने तपस्या कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और उनसे अमर होने का वरदान प्राप्त किया. इसके बाद महिषासुर ने धरती पर आतंक मचाना शुरू कर दिया, जिससे देवी-देवता परेशान हो गए. सभी देवताओं ने मिलकर महिषासुर का सामना किया, लेकिन वे सभी पराजित हो गए.
इस स्थिति में, सभी देवी-देवताओं ने अपनी शक्तियों के द्वारा मां दुर्गा की पूजा की. इसके परिणामस्वरूप मां दुर्गा ने महिषासुर से युद्ध किया, जो नौ दिनों तक चला। अंततः दशमी तिथि को मां दुर्गा ने महिषासुर का वध किया यही कारण है कि दशमी को दुर्गा पूजा का पर्व मनाया जाता है.
दुर्गा पूजा की विशेषताएँ
दुर्गा पूजा के दौरान विभिन्न आयोजन किए जाते हैं। भक्तजन मां दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा करते हैं और विशेष अनुष्ठान करते हैं. इस पर्व के दौरान, भक्तगण अपने घरों में भी पूजा करते हैं और पंडालों में जाकर मां दुर्गा की आरती और भजन गाते हैं. विभिन्न स्थानों पर आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम भी इस उत्सव का अभिन्न हिस्सा होते हैं.
आनंद का पर्व
दुर्गा पूजा केवल धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह समाज के सभी वर्गों को एक साथ लाने का माध्यम भी है. इस दौरान लोग एक-दूसरे के साथ मिलकर खुशियों का अनुभव करते हैं। यह पर्व हमें न केवल मां दुर्गा की शक्ति का स्मरण कराता है, बल्कि हमारे भीतर सकारात्मकता और आत्मविश्वास भी भरता है.
निष्कर्ष
दुर्गा पूजा का यह उत्सव न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह हमारे समाज की सांस्कृतिक धरोहर का भी हिस्सा है. यह हमें सिखाता है कि बुराई पर अच्छाई की जीत होती है और हमें हमेशा सच्चाई और न्याय की राह पर चलना चाहिए. दुर्गा पूजा के इस पर्व पर सभी को सुख-समृद्धि की प्राप्ति हो.