स्तनपान को बच्चों के स्वास्थ्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है, और दशकों से “ब्रेस्ट इज़ बेस्ट” जैसे नारों के माध्यम से इसे बढ़ावा दिया जाता रहा है. हालांकि, स्तनपान के दौरान महिलाओं को होने वाली पीड़ा और चुनौतियों के बारे में अक्सर कम ही बात की जाती है. कई महिलाएं बच्चों को स्तनपान कराने की इच्छुक होती हैं, लेकिन दर्द और अन्य समस्याओं के चलते उन्हें यह प्रक्रिया बीच में ही छोड़नी पड़ती है.
स्तनपान की चुनौतियां: एक मां की कहानी
जेम्मा मुनफ़ोर्ड, जिन्होंने 2017 में अपने बेटे मैक्स को जन्म दिया, ऐसी ही एक मां हैं. जेम्मा ने पहले से ही स्तनपान की योजना बना रखी थी, लेकिन बच्चे के जन्म के तीसरे दिन से ही उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। वह याद करती हैं कि वह सोफे पर बैठी अपने बेटे को पकड़े हुए थीं और अपने आंसुओं को रोक नहीं पा रही थीं. जेम्मा के लिए अगले दो हफ्ते बेहद चुनौतीपूर्ण साबित हुए. वह हर बार बेटे को स्तनपान कराने से पहले डरती थीं और हालात ऐसे हो गए कि उन्हें अपने मेहमानों को घर से जाने के लिए कहना पड़ा ताकि वह अकेले में बच्चे को स्तनपान कराने की कोशिश कर सकें. जेम्मा बताती हैं कि स्तनपान का अनुभव उनके लिए अत्यधिक थकाऊ और शर्मनाक था.
टंग-टाई और स्तनपान में दिक्कतें
मुनफ़ोर्ड के बेटे मैक्स को ‘टंग-टाई’ की समस्या थी, जो एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें जीभ को मुंह से जोड़ने वाली पट्टी सामान्य से अधिक सख्त होती है, जिससे स्तनपान कराना मुश्किल हो जाता है। इसके कारण कुछ हफ्तों बाद मैक्स का वजन कम होने लगा, और जेम्मा को फार्मूला मिल्क का सहारा लेना पड़ा.
दो साल बाद, जब जेम्मा की बेटी का जन्म हुआ, तो उन्होंने फिर से स्तनपान की कोशिश की. हालांकि उनकी बेटी को ‘टंग-टाई’ की समस्या नहीं थी, लेकिन जेम्मा दो दिनों के बाद ही स्तनपान कराने का फैसला जारी नहीं रख सकीं.
स्तनपान की पीड़ा और मानसिक स्वास्थ्य
जेम्मा आज भी स्तनपान न कर पाने की पीड़ा से जूझ रही हैं. वह कहती हैं कि वह एक ऐसी स्वाभाविक और अनोखी चीज़ नहीं कर पाईं, जो केवल एक मां कर सकती है। इसके कारण उन्हें शर्मिंदगी महसूस होती है.
उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि संभवतः वह प्रसव के बाद अवसाद का शिकार थीं, लेकिन उस समय इसका पता नहीं चला.
स्तनपान पीड़ा: एक आम समस्या
सार्वजनिक स्वास्थ्य शोधकर्ता प्रोफेसर एमी ब्राउन, जिन्होंने स्तनपान की पीड़ा पर एक किताब लिखी है, का कहना है कि स्तनपान के अनुभवों से जुड़ी उदासी की भावना कई महिलाओं में आम है.
प्रोफेसर ब्राउन के अनुसार, “कई महिलाएं स्तनपान कराना उस समय से पहले बंद कर देती हैं जितना उन्होंने सोचा होता है, जिससे वे निराशा महसूस करती हैं.”
वैश्विक आंकड़े और उम्मीदें
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, नवजात शिशुओं को जीवन के पहले छह महीनों के लिए विशेष रूप से स्तनपान कराना आवश्यक है. वैश्विक स्तर पर, छह महीने से कम उम्र के शिशुओं को स्तनपान कराने का आंकड़ा 48 प्रतिशत तक पहुंच गया है, जो पिछले दशक से 10 प्रतिशत अधिक है.
दीप्ति, जो सात महीने की गर्भवती हैं, इस बार अपने दूसरे बच्चे के साथ स्तनपान के अनुभव को बेहतर बनाने की उम्मीद कर रही हैं. उनके पहले बेटे को भी ‘टंग-टाई’ की समस्या का सामना करना पड़ा था, जिससे उन्हें भी स्तनपान के दौरान कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था.
निष्कर्ष
स्तनपान को बढ़ावा देने के साथ-साथ, इसकी चुनौतियों और महिलाओं की पीड़ा पर भी ध्यान देना आवश्यक है. इसके बारे में खुलकर बात करने से न केवल महिलाओं को मदद मिल सकती है, बल्कि वे अपने अनुभवों को साझा करके अन्य महिलाओं की मदद भी कर सकती हैं। स्तनपान एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, लेकिन इसके दौरान आने वाली चुनौतियों का समाधान भी उतना ही आवश्यक है.