देश ने कभी यह सोचा भी नहीं होगा किअब कोर्ट समलैंगिक विवाह जैसे मुद्दे पर भी बहस करेगा जहां पर भारत में इतने सारे मामले पेंडिंग पड़े हुए तो वहां पर एक नया मामला समलैंगिक मामला देश में तुल पकड़ रहा हैं । बहुत पहले इस मामले पर बात की थी और देखा भी गया था कि वह लोग जो LGBT के दायरे में आते हैं। उन्होंने इस मामले पर कई बार ऑब्जेक्शन भी उठाया था तो हाल ही में जब दो लड़कियों ने शादी करी तो उन्होंने कोर्ट में इस मुद्दे को रखा कि क्यों ना उन्हें भी शादी की मान्यता मिली जाए शादी करना हमारा निजी फैसला है ।इसमें किसी को रोक तो करने का अधिकार नहीं है तो अब आप कोर्ट भी इस पर सुनवाई में लगा हुआ है।
सेम सेक्स मैरिज के मामले पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रही है। हालांकि, केंद्र सरकार का कहना है कि इस मसले को संसद पर छोड़ देना चाहिए। इस बीच कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने बुधवार को समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने सेम सेक्स मैरिज को लेकर कहा कि अदालतें ऐसे मुद्दों को निपटाने का मंच नहीं हैं।
दरअसल, चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस मामले को लेकर पांच जजों की संवैधानिक बेंच को 13 मार्च को ट्रांसफर कर दिया था. इस मामले पर अब सीजेआई चंद्रचूड़, जस्टिस एसके कौल, जस्टिस हिमा कोहली, जस्टिस रविंद्र भट और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच सुनवाई करेगी
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह के मामले में केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि प्यार, अभिव्यक्ति और पसंद की स्वतंत्रता का अधिकार पहले से ही बरकरार है और कोई भी उस अधिकार में हस्तक्षेप नहीं कर रहा है, लेकिन इसका मतलब शादी के अधिकार को प्रदान करना नहीं है।
विवाह जैसे मामले देश की जनता को तय करने हैं- कानून मंत्री।
कानून मंत्री ने आगे कहा कि विवाह संस्था जैसे संवेदनशील और महत्वपूर्ण मामले देश की जनता को तय करने हैं। सर्वोच्च न्यायालय के पास कुछ निर्देश जारी करने की शक्ति है। अनुच्छेद 142 के तहत यह कानून भी बना सकता है। उन्होंने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट को लगता है कि कुछ खालीपन भरना है तो वह कुछ प्रावधानों के साथ ऐसा कर सकता है। पर जब ऐसे मामले की बात आती है जो देश के प्रत्येक नागरिक को प्रभावित करता है तो सुप्रीम कोर्ट को देश के लोगों की ओर से फैसले लेने का मंच नहीं है।
लोगों के ऊपर चीजों को थोपा नहीं जा सकता- किरेन रिजिजू।
किरेन रिजिजू की ये टिप्पणी तब आई जब बुधवार (26 अप्रैल) को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह करते हुए कहा कि ये मुद्दा संसद पर छोड़ दिया जाए। रिपब्लिक समिट में समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर शीर्ष कोर्ट की संविधान पीठ का जिक्र करते हुए कानून मंत्री ने कहा, “अगर पांच बुद्धिमान लोग कुछ तय करते हैं जो उनके अनुसार सही है तो मैं उनके खिलाफ किसी भी तरह की टिप्पणी नहीं कर सकता। हालांकि, अगर लोग ऐसा नहीं चाहते हैं तो उनके ऊपर चीजों को थोपा नहीं जा सकता।”
सरकार बनाम न्यायपालिका का मुद्दा नहीं बनाना चाहते – किरेन रिजिजू।
किरेन रिजिजू ने स्पष्ट किया कि वह इस मामले को सरकार बनाम न्यायपालिका का मुद्दा नहीं बनाना चाहते। उन्होंने कहा, “संसद और विधानसाभाओं में लोगों के चुने हुए प्रतिनिधि होते हैं। वहीं इसके बारे में चर्चा करवाई जा सकती है। सदस्य अपने इलाके के लोगों के विचारों को रख सकते हैं।”
कानून मंत्री ने कहा कि संविधान जजों को चुने जाने की बात नहीं कहता लेकिन हम सभी लोगों की इच्छा का सम्मान करते हैं। जजों को बदलने का भी कोई सिस्टम नहीं है और ना ही किसी जज की जिम्मेदारी तय करने का कोई सिस्टम है। उन्होंने कहा कि कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच में एक लक्ष्मणरेखा है। मोदी सरकार कभी उसको पार नहीं करती।
विवाह की पवित्रता।
भारतीय परिवार की अवधारणा एक पति, एक पत्नी और बच्चे पर आधारित है, जिसकी तुलना समलैंगिक परिवार के साथ नहीं की जा सकती है।
भारत में समलैंगिक विवाह की वैधता।
विवाह के अधिकार को भारतीय संविधान के अंतर्गत मौलिक या संवैधानिक अधिकार के रूप में स्पष्ट रूप से मान्यता प्राप्त नहीं है।
यद्यपि विवाह को विभिन्न वैधानिक अधिनियमों के माध्यम से विनियमित किया जाता है लेकिन मौलिक अधिकार के रूप में इसकी मान्यता केवल भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायिक निर्णयों के माध्यम से विकसित हुई है।
संविधान के अनुच्छेद 141 के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय का निर्णय पूरे भारत में सभी अदालतों के लिये बाध्यकारी है