चीनी सरकार AI का मुंह बंद करने में जुटी। चीन का देता रखती हैं सुरक्षित

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चीनी सरकार अपनी षड्यंत्रकारी नीतियों से बाज नहीं आती है। करना के दौर की बात की जाए यह करो ना काल का जो समय था वह चीन के वहां से आया था उस समय भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में कैसा दौर देखा जहां पर लाखों लोगों को मौत के घाट उतार ते हुए देखा गया और बचाना असंभव सा लग रहा था लेकिन फिर भी भारत में एक ऐसी वैक्सीन बनाई जो सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में बहुत ही लाभदायक साबित हुई परचीन वापस से आप अपनी हरकतें करने लगा है एक तरफ अगर देखा जाए तो चीन अपने डाटा को बहुत सुरक्षित रखता है
कोरोना का डेटा दबाने के बाद अब चीनी सरकार AI का मुंह बंद करने में जुटी  हुई हैं चीन की कम्युनिस्ट सरकार सेंसरशिप का एक नया अभियान छेड़ चुकी है। चीन हमेशा से ही सरकारी सीक्रेसी और दमन की नीतियों के लिए जाना जाता है, मगर अब उसका सेंसरशिप एक नए लेवल पर पहुंच चुका है।

पूरी दुनिया ChatGPT के जवाबों से हैरान है और बड़े कॉरपोरेशन्स से लेकर कई सरकारें भी जेनेरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के इस शाहकार का इस्तेमाल करने की रणनीति बना रही हैं।

चीन में ChatGPT पर बैन है। वजह…सरकार को डर है कि ये चैटबॉट सवालों के ऐसे जवाब न दे दे जो उसकी नीतियों की बुराई करते हों।

हालांकि चीन में भी कई कंपनियां AI बेस्ड चैटबॉट्स और इसी तरह के दूसरे उत्पाद बनाने में जुटी हैं। लेकिन सरकार ने उन पर लगाम कसने के लिए भी ड्राफ्ट नियम जारी कर दिए हैं।

चीन के साइबरस्पेस एडमिनिस्ट्रेशन ने इसी हफ्ते ये नियम जारी किए हैं। इनके मुताबिक हर जेनेरेटिव एआई मॉडल के लिए कम्युनिस्ट पार्टी की नीतियों को मानना अनिवार्य होगा।

चीन में सेंसरशिप का इतिहास पुराना है। लेकिन AI पर सेंसरशिप को लेकर चीन की सरकार भी पसोपेश में है। चीन में AI का बाजार 2021 में 23 बिलियन डॉलर से भी ज्यादा का था। 2026 तक इसके 63 बिलियन डॉलर से ऊपर जाने की उम्मीद है।

ऐसे में सरकार की मुश्किल ये है कि AI को नियंत्रित करते हुए भी बाजार की बढ़त को न रोका जाए।

जानिए, आखिर क्यों चीन को AI के सेंसरशिप की जरूरत महसूस हो रही है? क्या वाकई में चीन की सरकार के लिए खतरा बन सकता है AI…
चीन में 4 जून, 1989 की तारीख सर्च करना भी बैन…

चीन में कम्युनिस्ट पार्टी के शासन जितनी ही पुरानी सेंसरशिप पॉलिसी भी है। सत्ता में आने के बाद कम्युनिस्ट पार्टी ने अपने विरोधियों को दबाने के लिए खुलकर हिंसा का इस्तेमाल किया और इन घटनाओं को लोगों तक न आने देने के लिए सेंसरशिप लागू की।
चीन में आज भी 4 जून, 1989 की तारीख सर्च करना बैन है। कोई भी व्यक्ति चीन में किसी भी इंटरनेट प्लेटफॉर्म पर ये तारीख सर्च नहीं कर सकता है।
दरअसल, इसी तारीख को बीजिंग के थ्यानमेन चौक पर सरकार ने प्रदर्शन कर रहे छात्रों को रोकने के लिए टैंक भेज दिए थे। ये छात्र सरकारी आर्थिक नीतियों और सेंसरशिप का विरोध कर रहे थे।
उनकी मांगों में एक प्रमुख मांग अखबारों से सरकारी नियंत्रण हटाने की भी थी।
चीन के सरकारी आंकड़ों में ही इस नरसंहार में 300 लोगों की मौत हो गई थी। अनाधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक मरने वालों की तादाद 2500 से ज्यादा थी।

इंटरनेट पर आने वाले हर शब्द की निगरानी करती है चीन की सरकार।

चीन में इंटरनेट को लेकर नियम खासे सख्त हैं। सरकार इंटरनेट की हर गतिविधि की निगरानी करती है।

सोशल मीडिया पोस्ट्स लेकर सर्च इंजन पर डाले जाने वाले की-वर्ड्स तक हर चीज की समीक्षा होती है। चीन में सरकार ने इस निगरानी के लिए दुनिया में सबसे बड़ा सिस्टम तैयार किया है, जहां लाखों कर्मचारी हर सेकेंड इसी काम में लगे होते हैं।

2013 में आए चीन के इंटरनेट कानून के मुताबिक अगर किसी व्यक्ति की सोशल मीडिया पोस्ट या किसी भी ऑनलाइन गतिविधि को सरकार आपत्तिजनक माने तो 3 साल तक की जेल हो सकती है।

गलवान में मरने वाले चीनी सैनिकों पर सवाल उठाने वालों को 7 दिन की जेल।

2020 में गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच झड़प हुई थी। चीन में इस घटना पर कुछ लोगों ने सोशल मीडिया पर सवाल उठाए थे और मरने वाले सैनिकों की संख्या पर भी शक जताया था।

कोरोना के ओरिजिन पर चीन ने छुपाया डेटा…वैज्ञानिकों ने गलती से जारी किया था, सरकार ने हटाया।

कोरोना वायरस के ओरिजिन को लेकर जारी बहस से हम सभी वाकिफ हैं। अमेरिका की एक सीनेट कमेटी और दो एजेंसियों ने इस बात पर जोर दिया है कि ये वायरस चीन की एक लैब से लीक हुआ था।

हालांकि कुछ वैज्ञानिक ये मानते हैं कि ये वायरस वुहान के सी-फूड मार्केट में किसी बड़े जानवर के जरिये फैला था। इस थ्योरी से जुड़ा कुछ डेटा चीनी वैज्ञानिकों ने एक अंतरराष्ट्रीय रेपोजिटरी पर शेयर कर दिया था।

ये वो डेटा था जो इससे पहले तक चीन छुपाता रहा था। ये वुहान के उस मार्केट से जुड़ा डेटा था जो डब्ल्यूएचओ की जांच टीम के आने से पहले ही पूरी तरह साफ कर दिया गया था। डब्ल्यूएचओ की टीम को यहां से जेनेटिक सैंपल इकट्‌ठे करने का कभी मौका ही नहीं मिला था।

चीन की सरकार का फरमान…AI को भी पार्टी की नीति माननी होगी।

चीन के साइबरस्पेस एडमिनिस्ट्रेशन ने इसी हफ्ते जेनेरेटिव एआई मॉडल्स के लिए ड्राफ्ट रूल्स जारी किए हैं।

जेनरेटिव एआई मॉडल यानी वो तकनीक जिस पर ChatGPT जैसे चैटबॉट काम करते हैं। सरकार अब इन पर लगाम कसने की तैयारी में है।

दरअसल, ChatGPT पर चीन में बैन है मगर अलीबाबा, सेंसटाइम और बायडू जैसी कई चीनी कंपनियां अपने जेनेरेटिव एआई मॉडल्स पर काम कर रही हैं।

सरकार का कहना है कि इन कंपनियों को कोई भी नया प्रोडक्ट बनाने से पहले सरकार के इन नियमों का पालन सुनिश्चित करना होगा।

हालांकि एक्सपर्ट्स का कहना है कि ये ड्राफ्ट रूल्स हैं यानी इनमें बदलाव भी होंगे। इंडस्ट्री के एक्सपर्ट्स से बात करके सरकार इनमें बदलाव भी कर सकती है।

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