केंद्र ने समलैंगिक विवाह को ‘एलीट कॉन्सेप्ट’ कहा।

kendra vivah

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह का विरोध किया है. केंद्र ने कोर्ट को दिए अपने जवाब में कहा कि ‘अदालतें समलैंगिक विवाह के अधिकार को मान्यता देकर कानून की एक पूरी शाखा को फिर से नहीं लिख सकती हैं क्योंकि ‘एक नई सामाजिक संस्था का निर्माण’ न्यायिक निर्धारण के दायरे से बाहर है। केंद्र ने कहा कि यह एक नई सामाजिक संस्था बनाने के समान है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ के समक्ष मामले की सुनवाई 18 अप्रैल को होनी है।

“कुछ एलीट लोगों की सोच है समलैंगिक विवाह”

केंद्र ने सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाले संविधान पीठ से केंद्र सरकार ने हलफनामा दाखिल कर कहा है कि समलैंगिक शादी एक शहरी संभ्रांत अवधारणा है, जो देश के सामाजिक लोकाचार से बहुत दूर है। बता दें कि इस मुद्दे को लेकर सोशल मीडिया में भी जमकर बहस चल रही है। फेसबुक से लेकर ट्विटर और इंस्टाग्राम तक इस बारे में चर्चा की जा रही है। देशभर के एलजीबीटी कम्युनिटी के लोग इस मामले पर नजर बनाए हुए हैं। ऐसे में सरकार का कोर्ट का जो जवाब आया है कि कम्युनिटी को निराश करने वाला है।

“कोर्ट को इसमें नहीं पडना चाहिए”

सरकार ने अपने जवाब में कहा कि समलैंगिक विवाह कुछ शहरी लोगों की सोच है, कोर्ट को इसमें नहीं पडना चाहिए, यह संसद का काम है। इतना ही नहीं, केंद्र सरकार ने हलफनामा में कहा है, ‘विषम लैंगिक संघ से परे विवाह की अवधारणा का विस्तार एक नई सामाजिक संस्था बनाने के समान है। केवल संसद ही व्यापक विचारों और सभी ग्रामीण, अर्द्ध-ग्रामीण और शहरी आबादी की आवाज, धार्मिक संप्रदायों के विचारों और व्यक्तिगत कानूनों के साथ-साथ विवाह के क्षेत्र को नियंत्रित करने वाले रीति-रिवाजों को ध्यान में रखते हुए निर्णय ले सकती है। अदालत इस मामले में फैसला नहीं ले सकती’

सुप्रीम कोर्ट में केंद्र की अर्जी

दरअसल, केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह मामले में रविवार (16 अप्रैल) को सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर कर कोर्ट से याचिकाओं पर पहले फैसला करने को कहा है. केंद्र सरकार के आवेदन में तर्क दिया गया है कि विधायिका की जवाबदेही नागरिकों के प्रति है और इसे लोकप्रिय इच्छा के अनुसार काम करना चाहिए, खासकर जब पर्सनल लॉ की बात आती है।

18 अप्रैल से मामले में सुनवाई

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ का गठन कर दिया है. इसमें भारत के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, एस रवींद्र भट, पीएस नरसिम्हा और हेमा कोहली शामिल हैं, जोकि 18 अप्रैल से मामले में सुनवाई करेंगे।

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