सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक के एक सिविल जज को बर्खास्त करने का आदेश देते हुए कहा कि ज्यूडिशियल ऑफिसर पूरा जजमेंट लिखवाए बिना ओपन कोर्ट में फैसले का निर्णायक हिस्सा नहीं सुना सकते हैं। सिविल जज बिना पूरा जजमेंट लिखवाए बिना ही ओपन कोर्ट में फैसले का निर्णायक हिस्सा सुना देते थे। इस मामले की जब जांच हुई तो सिविल जज ने इस पूरे घटनाक्रम के लिए अपने स्टेनोग्राफर को ही दोषी ठहराया। जज ने कहा कि उनका स्टेनोग्राफर लापरवाह और काम करने में अक्षम है। इस कारण ही वह पूरा फैसला लिखवा नहीं पाते थे। पूरे मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सिविल जज को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि सिविल जज जो अपने बचाव में तर्क दे रहे हैं वह पंचतंत्र की कहानी जैसा है।
बिना जजमेंट तैयार किये बिना फैसला सुनाना मान्य नहीं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह जज न्यायपालिका के लिए उपयुक्त नहीं है। इसके बाद अदालत ने उनकी बर्खास्तगी का आदेश दिया। जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम और पंकज मितल की बेंच ने कहा कि एक न्यायिक अधिकारी को जजमेंट को पूरा तैयार किए बिना ओपन कोर्ट में अपने फैसले के समापन भाग नहीं सुनाना चाहिए। इस मामले में हाई कोर्ट की पूर्ण अदालत ने प्रशासनिक पक्ष की एक जांच में जज के खिलाफ आरोप साबित होने के बाद उनकी की नौकरी समाप्त करने का निर्णय लिया था।
स्टेनोग्राफर की अक्षमता को दोष देना अस्वीकार्य – SC
बेंच ने कहा कि, “यह सच है कि कुछ आरोप न्यायिक घोषणाओं और न्यायिक निर्णय लेने की प्रक्रियाओं के इर्द-गिर्द घूमते हैं और यह कि वे अपने आप में, बिना किसी और चीज के, विभागीय कार्यवाही का आधार नहीं बन सकते हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि जज का यह बचाव कि अनुभव की कमी और स्टेनोग्राफर की अक्षमता को दोष देना पूरी तरह से अस्वीकार्य है।
बेंच ने कहा, “हमारे सामने ऐसा कोई मामला नहीं आया है जहां हाईकोर्ट ने जुर्माने के आदेश को खारिज करते हुए यह माना हो कि अपराधी के खिलाफ आगे कोई जांच नहीं होगी, लेकिन इस मामले में उच्च न्यायालय ने एक नया न्यायशास्त्र बनाते हुए ठीक वैसा ही किया है।”