आज 29 मार्च बुधवार को दुर्गा अष्टमी है, चैत्र नवरात्रि का आठवा दिन दुर्गा अष्टमी का होता है। चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को दुर्गा अष्टमी का व्रत रखा जाता है। इस दिन मां दुर्गा के आठवें स्वरुप मां महागौरी की पूजा होती है। महागौरी की पूजा से आयु, सुख और समृद्धि में वृद्धि होती है। कष्ट और दुख दूर होते हैं. बैल पर सवार मां महागौरी सफेद वस्त्र धारण करने वाली चतुर्भुज देवी हैं. वे त्रिशूल धारण करती हैं. आज दुर्गा अष्टमी के दिन शोभन और रवि योग बना है. दुर्गा अष्टमी के दिन कन्या पूजा और हवन भी करते हैं। इस दिन लोग कुल देवी की पूजा के बाद कन्या पूजन भी करते हैं. ज्योतिष में मां महागौरी का संबंध शुक्र ग्रह से है. इनकी अराधना से वैवाहिक जीवन में सुख-शांति आती है।
महागौरी का स्वरूप।
देवीभागवत पुराण में बताया गया है कि मां महागौरी के सभी वस्त्र और आभूषण सफेद रंग के हैं इसलिए माता को श्वेताम्बरधरा भी कहा जाता है। अपनी तपस्या से इन्होंने गौर वर्ण प्राप्त किया था। उत्पत्ति के समय यह आठ वर्ष की थीं, इसलिए इन्हें नवरात्र के आठवें दिन पूजा जाता है। अपने भक्तों के लिए यह अन्नपूर्णा स्वरूप हैं। यह धन, वैभव और सुख-शांति की अधिष्ठात्री देवी हैं। सांसारिक रूप में इनका स्वरूप बहुत ही उज्जवल कोमल, श्वेतवर्ण और श्वेत वस्त्रधारी है। देवी एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में डमरू लिए हुए हैं। वहीं एक हाथ अभय और एक हाथ वरमुद्रा में है।
दुर्गा अष्टमी 2023 शुभ मुहूर्त।
पंचांग के अनुसार, चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 28 मार्च मंगलवार को शाम 07 बजकर 02 मिनट से शुरु हुई है और 29 मार्च को रात 09 बजकर 07 मिनट पर इस तिथि का समापन होगा. आज प्रात:काल से लेकर देर रात 12 बजकर 13 मिनट तक शोभन योग है, वहीं रवि योग रात 08 बजकर 07 मिनट से 30 मार्च को प्रात: 06 बजकर 14 मिनट तक है. आज प्रात: 06 बजकर 15 मिनट से सुबह 08 बजकर 01 मिनट तक भद्रा है।
पूजा विधि।
इस दिन देसी घी का दीपक जलाते हुए मां के कल्याणकारी मंत्र ओम देवी महागौर्यै नम: मंत्र का जप करें और माता को लाल चुनरी अर्पित करें। इसके बाद रोली, अक्षत, सफेद फूल, नारियल की मिठाई आदि पूजा की चीजें अर्पित करें। अगर आप अग्यारी कर रहे हैं तो रोज की चरह लौंग, बताशे, इलायची, हवन सामग्री आदि चीजें अर्पित करें। इसके बाद कपूर या दीपक से पूरे परिवार के साथ महागौरी की आरती करें और माता के जयाकरे लगाएं। इसके बाद दुर्गा मंत्र, दुर्गा चालीसा, दुर्गा सप्तशती आदि का पाठ करें।