भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक 7 अक्टूबर 2024 से 9 अक्टूबर 2024 तक होने जा रही है. इस बैठक में मुख्य मुद्दा रेपो रेट (Repo Rate) होगा, जिसे लेकर किसी कटौती की उम्मीद नहीं जताई जा रही है. देश में मौजूदा खुदरा मुद्रास्फीति और वैश्विक परिस्थितियों को देखते हुए यह निर्णय लिया जा सकता है.
रेपो रेट में कटौती की संभावना नहीं
आरबीआई की एमपीसी बैठक का मुख्य उद्देश्य देश की मौद्रिक नीति को तय करना है. हालांकि इस बार रेपो रेट में कोई कमी की संभावना नहीं दिख रही है. पिछले कुछ समय से खुदरा मुद्रास्फीति एक गंभीर मुद्दा बनी हुई है, और इसकी दरें नियंत्रण से बाहर जाने की स्थिति में हैं. इसके अलावा, पश्चिम एशिया में राजनीतिक और आर्थिक स्थिति भी तनावपूर्ण होती जा रही है, जिसका असर कच्चे तेल और अन्य आवश्यक वस्तुओं की कीमतों पर पड़ सकता है.
खुदरा मुद्रास्फीति का प्रभाव
भारत में महंगाई का सबसे बड़ा कारण खुदरा मुद्रास्फीति है, जो आर्थिक स्थिति को अस्थिर बनाए हुए है. आरबीआई के लिए इसका स्थिरीकरण एक प्रमुख चुनौती बनी हुई है. जब मुद्रास्फीति अधिक होती है, तो केंद्रीय बैंक अक्सर ब्याज दरों को स्थिर या उच्च रखता है ताकि बाजार में पैसे की अधिक आपूर्ति न हो. इससे यह सुनिश्चित किया जाता है कि महंगाई पर कुछ हद तक काबू पाया जा सके.
पश्चिम एशिया के हालात और तेल की कीमतें
इस समय वैश्विक बाजार पर पश्चिम एशिया के संकट का गहरा प्रभाव दिख रहा है. खासकर तेल की कीमतों में उथल-पुथल के कारण कच्चे तेल की लागत में वृद्धि हो सकती है, जिससे भारत जैसे तेल आयातक देशों पर वित्तीय दबाव बढ़ जाएगा. कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों का सीधा असर देश की महंगाई दर पर पड़ता है, क्योंकि पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ने से अन्य वस्तुओं की कीमतें भी बढ़ती हैं.
एमपीसी में नए सदस्यों की नियुक्ति
हाल ही में, सरकार ने आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति का पुनर्गठन किया है. रामसिंह, सौगत भट्टाचार्य और नागेश कुमार को नए बाहरी सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया है, जिन्होंने आशिमा गोयल, शशांक भिड़े और जयंत आर वर्मा का स्थान लिया है. इन नए सदस्यों का मौद्रिक नीति पर क्या दृष्टिकोण होगा, यह बैठक के बाद स्पष्ट हो पाएगा.
निष्कर्ष
आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति की यह बैठक देश की आर्थिक स्थिति के लिए महत्वपूर्ण है. हालांकि, वर्तमान हालात को देखते हुए, रेपो रेट में किसी भी प्रकार की कटौती की संभावना कम ही नजर आ रही है. खुदरा मुद्रास्फीति और वैश्विक अस्थिरता को देखते हुए आरबीआई अपने रुख में स्थिरता बनाए रख सकता है, ताकि देश की आर्थिक स्थिति को स्थिर रखा जा सके.