अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में कटौती के बाद यह सवाल उठ रहा है कि इसका भारत में विदेशी निवेश पर क्या असर होगा. बुधवार रात फेडरल ओपेन मार्केट कमेटी ने अपनी नीतिगत दरों में 50 आधार अंकों की कटौती करके उन्हें 4.75-5.0 प्रतिशत कर दिया. पहले यह दरें 5.25-5.50 प्रतिशत थीं. हालांकि विशेषज्ञों को इससे कम कटौती की उम्मीद थी, लेकिन यह फैसला भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक से पहले आया है, जो सात से नौ अक्टूबर के बीच होनी है.

सरकार की प्रतिक्रिया
भारत के आर्थिक मामलों के सचिव, अजय सेठ ने कहा कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने अपनी अर्थव्यवस्था की भलाई को ध्यान में रखकर यह कदम उठाया है. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि भारत में विदेशी निवेश पर इस कटौती का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ेगा. सेठ ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक अपनी नीतियों को भारतीय अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं के आधार पर तय करेगा.
मीडिया से बातचीत के दौरान अजय सेठ ने फेडरल रिजर्व के इस फैसले को वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए सकारात्मक कदम बताया. उन्होंने कहा कि ब्याज दरों में कटौती से भारत में विदेशी निवेश पर कोई महत्वपूर्ण असर पड़ने की उम्मीद नहीं है. उनका कहना था, “हमें यह देखना होगा कि अन्य वैश्विक अर्थव्यवस्थाएं किस तरह प्रतिक्रिया करती हैं.”
आरबीआई की आगामी बैठक पर प्रभाव
फेडरल रिजर्व का यह निर्णय भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की आगामी बैठक से पहले आया है, जो अक्टूबर के पहले सप्ताह में होगी. इस बैठक में आरबीआई भी अपने रेपो रेट को लेकर कोई निर्णय ले सकता है. जब सेठ से पूछा गया कि क्या आरबीआई ब्याज दरों में कटौती करेगा, तो उन्होंने कहा कि यह निर्णय पूरी तरह भारतीय अर्थव्यवस्था के हितों पर आधारित होगा.
आरबीआई ने फरवरी 2023 से ही रेपो रेट को 6.50 प्रतिशत पर स्थिर रखा हुआ है, ताकि देश में महंगाई पर नियंत्रण रखा जा सके. इस साल अगस्त में, भारत की खुदरा मुद्रास्फीति लगातार दूसरे महीने 3.65 प्रतिशत रही, जो कि आरबीआई के 4 प्रतिशत के लक्ष्य से कम है.
विशेषज्ञों की राय
अर्थशास्त्रियों का मानना है कि फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में कटौती से भारतीय बाजार में बड़ी हलचल की संभावना कम है. भारतीय रिजर्व बैंक पहले से ही अपने नीतिगत दरों को स्थिर बनाए रखने के पक्ष में है. फरवरी से अब तक आरबीआई ने महंगाई को नियंत्रित रखने के लिए रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया है.
फेडरल रिजर्व के फैसले के बावजूद, भारतीय अर्थव्यवस्था के मौजूदा हालात को ध्यान में रखते हुए यह उम्मीद नहीं की जा रही है कि आरबीआई जल्द ही ब्याज दरों में कटौती करेगा. विशेषज्ञों का मानना है कि आरबीआई देश की आंतरिक आर्थिक स्थितियों को ध्यान में रखते हुए कदम उठाएगा, न कि केवल वैश्विक संकेतों के आधार पर.

निष्कर्ष
फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में की गई कटौती से भारतीय अर्थव्यवस्था या विदेशी निवेश पर बहुत बड़ा असर नहीं पड़ेगा. आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति की आगामी बैठक में भारतीय अर्थव्यवस्था के हिसाब से निर्णय लिया जाएगा.