एसबीआई प्रमुख का बयान
भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के नवनियुक्त चेयरमैन, सीएस शेट्टी ने हाल ही में कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) फिलहाल ब्याज दरों में कटौती करने की संभावना नहीं दिखा रहा है. उन्होंने स्पष्ट किया कि जब तक खाद्य मुद्रास्फीति पर सुधार नहीं होता, तब तक रेपो रेट में कमी की उम्मीद नहीं की जा सकती है. शेट्टी के अनुसार, नीतिगत दरों में किसी प्रकार की रियायत मिलने के लिए हमें 2025 की चौथी तिमाही तक इंतजार करना पड़ सकता है.
खाद्य मुद्रास्फीति पर दबाव
शेट्टी ने अपने बयान में कहा कि आरबीआई की प्राथमिक चिंता खाद्य मुद्रास्फीति है, जो ब्याज दरों में कटौती की संभावनाओं को सीमित करती है. जब तक खाद्य मुद्रास्फीति में सुधार नहीं होता, तब तक रेपो रेट में किसी प्रकार की नरमी की संभावना कम है. आरबीआई ने फरवरी 2023 से रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया है, और इसका स्तर 6.5 प्रतिशत पर बना हुआ है.
अमेरिकी फेडरल रिजर्व का प्रभाव
अमेरिकी फेडरल रिजर्व के ब्याज दरों में संभावित कटौती से वैश्विक वित्तीय बाजारों में बदलाव की उम्मीद की जा रही है। फेडरल रिजर्व की दरों में कटौती से अन्य देशों के केंद्रीय बैंक भी ब्याज दरों में बदलाव के लिए प्रेरित हो सकते हैं। हालांकि, शेट्टी ने कहा कि आरबीआई स्वतंत्र रूप से अपने नीतिगत निर्णय लेगा और फेडरल रिजर्व की कटौती का सीधा प्रभाव नहीं पड़ेगा।
मौद्रिक नीति समिति की भूमिका
आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी), जिसके अध्यक्ष शक्तिकांत दास हैं, अक्टूबर 2024 में बैठक करेगी. एमपीसी का प्रमुख उद्देश्य मुद्रास्फीति के आंकड़ों का विश्लेषण करके नीतिगत दरों पर निर्णय लेना है. जुलाई 2024 में भारत की खुदरा मुद्रास्फीति 3.60 प्रतिशत से बढ़कर अगस्त में 3.65 प्रतिशत हो गई थी. हालांकि यह आंकड़ा अभी भी आरबीआई द्वारा निर्धारित 4 प्रतिशत के लक्ष्य से कम है, लेकिन खाद्य मुद्रास्फीति का उच्च स्तर, जो अगस्त में 5.66 प्रतिशत रहा, नीतिगत दरों में कटौती की संभावनाओं को प्रभावित कर रहा है.
रेपो रेट में स्थिरता
अगस्त 2024 की एमपीसी बैठक में आरबीआई ने रेपो रेट को 6.5 प्रतिशत पर स्थिर रखा, और यह लगातार नौवीं बैठक थी, जिसमें दरों में किसी प्रकार का बदलाव नहीं किया गया. पिछली बैठक में, छह में से चार एमपीसी सदस्यों ने रेपो रेट को यथास्थिति में बनाए रखने के पक्ष में मतदान किया था, जबकि दो बाहरी सदस्यों ने दर में कटौती का समर्थन किया था. आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने भी कहा था कि ब्याज दरों में नरमी का फैसला मासिक आंकड़ों पर निर्भर नहीं करेगा, बल्कि खाद्य मुद्रास्फीति के दीर्घकालिक रुझानों पर आधारित होगा.
एसबीआई सहायक कंपनियों पर शेट्टी की राय
शेट्टी ने यह भी स्पष्ट किया कि एसबीआई अपनी सहायक कंपनियों में हिस्सेदारी के विनिवेश पर फिलहाल कोई विचार नहीं कर रहा है. उन्होंने कहा कि अगर सहायक कंपनियों को पूंजी की जरूरत होती है, तो बैंक निश्चित रूप से इस पर विचार करेगा, लेकिन अभी किसी बड़ी सहायक कंपनी को पूंजी की आवश्यकता नहीं है.
सारांश
कुल मिलाकर, सीएस शेट्टी ने स्पष्ट किया कि भारतीय अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति के दबाव के कारण, निकट भविष्य में ब्याज दरों में कटौती की संभावना नहीं है. भारत में रेपो रेट में कमी के लिए 2025 तक इंतजार करना पड़ सकता है.