क्या हैं लिव इन रिलेशन
प्रेमी जोड़े का शादी किए बिना लंबे समय तक एक घर में साथ रहना लिव-इन रिलेशनशिप कहलाता है। लिव-इन रिलेशनशिप की कोई कानूनी परिभाषा अलग से कहीं नहीं लिखी गई है। आसान भाषा में इसे दो व्यस्कों (Who is eligible for live-in relationship?) का अपनी मर्जी से बिना शादी किए एक छत के नीचे साथ रहना कह सकते हैं।
कई कपल इसलिए लिव-इन रिलेशनशिप में रहते हैं, ताकि यह तय कर सकें कि दोनों शादी करने जितना कंपैटिबल हैं या नहीं। कुछ इसलिए रहते हैं क्योंकि उन्हें पारंपरिक विवाह व्यवस्था कोई दिलचस्पी नहीं होती है।
लिव इन रिलेशनशिप को लेकर गाइडलाइन बनाने की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी है. कोर्ट ने कहा कि क्या आप इन लोगों की सुरक्षा को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहे हैं या लोगों को लिव इन रिलेशनशिप में नहीं रहने देना चाहते हैं? इस मामले में केंद्र सरकार का क्या रोल है. ऐसी याचिकाओं पर जुर्माना लगाना चाहिए. दरअसल, लिव इन रिलेशनशिप में हो रही हत्याओं का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है. सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की गई है और इसमें लिव इन में रहने वाले जोड़ों का पंजीकरण अनिवार्य करने की मांग की गई है.
सरकार को कड़े नियम और गाइडलाइन बनाने के आदेश देने की मांग की गई है. नियमों पर अमल सुनिश्चित करने का मेकेनिज्म विकसित करने की भी प्रार्थना की गई है. लिव इन रिलेशनशिप में लगातार बढ़ते धोखे, झांसे और हिंसक अपराधों को रोकने के लिए ये याचिका दाखिल की गई है. याचिका में कहा गया है कि श्रद्धा कभी निक्की यादव और कभी कोई लेकिन अब कोई और नहीं होना चाहिए.
कोर्ट ने ऐसी मामलो पर जुर्माना लगे।।
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायाधीश पीएस नरसिम्हा और न्यायधीश जेबी पादरीवाला की बेंच ने सोमवार (20 मार्च 2023) को मामले की सुनवाई की। लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर दायर की गई इस याचिका पर कोर्ट ने याचिकाकर्ता ममता रानी से पूछा, “यह क्या है? लोग यहाँ कुछ भी लेकर आते हैं। हम ऐसे मामलों पर जुर्माना लगाना शुरू करेंगे। किसके साथ रजिस्ट्रेशन? केंद्र सरकार के साथ? केंद्र सरकार का लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले लोगों से क्या लेना-देना है?”
दरअसल, याचिकाकर्ता ममता रानी ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने वाले लोगों के लिए रजिस्ट्रेशन अनिवार्य करने की माँग की थी। इस याचिका में कहा गया था, “माननीय न्यायालय ने कई बार लिव-इन में रहने वाले लोगों की रक्षा की है। कोर्ट ने ऐसे कई फैसले सुनाए हैं जो लिव-इन पार्टनरशिप में रहने वालों की सुरक्षा कर रहे हैं। चाहे वह महिला हो, पुरुष हो या यहाँ तक कि लिव-इन से पैदा हुए बच्चों को भी कोर्ट ने सुरक्षा दी है।”
याचिका में यह भी कहा गया था कि लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर कोई खास नियम और दिशानिर्देश नहीं हैं। इसलिए इस रिलेशनशिप में हो रहे अपराधों में बढ़ोतरी हुई है। इसमें बलात्कार और हत्या जैसे प्रमुख अपराध शामिल हैं। याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में लिव-इन पार्टनर द्वारकिए हाल के दिनों में किए गए अपराध का जिक्र भी किया था। इसमें दिल्ली के महरौली में हुई श्रद्धा वॉकर की हत्या की बात भी कही गई थी।
ममता रानी नामक महिला ने इस जनहित याचिका में न केवल लिव-इन रिलेशनशिप से संबंधित कानून बनाने की माँग की थी। बल्कि सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया था कि वह केंद्र सरकार को लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे लोगों की सही संख्या का पता करने का आदेश जारी करे। याचिका में यह तर्क दिया गया था कि लिव-इन में रहने वाले लोगों का सही आँकड़ा इसके लिए रजिस्ट्रेशन अनिवार्य करने के बाद ही हासिल किया जा सकता है।
याचिका में यह भी कहा था कि लिव-इन रिलेशनशिप में केंद्र सरकार द्वारा रजिस्ट्रेशन न कर पाना संविधान के अनुच्छेद 19 और अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है। हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने तमाम दलीलें सुनने के बाद याचिकाकर्ता को फटकार लगाते हुए याचिका खारिज कर दी।