सुस्त हो रही है ब्रिटेन की इकोनॉमी।

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कभी जिस देश ने भारत (India) पर लंबे समय तक राज किया. आज उस देश की अर्थव्यवस्था बुरे दौर से गुजर रही है. हम बात कर रहे हैं ब्रिटेन (Britain) की. हालां की अंग्रेजी हुकूमत से आजादी मिलने बाद जहां सात दशकों में ही भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती इकोनॉमी (Economy) बनकर उभर रहा है, तो वहीं ब्रिटिश अर्थव्यवस्था से जूझ रहा है। ब्रिटिश अर्थव्यवस्था में 300 साल की सबसे बड़ी गिरावट देखने को मिली।
भारत के लिए अच्छी खबर दी है कि भारत जो कभी आर्थिक अर्थव्यवस्था से जूझता था तो आज वह पांचवें नंबर बड़ी अर्थव्यवस्था बन कर उभरा है। वहीं पर छठे नंबर के अर्थव्यवस्था पर पहुंच गया है

कामगार नहीं बढ़े तो आर्थिक गतिविधियां घटेंगी और अंतत: इकोनॉमी की रफ्तार सुस्त होगी।ब्रिटेन में कोविड महामारी का बुरा दौर बीत चुका है…मगर महामारी के बाद की दिक्कतें खत्म नहीं हो रही हैं।
सुस्त हो रही है ब्रिटेन की इकोनॉमीजल्दी रिटायर हुए लोगों को काम पर लौटने का ऑफर…मगर कोई काम पर आने को तैयार ही नहीं हैं

दरअसल, ये दिक्कतें किसी लॉन्ग कोविड सिम्प्टम या नए हेल्थ रिस्क से जुड़ी नहीं हैं। परेशानी ये है कि कोविड के दौरान घटी देश की वर्कफोर्स अब तक बढ़ नहीं पाई है।

उस दौर में काम छोड़ने वाले लोग अब काम पर लौटने को तैयार नहीं हैं। इसीलिए सरकार अब उन लोगों से काम पर लौटने की अपील कर रही है जिन्होंने कोविडकाल में समय से पहले रिटायरमेंट ले लिया था।

कई एनालिस्ट्स का मानना है कि ब्रिटिश इकोनॉमी के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी है। बैंक ऑफ इंग्लैंड ने भी ब्रिटिश इकोनॉमी की ग्रोथ की संभावना को कम कर दिया है। इसकी बड़ी वजह मानी जा रही है कि लेबर फोर्स में बढ़ोतरी मुश्किल है।

कोविड के दौरान कामगारों का आंकड़ा वैसे तो पूरी दुनिया में घटा था, लेकिन ब्रिटेन में महामारी का दौर बीतने के बाद भी ये आंकड़ा बढ़ा नहीं।

ऑफिस फॉर नेशनल स्टैटिस्टिक्स के आंकड़ों के मुताबिक काम करने लायक उम्र के ऐसे लोगों की तादाद जो ‘इकोनॉमिकली इनएक्टिव’ हैं अब भी फरवरी, 2020 के मुकाबले 4.90 लाख ज्यादा है।

ब्रिटेन के वित्त मंत्री जेरेमी हंट का मानना है कि लेबर फोर्स के घटते आंकड़ों को संभालने में अर्ली रिटायरमेंट लेने वालों की भूमिका अहम होगी। तभी इस साल की शुरुआत में सरकार की ओर से जारी अपील की टैग लाइन ही थी…‘ब्रिटेन को आपकी जरूरत है।’

सरकार पहले ही 50 साल के ऊपर के लोगों के लिए नए स्किल्स ट्रेनिंग प्रोग्राम्स की घोषणा कर चुकी है। इस बार का बजट भी ‘बैक टू वर्क बजट’ के तौर पर प्रचारित किया जा रहा है।

मगर अर्ली रिटायरमेंट लेने वालों को काम पर वापस लाना भी खासा चुनौती भरा हो सकता है। लंदन स्थित थिंक टैंक रिजोल्यूशन फाउंडेशन के अर्थशास्त्री लुईस मर्फी कहते हैं, ‘अर्ली रिटायरमेंट लेने वाले ज्यादातर लोग आज आरामदेह जीवन बिता रहे हैं। उनका मन बदलना सरकार के लिए मुश्किल है।’

अर्ली रिटायरमेंट लेने वाले इन लोगों में ज्यादातर ऐसे प्रोफेशनल और साइंटिफिक इंस्टीट्यूशन्स में काम करते थे, जहां उनकी तनख्वाह काफी ज्यादा थी। ऐसे ज्यादातर लोग न सिर्फ खुद के घर के मालिक हैं, बल्कि प्राइवेट पेंशन से काफी पैसा भी पा रहे हैं।

दरअसल, ब्रिटेन के पेंशन कानून के मुताबिक सरकारी पेंशन फंड से तो 66 साल की उम्र के बाद ही पेंशन निकाल सकते हैं, लेकिन प्राइवेट पेंशन फंड से 55 साल की उम्र से ही पेंशन मिल सकती है।

न्यूयॉर्क टाइम्स ने अर्ली रिटायरमेंट लेने वाले कुछ लोगों से बात की। उनमें से ज्यादातर अपने मनपसंद काम के साथ एक आरामदेह जिंदगी जी रहे हैं। काम पर लौटने की उनकी कोई इच्छा नहीं दिखती।

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