शीतला सप्तमी या बासौडा।। क्यों; लगता है माता को बासी खाने भोग।।

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कहा जाता है कि भारत विभिन्न समाजों व संप्रदायों से मिलकर बना एक लोक बहुलतावादी देश है। जहां पर हर त्योहार व पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है।
इसी सनातन परंपरा को कायम रखते हुए शहरों-गांवों में कई समाजजन बसौड़ा पर्व पूर्ण श्रद्धा-भक्ति के साथ मनाते हैं। जहां केवल महिलाएं ही नहीं, अपितु पुरुष भी इस पूजन में बराबरी से भाग लेते हैं।

14 मार्च को मनाएंगे शीतला सप्तमी

देश के तमाम हिस्सों में 14मार्च को महिलाये उत्साह के साथ शीतला सप्तमी मनाएंगी। कुछ लोग 15को भी मनाएंगे। घरों को शुद्ध और पवित्र करते हुए एक रात पहले ठंडा खाना बनाया जाता हैं। तैयार किये गए ठंडे खाने का भोग लेकर महिलाएं प्रातः काल से ही शीतला माता मंदिर में पहुंचने लगी। प्रदेश के सभी शीतला माता मंदिरों पर सुरक्षा को लेकर प्रशासन के खासे इंतज़ाम भी किये जाते हैं, माता की पूजा अर्चना को लेकर काफी उल्लास के साथ लंबी-लंबी कतारे देखी जाती हैं। महिलाओं ने शीतला माता को भोग लगाने के बाद घरों पर हल्दी के छापे लगाती हैं। 

ऐसी मान्यता है कि शीतला सप्तमी और शीतला अष्टमी की पूजा करने के बाद शीतला माता की कथा सुनने से माता शीतला प्रसन्न होती हैं और पूजा का सम्पूर्ण फल प्राप्त होता है। शीतला माता को अत्यंत शीतल माना जाता है और बच्चों की कई बीमारियों से माँ रक्षा करती हैं। 

बसौड़ा में मीठे चावल, कढ़ी, चने की दाल, हलुवा, रावड़ी, बिना नमक की पूड़ी, पूए आदि एक दिन पहले ही रात्रि में बनाकर रख लिए जाते है। तत्पश्चात सुबह घर व मंदिर में माता की पूजा-अर्चना कर महिलाएं शीतला माता को बसौड़ा का प्रसाद चढ़ाती हैं।

पूजा करने के बाद घर की महिलाओं ने बसौड़ा का प्रसाद अपने परिवारों में बांट कर सभी के साथ मिलजुल कर बासी भोजन ग्रहण करके माता का आशीर्वाद किया जाता है।

ज्योतिषी कहते हैं कि ये दिन माता शीतला को प्रसन्न करने का सबसे उत्तम दिन है। यही कारण है कि प्रत्येक व्यक्ति इस दिन माता की विधि विधान से पूजा करता है। कहा जाता है जो जातक इस दौरान माता को प्रसन्न कर लेता है उसे कभी जीवन में कोई रोग परेशान नहीं करता। इतना ही नहीं कोढ़ जैसी बीमारी से भी शीतला माता छुटकारा दिला देती हैं।

महिलाए सुबह 4 बजे उठकर करती हैं पूजा।

महिलाएं सबसे पहले सुबह 4:00 बजे उठकर स्नान करती है उसके बाद ठंडा बासी खाने को माता के दरबार में लेकर जाती है और ऐसा भी कहा जाता है कि जब माता के दरबार में महिलाएं जाती हैं तब वह वहां पर घी के दीपक को ठंडा घी का दीपक और साथ ही ठंडी अगरबत्ती रखती है यानी की अगरबत्ती नहीं जलाई जाती है और साथ ही जो बासा खाना होता है उसका माता को भोग लगाया जाता है उसके बाद पूजा की जाती है उनकी आरती की जाती है फिर महिलाएं घर आकर सभी को वह बासा खाना खिलाती है इससे घर में शांति बनी रहती है

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