एवोकाडो की खेती कर कमा सकते मोटा मुनाफा। पर पहले जान ले ये जरुरी बाते।

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एवोकैडो की खेती का प्रचलन भारत में धीरे-धीरे बढ़ रहा है। वर्तमान में समय में भारत के दक्षिणी राज्य तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र और कर्नाटक में एवोकैडो की व्यावसायिक खेती की जा रही है। एवोकाडो एक विदेशी फल है. दुनिया में एवोकाडो की सबसे बड़ी खेती लैटिन अमेरिका में होती है. एवोकाडो पोषक तत्वों से भरपूर होता है और इसलिए आज जब लोग स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हैं तो इसका बाजार लगातार बढ़ रहा है।

किस जलवायु में की जा सकती है इसकी खेती।

एवोकैडो दक्षिण अमरीकी उपमहाद्वीप का पौधा है, जिस वजह से इसके पौधों को उष्ण कटिबंध जलवायु की आवश्यकता होती है | 20 से 30 डिग्री तापमान वाले क्षेत्र जहां पर 60 फीसदी तक नमी पायी जाती है, वहां इसकी पैदावार अच्छी प्राप्त होती है | इसके पौधे ठंडी में 5 डिग्री तक के तापमान को आसानी से सहन क़र लेते है, किन्तु 5 डिग्री से कम तापमान होने पर पौधा ख़राब होने लगता है | इसके अलावा 40 डिग्री से अधिक तापमान होने पर फल और फूल दोनों ही मुरझा क़र गिरने लगते है |

कैसे करे खेती।

एवोकैडो के बीजों से नर्सरी में पौध को तैयार क़र उनकी रोपाई की जाती है. एवोकैडो की नर्सरी तैयार करने के लिए बीजो को पॉलीथीन बैग या नर्सरी बेड पर सीधे तौर पर बुवाई के लिए इस्तेमाल कर सकते है. नर्सरी में एवोकाडो के पौधों को तैयार होने में 6 महीने तक लग जाते है. इसके बाद आप इन पौधों की खेत में रोपाई कर सकते है.

एवोकाडो के पौधों की रोपाई के तैयार खेत 90 सेमी x 90 सेमी के आकार के गड्डे खोदें और गड्ढों को 1:1 के अनुपात में गोबर की खाद और ऊपरी मिट्टी से भर दें. एवोकाडो पौधे लगाने के लिए पौधे से पौधे की दूरी 8 मीटर से 10 मीटर के बीच रखे. पहाड़ी ढलानों पर जून से जुलाई की अवधि में 10 मीटर x 10 मीटर की दूरी को प्राथमिकता दी जाती है।

सिंचाई और उपज

शुष्क और गर्म जलवायु में पौधों को 3 से 4 सप्ताह में पानी दें। सर्दियों के मौसम में मोल्चिंग विधि से नमी की कमी दूर कर सकते हैं। बारिश में जरूरत पड़ने पर ही पौधों को पानी दें। जल भराव होने पर खेत से पानी निकालें। सिंचाई के लिए ड्रिप विधि का इस्तेमाल करें। एवोकैडो का फल पौध रोपाई के 5 से 6 वर्ष में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाता है। कटाई के बाद फल नरम होते हैं, जिन्हें पकने में 5 से 10 दिन का समय लगता है। एवोकैडो की उपज उन्नत क़िस्म, खेत प्रबंधन और पेड़ की उम्र पर निर्भर करती है।

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