जीवनशेली में हो रहे लगातार बदलाव का सबसे ज्यादा असर हमारे दिल पर ही पड़ा है। आये दिन ह्रदय संबधी बीमारियों में इजाफा हो रहा है। हार्ट अटैक से मौत हो या दिल की बीमारिया कई तरह से हमारे हार्ट को असर करती है। इसी बीच अब आइआइटी कानपुर ने कृत्रिम हृदय बनाने में सफलता प्राप्त की है।
आइआइटी कानपुर के वैज्ञानिकों और हृदय रोग विशेषज्ञ ने मिलकर कृत्रिम दिल तैयार किया है जिससे हृदय का प्रत्यारोपण हो सकेगा। जानवरों पर इसका परीक्षण फरवरी या मार्च से शुरू होगा. परीक्षण में सफलता मिलने के बाद दो वर्षों में इंसानों में प्रत्यारोपण किया जा सकता है।
दो साल में हुआ कृत्रिम हृदय तैयार
आइआइटी कानपुर में 10 वैज्ञानिकों और डॉक्टरों की एक टीम ने दो साल में इस कृत्रिम हृदय तैयार किया है। बड़ी संख्या में डॉक्टर द्वारा हृदय प्रत्यारोपण की सलाह के बाद वैज्ञानिकों और डॉक्टरों ने इसे 2 साल में तैयार किया।
कोविड-19 ने सिखाया सबक
करंदीकर ने कहा, कोविड-19 ने हमें कुछ कड़ा सबक सिखाया. कोविड से पहले भारत में वेंटिलेटर नहीं बनते थे. कोरोना संक्रमितों की जान बचाने के लिए भारतीय वैज्ञानिकों और डॉक्टरों ने सिर्फ 90 दिनों में वेंटिलेटर तैयार किया।
प्रो. अभय करंदीकर ने आगे कहा कृत्रिम हृदय का उद्देश्य शरीर में खून को सही रूप से सभी अंगों तक पहुंचाना होगा यदि कामयाबी मिलती है तो इससे प्रत्यारोपण भी किया जा सकेगा।हालांकि वर्तमान में अभी इसमें काम चल रहा है। प्रो अभय ने कहा कि कोरोना काल ने हमें कई तरह से मजबूत बनाया है।भारत में चिकित्सकों और वैज्ञानिकों ने मिलकर इलाज के कई नए तकनीक तैयार की और संक्रमितों की जान बचाई है।विदेशों से 10 से 12 लाख रुपए में आने वाले वेंटिलेटर को महज 90 दिन में तैयार कर सिर्फ ढाई लाख रुपए में ही भारत के वैज्ञानिकों ने उपलब्ध कराया।
‘देश में चिकित्सकों और स्वास्थ्यकर्मियों की भारी कमी’ – प्रो. अभय
प्रो. अभय ने देश में चिकित्सकों और स्वास्थ्यकर्मियों के कम संख्या पर भी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि एक हजार व्यक्तियों पर सिर्फ 0.8 चिकित्सक ही हैं।इस कमी को तकनीकी से हल किया जा सकता है। इसके लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, टेलीमेडिसिन, ईसंजीवनी और ई-फार्मेसी जैसी तकनीक को बढ़ाकर 5जी से जोड़ा जा सकता है जिससे अधिक से अधिक मरीजों को समुचित इलाज मिल सके।विशिष्ट अतिथि डा. प्रभात सिथोले ने कहा कि भावी चिकित्सकों को कक्षाओं के साथ मरीजों और तीमारदारों से बातचीत कर उनकी मानसिक स्थिति को भी समझना चाहिए।मरीजों का भरोसे के साथ आप एक बेहतर चिकित्सक में बन सकते हैं और साथ ही अस्पताल के कर्मचारियों के साथ भी समन्वय जरूर बनाकर रखें।