समय के साथ नई पीढ़ी में अपने कैरियर को लेकर जागरूकता बढ़ी है। आज से ठीक 40 साल पहले तक कैरियर के जिन विकल्पों को तत्कालीन पीढ़ी ठीक से जानती भी नहीं थी उन पीढ़ी के पेरेंट्स को अपने बच्चों के लिए उपयुक्त कैरियर निर्धारित करने के लिए वर्तमान माहौल को समझना किसी स्कूलिंग से कम नहीं है।
बच्चों ने इस साल दसवीं अथवा 12वीं की परीक्षा पास की है। अब यह सभी पेरेंट्स अपने बच्चों के लिए बेहतर कैरियर ऑप्शन की संभावनाएं तलाशते हुए एक कोचिंग से दूसरी कोचिंग भटक रहे हैं। पिछले कई वर्षों से यह देखने में आया है कि फीस के रूप में बड़ी राशि वसूलने वाले परंपरागत ट्रेडिशनल हिंदी इंग्लिश मीडियम स्कूलों में कक्षा 12वीं में मैथ्स बायोलॉजी साइंस स्ट्रीम के बच्चे केवल नाम के लिए स्कूल जाते हैं।
स्कूल की फीस जमा करने के साथ उनका अधिकांश समय फिजिक्स केमेस्ट्री मैथमेटिक्स बायोलॉजी की कोचिंग लेने में भी जाता है। सपना होता है 12वीं के बाद जी एडवांस और मेंस के अतिरिक्त एनआईआईटी सीपीईटी सीपीएमटी जैसी देशभर में प्रतिष्ठित प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी। इस संबंध में श्री संस्कार श्रीवास्तव ने अपना अनुभव शेयर करते हुए बताया कि अब कक्षा दसवीं के बाद ही बच्चे 12वीं के बाद दी जाने वाली इंफेक्शन की चिंता में दुबले होते नजर आ रहे हैं।
दसवीं के बाद अधिकांश बच्चे परंपरागत स्कूलों में जाना नहीं चाहते हैं। वह इसे अपने समय की बर्बादी समझते हैं। इन बच्चों को कक्षा दसवीं के बाद से ही जी एडवांस जी मैंस एनएनआईटी आईआईटी नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट जैसी परीक्षाओं में शामिल होने के लिए योग्य बनाने के सपने कोचिंग्स में दिखाए जा रहे हैं। पेरेंट्स की चिंता यह है कि उनको परंपरागत स्कूलों के साथ इन कोचिंग्स की भारी-भरकम इसके लिए राशि भी जुटाने होगी। जिन पेरेंट्स की आय कम होती है उनके लिए अपने इन बच्चों के लिए स्कूल और कोचिंग का खर्चा जुटा पाना बहुत मुश्किल होता जा रहा है लेकिन बच्चों के कैरियर को देखते हुए ऐसे पेरेंट्स चिंतित बने रहते हैं।
बढ़ रही डमी स्कूल की तलाश – शिक्षक संस्कार श्रीवास्तव ने बताया कि हमारे जमाने में केवल पीईटी पीएमटी का ज्यादा प्रचलन था लेकिन अब बदलते हुए समय को देखते हुए दसवीं के बाद से ही पेरेंट्स और बच्चे एक ऐसा स्कूल चाहते हैं जहां उनको रोज रेगुलर नहीं जाना पड़े। जहां फीस कम से कम हो और जो केंद्र तथा राज्य सरकार से विधिवत मान्यता प्राप्त हो। छत्तीसगढ़ के करीब हर नगर में स्कूलिंग के कंसेप्ट को लेकर यही स्थिति है।
इधर कोचिंग वाले पेरेंट्स को अपने बच्चों को दसवीं के बाद ही अपनी कोचिंग में भर्ती करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। उनके द्वारा पेरेंट्स स्टूडेंट की व्यवहारिक समस्या को देखते हुए बकायदा डमी स्कूल की व्यवस्था करने की गारंटी भी दी जा रही है। स्कूल के साथ कोचिंग एकसाथ करना स्टूडेंट्स के लिए संभव नहीं होता क्योंकि टाइमिंग बाधा बन रही है।