हिंदू नववर्ष की शुरुआत चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होती है और इस दिन गुड़ी पड़वा का पर्व मनाया जाता है. इसी दिन से चैत्र नवरात्रि की भी शुरुआत होती है. बता दें कि गुड़ी पड़वा का पर्व आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और महाराष्ट्र में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है. गुड़ी का अर्थ विजय पताका होता है और इस दिन पताका यानि ध्वज लगाया जाता है और मान्यता है कि इससे सुख-समृद्धि का आगमन होता है. साथ ही इसके पीछे महत्वपूर्ण वजह भी छिपी हुई है. इस साल गुड़ी पड़वा का पर्व 22 मार्च 2023, बुधवार के दिन मनाया जाएगा. आइए जानते हैं आखिर क्यों मनाया जाता है
अगर मध्य प्रदेश की बात करें तो जगह-जगह पर मेलों का आयोजन किया जाता है लोग उत्साह मनाते हैं अपने घरों में मीठी पुरम पुरी के साथ इसकी शुरुआत करते हैं। इस दिन को बड़ा ही महत्वपूर्ण दिन माना गया है।। खासकर किसानों के लिए आज का दिन बड़ा ही महत्वपूर्ण माना जाता है। खासकर किसान आज के दिन अपने खेतों में नए वर्ष की शुरुवात मैं किसानी मैं काम करने वाले लोगो को रखते हैं।
गुड़ी पड़वा का महत्व हिंदू धर्म में बहुत ही खास माना गया है। महाराष्ट्र में इस दिन अपने घर पर गुड़ी फहराने की परंपरा है। मान्यता है कि घर में गुड़ी फहराने से हर प्रकार की नकारात्मक शक्ति दूर होती है। इस दिन से वसंत आ आरंभ माना जाता है और इसे दक्षिण भारत के राज्यों में फसल उत्सव के रूप में मनाते हैं।
भारत के विभिन्न भागों में इस पर्व को भिन्न-भिन्न नामों से मनाया जाता है। गोवा और केरल में कोंकणी समुदाय इसे ‘संवत्सर पड़वो’ नाम से मनाता है। कर्नाटक में ये पर्व ‘युगाड़ी’ नाम से जाना जाता है। आन्ध्र प्रदेश और तेलंगाना में ‘गुड़ी पड़वा’ को ‘उगाड़ी’ नाम से मनाते हैं। कश्मीरी हिन्दू इस दिन को ‘नवरेह’ के तौर पर मनाते हैं। मणिपुर में यह दिन ‘सजिबु नोंगमा पानबा’ या ‘मेइतेई चेइराओबा’ कहलाता है। इस दिन चैत्र नवरात्रि भी आरंभ होती है।
सामान्य तौर पर इस दिन हिन्दू परिवारों में गुड़ी का पूजन किया जाता है और इस दिन लोग घर के दरवाजे पर गुड़ी लगाते हैं और घर के दरवाजों पर आम के पत्तों से बना बंदनवार सजाते हैं। ऐसा माना जाता है कि ये बंदनवार घर में सुख, समृद्धि और खुशियां लाता है।
क्यों मनाते हैं ये पर्व ?
इस पर्व के मनाने के पीछे विशेष महत्व भी है। इससे कई कहानियां भी जुड़ी हैं। पौराणिक कथाओं में कहा जाता है कि इस दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था और मानव सभ्यता की शुरुआत हुई थी। अत: मुख्यत: ब्रह्माजी और उनके के जरिए बनीं इस सृष्टि के प्रमुख देवी-देवताओं, यक्ष-राक्षस, गंधर्व, ऋषि-मुनियों, नदियों, पर्वतों, पशु-पक्षियों और कीट-पतंगों का ही नहीं, रोगों और उनके उपचारों तक का भी पूजन किया जाता है। इसी दिन से नया संवत्सर शुरू होता है। अत: इस तिथि को ‘नवसंवत्सर’ भी कहते हैं।
इसी दिन हुई हिंदू पंचाग की रचना?
इस दिन से हिन्दुओं का नववर्ष आरंभ होता है, कहा जाता है महान गणितज्ञ भास्कराचार्य द्वारा इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, मास और वर्ष की गणना कर पंचांग की रचना की गई थी। इसी कारण हिन्दू पंचांग का आरंभ भी गुड़ी पड़वा से ही होता है।
हिन्दुओं में पूरे साल के दौरान साढ़े तीन मुहूर्त बहुत शुभ माने जाते हैं। ये साढ़े तीन मुहूर्त हैं–गुड़ी पड़वा, अक्षय तृतीया, दशहरा और दीवाली, दिवाली को आधा मुहूर्त माना जाता है।