हरियाली तीज: विवाहित महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण है यह त्योहार, जानिए इसका इतिहास और महत्व

download 9 1

प्रत्येक वर्ष हरियाली तीज को पूरे देश में उत्सवपूर्ण रूप से मनाया जाता है। इस पर्व का आयोजन भगवान शिव और माता पार्वती के मिलन के प्रतीक के रूप में किया जाता है। इस अवसर पर सुहागन महिलाएं शिव-पार्वती की पूजा करके अपने पति के साथ सुखी और समृद्धि से भरपूर वैवाहिक जीवन की कामना करती हैं। यदि आप अपने प्रियजनों के साथ हरियाली तीज मना रहे हैं, तो आपको इस पर्व के महत्वपूर्ण पहलुओं, इतिहास, और इसके पीछे की रोचक बातों के बारे में जानकारी प्राप्त होने चाहिए।

सावन महीने के शुक्ल पक्ष के तीसरे दिन आने वाला हरियाली तीज का उत्सव वर्षभर की अध्यात्मिकता और प्राकृतिक सौन्दर्य की महिमा को चिरंतन करता है। द्रिक पंचांग के अनुसार, इस बार हरियाली तीज 19 अगस्त को मनाई जाएगी, जिसकी तृतीया तिथि 18 अगस्त को रात 8:01 बजे से प्रारंभ होकर 19 अगस्स्त को रात 10:19 बजे तक रहेगी। यह त्योहार हरतालिका तीज से एक महीने पहले आता है, जिसे इस बार 18 सितंबर को आयोजित किया जाएगा, और यह उपलब्धियों और परंपराओं की गहरी धारों को दर्शाता है जो हमारे संस्कृति में महत्वपूर्ण हैं।

पुरानी कहानियों के अनुसार, उस दिन की यादें ताजगी और प्रेम की मिसाल हैं जब सुंदरी राजकुमारी ने प्रियंका नामक फूल को अपने राजा पिता के बगीचे से छुड़ाया था। उसकी साहसी कड़ी को देखकर देवदूत भाग्यश्री ने उसे दिव्य रत्नों से सजीव किया था। उसी दिन से त्योहारों की शुरुआत होती है, जब फूलों की बगीचों में रंगीन खिलखिलाहट और प्रेम की गहराईयाँ मिलती हैं। आजकल, इस मान्यता का पालन करते हुए भी लोग हरियाली तीज में सुंदर गहनों में आपने आपको सजाते हैं और प्रियंका फूल की तरह अपने प्रियजनों के पास उम्मीद और प्यार लेकर पहुँचते हैं।

hariyali teej 2

हरियाली तीज के खास मौके पर, हिंदू महिलाएं भगवान शिव और मां पार्वती की विशेष पूजा आयोजित करती हैं। इस पर्व के दिन, सुहागन महिलाएं अपने हाथों पर अद्वितीय मेहंदी लगाने का आनंद लेती हैं, हरे या लाल रंग के परिधान में सजकर अपनी सौंदर्यता को बढ़ाती हैं और हरे रंग की चूड़ियां धारण करने का महत्वपूर्ण संकेत मानती हैं। इस खास मौके पर कई जगहों पर तीज के मेले आयोजित किए जाते हैं, जहां लोग एक साथ आकर परंपरागत गीतों और नृत्यों का आनंद लेते हैं। तीज के दिन, विवाहित और अविवाहित महिलाएं निर्जला व्रत अपनाकर भगवान की कृपा की कामना करती हैं। यह पर्व न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह महिलाओं के सशक्तिकरण और उनकी सामाजिक भूमिका में महत्वपूर्ण योगदान को भी प्रकट करता है।

व्रत रखने वाली महिलाओं के लिए सफेद और काले वस्त्रों का उपयोग करना एक परंपरागत विचार से बचाना चाहिए। यह न केवल एक रंग की बात है, बल्कि एक मानसिकता के परिणाम भी है। यदि हम इसे आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखें, तो ये रंग आत्मा की पवित्रता और साफ़ता की संकेत होते हैं। व्रत रखने वाली महिला के लिए यह न केवल आहार के प्रति नियमितता का प्रतीक होते हैं, बल्कि उनके मानसिक स्थिति को भी संतुलित और प्रेरित रखने में मदद करते हैं। इस तरीके से, रंगों का उपयोग एक आध्यात्मिक और भावनात्मक पहलू को दर्शाता है जो शारीरिक और मानसिक रूप से पवित्रता की दिशा में महत्वपूर्ण है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Home
Google_News_icon
Google News
Facebook
Join
Scroll to Top