मोरारजी देसाई भारत के पूर्व प्रधानमंत्री है। यह पहले प्रधानमंत्री थे, जो काँग्रेस के नही जनता दल के थे. इन्होने 1971 में चल रहे भारत पाक के रिश्तो को सुधारने के लिए शान्ति का रास्ता तय करने का सोचा।
हम आपको यहाँ मोरारजी देसाई के जीवन का वह किस्सा बता रहे है जब उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ था और भारत पूर्व प्रधानमंत्री की जान जाने से बची थी।
4 नवंबर 1977 को हुआ था हादसा
तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को 4 नवंबर 1977 को दिल्ली से जोरहाट पहुँचना था। इसके लिए मोरारजी देसाई ने पुष्पक विमान से यात्रा किया जाना तय किया। हालांकि उड़ान भरने से पहले अधिकारियों ने मोरारजी देसाई से पुष्पक विमान में ना जाकर बोईंग 737 में जाने का आग्रह किया था। पर मोरारजी देसाई नहीं माने और उन्होंने सामन्य विमान से ही यात्रा किया जाना तय किया।
इस विमान की कप्तानी डी’लिमा कर रहे थे और इस दुर्घटना में फ्लाइट लेफ्टिनेंट रवीन्द्रन व ग्राउंड क्रू को छोड़ कर पूरी कॉकपिट क्रू की मृत्यु हो गयी थी।
कैसे हुई थी दुर्घटना
विमान दिल्ली से शाम सवा पाँच बजे उड़ा। विमान को लगभग 8 बजे तक जोरहाट पहुँचना था। पर असम में प्रवेश करते ही विमान का ज़मीन से संपर्क टूट गया और विमान हवा में ही इधर उधर उड़ने लगा। फ्लाइट लेफ्टिनेंट रवीन्द्रन ने अचानक लैंडिंग लाइट स्विच ऑन होते देखी और उन्हें अंदाज़ा हुआ कि विमान अब लैंड करने वाला है। लेकिन, पुष्पक एक धमाके के साथ ज़मीन से जा कर टकराया और फिसलते हुए कुछ दूरी पर जाकर रुका। विमान का दायाँ इंजन अभी भी जल रहा था।
विमान के पिछले हिस्से में बैठे लोगो की जान बच गई वही कॉकपिट में बैठे अफसर शहीद हो गए। घायल हुए सभी सदस्यों के साथ मोरारजी देसाई को भी पास के गांव ले जाया गया। प्रधानमंत्री के साथ उनके बेटे कांति भाई देसाई, आईबी के निदेशक जॉन लोबो और अरुणांचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पी. के थुंगोन थे। जिन्हे ग्राउंड क्रू की मदद से पास के गाँव में सुरक्षित पहुंचा दिया गया था।
कहा जाता है की अगर उस दिन गांव के लोगो ने मदद नहीं की होती तो प्रधानमंत्री को बचाना भी मुश्किल होता। दुर्घटना के कुछ समय पश्चात्त ही, पास के गाँव के लोग हाथों में मशाल लिए विमान की मदद के लिए पहुंच गए।