ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को वट सावित्री व्रत किया जाता है। इस बार ये व्रत 19 मई को है। इसी दिन शनि जयंती भी मनाई जा रही है जिससे इस दिन का महत्व और भी बढ़ गया है। वट सावित्री व्रत के दिन वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ और मां सावित्री की पूजा की जाती है। नारद पुराण में इसे ब्रह्म सावित्री व्रत भी कहा गया है. सुहागिन महिलाएं इस दिन पति की लंबी उम्र की कामना के साथ बिना कुछ खाए निर्जल व्रत करती हैं।
सावित्री-सत्यवान की कथा सुनने के है महत्व।
वट सावित्री में स्त्रियों द्वारा वट यानि बरगद की पूजा की जाती है। इस दौरान इसके नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा आदि सुनने का भी विधान है। पौराणिक कथा के अनुसार वट वृक्ष का पूजन और सावित्री-सत्यवान की कथा का स्मरण करने के कारण ही यह व्रत वट सावित्री के नाम से प्रसिद्ध हुआ। ये व्रत के दौरान की जानी वाली पूजा से लंबी आयु, सुख-समृद्धि और अखंड सौभाग्य प्राप्ति के साथ-साथ गृहकलह से भी छुटकारा मिलता है। इसीलिए कथा श्रवण करने के बाद वट सावित्री की आरती भी करनी चाहिए।
मुहूर्त
पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि 18 मई 2023 को रात 09 बजकर 42 मिनट पर शुरू होगी और इसका समापन 19 मई 2023 को रात 09 बजकर 22 मिनट पर होगा. उदयातिथि के अनुसार ये व्रत 19 मई को रखा जाएगा।
वट सावित्री व्रत की शुरुआत
पौराणिक मान्यता के अनुसार देवी सावित्री ने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा के लिए लगातार 3 दिन व्रत रखा था. यही वजह है कि कुछ जगह वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा या अमावस्या के 3 दिन पहले से ही शुरू हो जाता है. ये व्रत त्रयोदशी तिथि से शुरू होता है और अमावस्या के दिन बरगद के पेड़ की पूजा और परिक्रमा कर सौभाग्य की कामना की जाती है।
व्रत का महत्व
मान्यता है कि जो स्त्रियां सावित्री व्रत करती हैं वे पुत्र-पौत्र-धन प्राप्त कर चिरकाल तक पृथ्वी पर सब सुख भोग कर पति के साथ ब्रह्मलोक में स्थान पाती हैं। यह व्रत सुहागिनों के लिए सौभाग्यवर्धक, पापहारक, दुःखप्रणाशक माना गया है. इसका फल करवा चौथ की व्रत के रखने के समान ही प्राप्त होता है।