खंडवा में 4 साल की मासूम बच्ची से दुष्कर्म और हत्या के प्रयास के मामले में स्पेशल कोर्ट ने आराेपी को शुक्रवार को फांसी की सजा सुनाई। कोर्ट ने इस मामले में कड़ा रुख अपनाते हुए स्पष्ट कहा कि आरोपी को तब तक फांसी पर लटकाया जाए जब तक उसकी मौत न हो जाए। विशेष न्यायाधीश प्राची पटेल ने टिप्पणी में कहा कि पीड़ित बच्ची की अदम्य इच्छा शक्ति व जीजीविषा के कारण ही वह जीवित रही, वर्ना आरोपी ने पीड़िता की हत्या करने में कोई कमी नहीं छोड़ी थी। इसलिए सिर्फ आजीवन कारावास या दंडादेश पर्याप्त नहीं हो सकता है। मृत्युदंड ही जरूरी है।
मासूम के साथ हुए रेप के इस केस में 6 महीने के भीतर अनुसंधान पूरा कर कार्य दिवस के 4 महीने 23 दिन में कोर्ट में 36 गवाहों के बयान कराना किसी चुनौती से कम नहीं था। आरोपी को कठोर सजा मिले, इसके लिए इन्वेस्टिगेशन कर रहे सब इंस्पेक्टर सुभाष नावड़े ने कई रातें थाने पर ही गुजारीं। जांच के दौरान कई बार वे घर ही नहीं गए। इधर, कोर्ट में आरोपी का कबूलनामा और फॉरेसिंक जांच में डीएनए रिपोर्ट भी फांसी की सजा का आधार बनी।
पहले जान लेते हैं क्या हैं पूरा घटनाक्रम।
डीपीओ हुक्मलवार ने बताया कि टिठिया जोशी इलाके के एक खेत में मजदूर परिवार रहता था। इनके घर के पास ही एक ढाबा है, वहां आरोपी राजकुमार भी काम करता था। 30-31 अक्टूबर 2022 की दरमियानी रात मजदूर परिवार की चार वर्षीय बेटी झोपड़ी में सो रही थी। आरोपी राजकुमार वहां पहुंचा और उसने बच्ची का मुंह दबाकर अपहरण कर लिया। फिर घर से करीब 100 मीटर दूर ले जाकर गन्ने के खेत में उसके साथ दुष्कर्म किया। फिर गला दबाकर उसे मारना चाहा। जब बच्ची बेहोश हो गई तो मृत समझ आम के बगीचे के पास झाड़ियों में उसे फेंक दिया। अगले दिन सुबह परिवार जागा तो बच्ची गायब थी। पुलिस उसे तलाशती रही। परिजन को राजकुमार पर शक था। आरोपी को पुलिस ने पकड़कर सख्ती दिखाई तब उसने जुर्म कबूला। आरोपी की निशानदेही पर 14 घंटे बाद बच्ची को अर्धनग्न हालत में झाड़ियों से बरामद किया। खून से लथपथ बच्ची की सांसे चल रही थी। उसे इंदौर के अस्पताल ले जाया गया, तब जाकर उसकी जान बची।
आरोपी को इन साक्ष्यों ने पहुंचाया फांसी के तख्ते तक।
आरोपी को फांसी की सजा दिलवाने में तत्कालीन एसपी विवेक सिंह, सीएसपी पूनमचंद्र यादव के साथ रामनगर चौकी प्रभारी सुभाष नावड़े, महिला थाना प्रभारी सुलोचना गहलोत की टीम ने कड़ी मेहनत की। जिसके दम पर अभियोजन के पक्ष में ये फैसला आया है। गवाहों से लेकर फॉरेंसिक जांच इस केस का मुख्य आधार बने। इसके आधार पर कोर्ट में आरोपी दोषी सिद्ध हुआ।
जांचकर्ता चौकी प्रभारी सुभाष नावड़े के अनुसार पुलिस के 12, परिवार व जनता से जुड़े 15 लोग, 4 डॉक्टर यानी इस तरह कुल 44 लोगों की गवाही इस केस में हुई। 36 गवाहों ने कटघरे में खड़े होकर बयान दिए। साथ ही आरोपी ने जुर्म कबूल किया, उसकी निशानदेही पर बच्ची को झाड़ियों से बरामद किया। घटनास्थल पर आरोपी की चप्पल ने मौजूदगी बयां की। इनके अलावा आरोपी ने बच्ची की पेंट के साथ खुद के खून सने कपड़े ढाबे के पास थैले में छिपाए थे। उन कपड़ों में लगे खून के धब्बों के सैंपल लिए तो उसकी डीएनए रिपोर्ट भी पॉजिटिव आई।
सजा सुनने के बाद आरोपी के चेहरे पर नहीं दिखा कोई भाव।
उधर, सजा सुनने के बाद भी आरोपी राजकुमार के चेहरे पर कोई भाव नहीं दिखा। सुनवाई के दौरान भी वो कोर्ट रूम के भीतर कटघरे में गर्दन झुकाकर खड़ा था। सजा सुनने के बाद भी वैसे ही भाव थे। कोर्ट से जेल जाते हुए भी गर्दन झुकाकर गया। न्यायाधीश ने राजकुमार को धारा 6 लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम के तहत मृत्युदंड और धारा 363, 450, 201 भारतीय दंड विधान में 7-7 वर्ष के कठोर कारावास व 307 भारतीय दंड विधान में आजीवन कारावास की सजा सुनाई। आरोपी पर आठ हजार रुपए का अर्थदंड भी लगाया गया है।