भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी आज। जानें चतुर्थी तिथि और मुहूर्त।

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हिंदू पंचांग के अनुसार,भालचन्द्र संकष्टी चतुर्थी व्रत आज यानि 11 मार्च को है। चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी का व्रत रखने का विधान है. धार्मिक मान्यताओं अनुसार जो व्यक्ति ये व्रत करता है उसे भगवान गणेश का महा वरदान अवश्य प्राप्त होता है. हर माह में आने वाली चतुर्थी का अपना अलग महत्व होता है। वहीं चैत्र माह की कृष्ण पक्ष को पड़ने वाली चतुर्थी को भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस बार संकष्टी चतुर्थी 11 मार्च को मनाई जा रही है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से विघ्नहर्ता भगवान गणेश अपने भक्तों की सभी परेशानियां और बाधाएं दूर करते हैं

भालचन्द्र संकष्टी चतुर्थी तिथि और मुहूर्त

पंचांग के अनुसार, चतुर्थी तिथि 10 मार्च की रात 09 बजकर 42 बजे से होकर 11 मार्च की रात 10 बजकर 05 मिनट तक रहेगी। ऐसे में संकष्टी चतुर्थी व्रत 11 मार्च को रखा जा रहा है। वहीं इस दिन चंद्रोदय रात 10 बजकर 03 मिनट पर होगा।

भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी व्रत की पूजा विधि।

भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी के दिन सुबह उठकर नित्य कर्म और स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लें. इसके बाद गणेश की प्रतिमा या तस्वीर पर पूजा-अर्चना करें. सबसे पहले जल से आचमन करें। इसके बाद फूल, माला, रोली, अक्षत, दूर्वा आदि अर्पित करें. पूजा के दौरान गणेश जी को तिल, गुड़, लड्डू, दुर्वा, चंदन और मोदक अर्पित करें. सारा दिन व्रत रहें. रात में चांद निकलने से पहले गणेश भगवान की पूजा करें एवं चंद्रमा को अर्घ्य दें।

भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी कथा।

एक बार की बात है राक्षसों के प्रकोप के कारण देवता काफी परेशान हो गए। सभी राक्षसों ने मिलकर देवताओं को परेशान कर रखा था ।उनसे परेशान होकर सभी देवता भगवान शिव के पास मदद मांगने पहुंचे और मदद की गुहार लगाने लगे। देवताओं ने शिवजी को सारी परेशानी बताई और उनसे समस्या का हल मांगा।
वहीं उस समय शिवाजी पार्वती के साथ भगवान कार्तिकेय और गणेश जी भी बैठे थे। भगवान शिव ने देवताओं को कहा कि आपकी परेशानी का हल कार्तिकेय और गणेश जी में से एक अवश्य करेंगे तभी भगवान शिव ने अपने पुत्रों से पूछा कि- “तुम में से कौन देवताओं की मदद कर सकता है और राक्षसों का संहार कर सकता है” ? तभी भगवान कार्तिकेय और गणेश जी ने कहा कि पिताजी हम दोनों ही देवताओं की मदद कर सकते हैं। शिवजी भगवान ने फैसला किया कि तुम दोनों में से जो भी मेरी परीक्षा पर खरा उतरेगा उसे ही देवताओं की मदद के योग्य माना जाएगा वहीं उनकी मदद करेगा।
भगवान शिव ने शर्त रखी कि तुम दोनों में से जो भी सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके वापस आएगा वही देवताओं की मदद करने के लिए जाएगा शिव जी भगवान की यह शब्द सुनकर दोनों ने हामी भर दी और यह सुनते ही भगवान कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर सवार होकर पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए चल पड़े लेकिन, गणेश भगवान वहीं पर खड़े रहे वह मन ही मन सोचने लगे कि मैं अपने वाहन मूषक पर पृथ्वी की परिक्रमा कैसे कर सकता हूं तभी उन्होंने एक उपाय सूझा। अपनी जगह से उठकर भगवान गणेश माता पार्वती और शिवजी भगवान की परिक्रमा करने लगे गणेश जी ने सात बार परिक्रमा की और कहा पिताजी मेरी परीक्षा पहले पूरी हुई यह देखकर सभी हैरान हो गए कि गणेश भगवान ने ये क्या किया तभी वहां कार्तिकेय भी आ गए उन्होंने कहा की परीक्षा मैंने पहले पूरी की।

गणेश जी ने कहा पिताजी “आप मेरे माता पिता है और माता पिता के चरणों में सारी दुनिया है यहीं सारा जगत है आपकी परिक्रमा करने से मेरी पृथ्वी की परिक्रमा पूर्ण हुई” उनकी ऐसी बात सुनकर सभी देवता गणेश जी की जय जयकार करने लगे।

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