भारत में मंदिरों का क्या महत्व हैं देखिए ये खबर।।

MNDIR

भारत कई विविध संस्कृतियों और धर्मों का घर है,जिसे 64 करोड़ देवी देवतायों का निवास स्थान भी माना जाता है। आपको पूरे देश में विभिन्न शैलियों और वास्तुकला के साथ हजारों मंदिर मिलेंगे जो विभिन्न देवी देवतायों को समर्पित है। अपनी अनूठी कहानी और इतिहास के अलावा यह मंदिर भक्तो की मनोकामना पूर्ति के लिए भी जाने जाते है जिस वजह से दूर दूर से श्रद्धालु कठिन तप करके अपनी मुरादें लेकर यहाँ आते हैं। 

मध्य प्रदेश के रतलाम शहर में माता महालक्ष्मी का एक अति प्राचीन मंदिर स्थित है। रतलाम के माणक इलाके में स्थित इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां जो भी मां लक्ष्मी से श्रद्धा से मांगों वह पूरा अवश्य होता है। खास बात ये है कि इस मंदिर में गहने चढ़ाने की परंपरा है। मंदिर में गहनों को चढ़ाने की परंपरा दशकों पुरानी है। पहले बताया जाता है कि प्राचीन काल में यहां के राजा राज्य की समृद्धि के लिए मंदिर में धन आदि चढ़ाते थे और अब भक्त भी यहां जेवर, पैसे माता के चरणों में चढ़ाने लगे हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से उनके घरों में मां लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है

भारत का ऐतिहासिक शहर उज्जैन अपने मंदिरों, प्राचीन स्मारकों और अन्य पर्यटक आकर्षणों के लिए बेहद प्रसिद्ध है। हर साल यहां भक्तों, धार्मिक प्रेमियों, अनुयायियों, इतिहास के शौकीनों की भारी संख्या में भीड़ देखने को मिलती है।
 इन सबके अलावा उज्जैन अपने 12 साल में एक बार होने वाले भव्य कुंभ मेले की मेजबानी करने के लिए भी जाना जाता है। इस दौरान करोड़ों की संख्या में लोगों की भीड़ यहां देखी जाती है। उज्जैन तीर्थयात्रा का एक महत्वपूर्ण स्थान है और शैवों के लिए सबसे पवित्र हिंदू शहरों में से एक है। 

और आजकल बाबा बागेश्वर धाम का प्राचीन मंदिर सुर्खियों में हैं।। जहा सिर्फ देश से ही नहीं विदेश के लोग भी बाबा बागेश्वर धाम के दर्शन करने आ रहे हैं। हनुमान जी का यह प्राचीन मंदिर लोगों की सभी मनोकामना को पूर्ण कर रहा है

मध्य प्रदेश के सतना जिले में त्रिकूट पर्वत पर माता मैहर देवी का मंदिर है. मैहर का मतलब होता है ‘मां का हार’. मान्यताओं के अनुसार यहां मां सती का हार गिरा था, इसीलिए इसकी गणना शक्तिपीठों में की जाती है. यहां मां का दर्शन पाने के लिए करीब 1,063 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं. सतना का मैहर मंदिर मां शारदा का देश में अकेला मंदिर है. मंदिर से जुड़ी मान्यता है कि शाम की आरती होने के बाद जब मंदिर के कपाट बंद करके सभी पुजारी नीचे आ जाते हैं तब भी यहां मंदिर के अंदर से घंटी और पूजा करने की आवाज आती है. लोगों की मान्यता है कि मां के भक्त आल्हा अभी भी पूजा करने मंदिर में आते हैं. अक्सर सुबह की आरती आल्हा और ऊदल ही करते हैं.

गुजरात के जामनगर में बाल हनुमान मंदिर स्थित है। यहां हनुमान जी के बाल स्वरूप के दर्शन पूजन करने का विधान है। कहा जाता है कि लगभग 400 साल पहले जामनागर की स्थापना के साथ ही इस मंदिर की स्थापना भी हुई थी। मंदिर में साल 1964 से श्रीराम नाम का जाप लगातार किया जा रहा है। जिसमें मंदिर के ही भक्त मिलकर श्रीराम नाम की धुनी को निरंतर जारी रखे हुए हैं। लोग दूर दूर से बजरंगबली के दर्शन करने आते हैं।

तमिलनाडू के तिरुचिल्लापल्ली में भगवान गणेश का एक प्राचीन मंदिर स्थापित है। इस मंदिर की उच्चीपिल्यार गणपति मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर को लेकर दो कथाएं प्रचलित हैं पहली के अनुसार यहां भगवान गणेश भगवान रंगनाथ की मूर्ति भूमि पर रखने से रावण उनसे क्रोधित हो गया था। और उन पर रावण ने प्रहार किया था। दूसरी कथा के अनुसार भगवान गणेश से विभिषण क्रोधित हो गया था और विभिषण ने उन पर प्रहार किया था। कहा जाता है, कि गणेश जी की मूर्ति पर प्रहार का निशान आज भी देखा जा सकता है। ये मंदिर एक उंची पहाड़ी पर स्थित है, जहां तक पहुंचने के लिए लगभग 400 सीढ़ियां चढ़कर जाना पड़ता है। लोग दूर दूर से भगवान गणेश के इस स्वरूप के दर्शन करने पहुंचते

उत्तराखंड के रानीखेत में प्राचीन झूला देवी मंदिर स्थापित है। ये पवित्र मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है और इसे झूला देवी के रूप में जाना जाता है। इसका कारण ये है कि यहाँ देवी मां के दर्शन पालने पर बैठे हुए होते हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार यह मंदिर 700 वर्ष पुराना है। बताया जाता है कि 1959 में मूल मूर्ति की चोरी हो गई थी। इस मंदिर को इसके परिसर में लटकी घंटियों की संख्या से भी जाना जाता है। कहते हैं कि झूला देवी अपने भक्तों की इच्छाओं को पूरा करती हैं और इच्छाऐं पूरी होने के बाद, भक्त यहाँ तांबे की घंटी चढाते हैं।

सांवलिया सेठ मंदिर राजस्थान के उदयपुर में स्थित है। कहा जाता है कि भगवान कृष्ण की अनन्य भक्त मीरा बाई सांवलिया सेठ की पूजा करती थीं। कथा के अनुसार ये मुर्ति दयाराम नाम के एक अनन्य भक्त के पास थी। आक्रांताओं के डर से दयाराम जी ने इन मूर्तियों को बागुंड-भादसौड़ा के खुले मैदान में एक वट-वृक्ष के नीचे गड्ढा खोद कर दबा दिया। मीरा बाई जब साधुओं के साथ कृष्ण भजनों में लीन कहीं जा रही थी तभी उन्हे एक ब्राह्णण के पास ये मूर्ति मिली थी।

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