भारत की आबादी ने चीन को पीछे छोड़ा।आर्थिक तौर पर एक महाशक्ति बनेगा भारत

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बहुत से भारतीय यह मानते हैं कि देश की अनेक समस्‍याओं का कारण भारत की विशाल आबादी है। ऐसे लोग उन नीति नियंताओं को कठघरे में खड़ा करते हैं जिनकी अदूरदर्शिता के कारण आबादी पर अंकुश नहीं लगा और भारत आबादी के मामले में चीन से आगे निकल गया।

भारत को विश्‍व का सबसे अधिक आबादी वाला देश।

भारत को विश्‍व का सबसे अधिक आबादी वाला देश घोषित कर दिया है। भारत की वास्तविक आबादी का पता तो जनगणना के बाद ही चलेगा जो कि 2021 से लंबित है, लेकिन संयुक्त राष्ट्र के आकलन ने विश्व का ध्यान भारत की बढ़ती आबादी की तरफ खींचा है। हम 1960 से 1980 के बीच के उस दौर को नहीं भूल सकते जब राजनीतिक विमर्श यह था कि भारत की विशाल आबादी संसाधनों पर बोझ है और उसे नियंत्रित किया जाना चाहिए।

भारत की आबादी का एक बड़ा हिस्सा युवा।

यह सही है कि भारत की आबादी का एक बड़ा हिस्सा युवा है, लेकिन वह भली तरह शिक्षित नहीं है। भारत की बहुत बड़ी आबादी दिशाहीन है और उसके पास रोजगार के पर्याप्त अवसर भी नहीं हैं। भारत की आबादी एक चुनौती थी और आगे भी रहेगी, लेकिन इस चुनौती को अवसर में बदला जा सकता है, यदि उसका नियोजन सही तरह किया जाए। युवा आबादी के जो लाभ गिनाए जा रहे हैं, उनसे इनकार नहीं, लेकिन इस आबादी के समुचित उपयोग के लिए जो योजनाएं बनाई जा रही हैं, उन्हें जमीन पर सही तरह उतारना एक चुनौती बना हुआ है।

आज भी बहुत से भारतीय यह मानते हैं कि देश की अनेक समस्‍याओं का कारण भारत की विशाल आबादी है। ऐसे लोग उन नीति नियंताओं को कठघरे में खड़ा करते हैं, जिनकी अदूरदर्शिता के कारण आबादी पर अंकुश नहीं लगा और भारत आबादी के मामले में चीन से आगे निकल गया। भारत और चीन में अगर कोई अंतर था तो यह कि आजादी के बाद भारत ने जहां लोकतांत्रिक प्रक्रिया अपनाई, वहीं चीन ने एक पार्टी के शासन को अपनाया। भारत के राजनीतिज्ञों ने लोकतंत्र को अपने ही निजी हित में अधिक उपयोग किया और यह बहाना गढ़ा कि लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था में चीजें धीरे काम करती हैं। यह सही नहीं और इसका प्रमाण यह है कि कई लोकतांत्रिक देशों ने उल्लेखनीय प्रगति कर दिखाई है।
भारत आर्थिक तौर पर एक महाशक्ति बन सकता।

पिछले कुछ समय से यह विमर्श सामने आया है कि देश की युवा आबादी का सही तरीके से नियोजन किया जाए तो भारत आर्थिक तौर पर एक महाशक्ति बन सकता है। नरेन्द्र मोदी तो प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही युवा आबादी के डेमोग्रेफिक डिवीडेंड की बात करते आ रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी लगातार यह कहते रहे हैं कि हमारी युवा आबादी देश की आर्थिक प्रगति की गाथा लिखेगी। निःसंदेह ऐसा तभी संभव है, जब उसका सही तरह नियोजन किया जाएगा। मोदी सरकार युवा आबादी के नियोजन के लिए लगातार योजनाएं भी बना रही हैं। इन योजनाओं के सामने सबसे बड़ी चुनौती वह शिक्षा व्‍यवस्‍था है, जो पटरी से उतरी हुई है।

शिक्षा के आधारभूत ढांचे को ठीक करना होगा।

यह ठीक है कि मोदी सरकार एक नई शिक्षा नीति लेकर आई है, पर उसके नतीजे आने में समय लगेगा। आज स्थिति यह है कि कुछ चुनिंदा विश्‍वविदयालयों को छोड़कर बाकी सब जगह जो शिक्षा दी जा रही है, उससे हमारे युवा सक्षम नहीं बन पा रहे। वे उद्योग-व्यापार जगत की जरूरतों और उम्मीदों पर खरे नहीं उतर रहे। कौशल विकास के मामले में पिछली सरकारों की शिथिलता आर्थिक विकास के लिए एक चुनौती बनी हुई है। इस चुनौती से पार पाने में लंबा समय लग सकता है। इस चुनौती का सही तरह से सामना करने के लिए नई शिक्षा नीति को ढंग से लागू करने के साथ शिक्षा के आधारभूत ढांचे को ठीक करना होगा।

शोध की दिशा में बहुत काम करने की जरूरत है।

भले ही भारतीयों की मेधा की बात विश्व स्तर पर होती हो, लेकिन कुछ चुनिंदा मेधावी और सफल भारतीयों के आधार पर यह यह नहीं कहा जा सकता कि हमारे सभी युवा मेधावी हैं और उनकी मेधा का सही उपयोग हो रहा है। यह भी नहीं कहा जा सकता कि भारत ज्ञान का केंद्र बन रहा है। देश को ज्ञान का केंद्र बनाने के लिए शिक्षा और शोध की दिशा में बहुत काम करने की जरूरत है। शिक्षा और शोध की गुणवत्ता के मामले में भारत तमाम देशों से पीछे है। सरकारों को इस पर ध्यान देना होगा कि नौकरियों की आस में गांवों से शहर आ रहे युवा किस तरह अपने को इतना सक्षम बनाएं कि वे आसानी से रोजगार पा सकें।

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