भारत और रूस के बीच रुपये में व्यापार को लेकर चल रही बातचीत विफल रही है. महीनों तक चली बातचीत के बाद भी भारत रूस को अपने खजाने में रुपया रखने पर राजी नहीं कर पाया जिसके बाद द्विपक्षीय व्यापार को रुपये में निपटाने के प्रयासों को निलंबित कर दिया गया है.
इस मामले की सीधी जानकारी रखने वाले दो भारतीय अधिकारियों ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को यह जानकारी दी है. अधिकारियों ने कहा कि दोनों देशों के बीच रुपये में व्यापार के प्रयास असफल रहे हैं.
अब तक हुई बातचीत का नतीजा क्या ?
भारत सरकार के एक अन्य अधिकारी के अनुसार पिछले साल 24 फरवरी को यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद से रूस से भारत का आयात पांच अप्रैल तक बढ़कर 51.3 अरब डॉलर हो गया, जो पिछले साल 10.6 अरब डॉलर था. तेल भारत के आयात का एक बड़ा हिस्सा है, जो इस अवधि में बारह गुना बढ़ गया है.
भारत सरकार के अधिकारी ने मीडिया को बताया कि रूस की तरफ से रुपए में व्यापार करने की आनाकानी के बाद दोनों देशों ने विकल्प तलाशना शुरू कर दिया है, लेकिन अभी तक कोई समाधान नहीं मिला है.
यह रूस से सस्ता तेल और कोयला खरीदने वाले भारतीय आयातकों के लिए एक बड़ा झटका होगा. भारत के ये आयातक इस बात का इंतजार कर रहे थे कि भारत-रूस के बीच स्थायी रुपया भुगतान तंत्र स्थापित हो जाए जिससे उनकी मुद्रा रूपांतरण लागत कम हो.
भारत और रूस के बीच व्यापार घाटा बढ़ता जा रहा है. पहले भारत रूस से जितनी मात्रा में हथियारों की खरीद करता था, उतने ही मूल्य की अपनी चीजों को रूस को निर्यात करता था. लेकिन यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बाद से रूस से भारत का आयात 400 फीसद बढ़ गया है जबकि निर्यात लगभग 14 फीसद कम हो गया है. इस व्यापार घाटे को पाटने के लिए दोनों देशों ने रुपये में व्यापार के लिए बातचीत शुरू की थी लेकिन अब यह नाकाम हो गया है.
रूस के बैंकों में पड़े हैं भारत के अरबों रुपये
एक भारतीय अधिकारी ने बताया कि रूस का मानना है कि अगर भारत के साथ रुपये में भुगतान तंत्र को अपनाया जाए तो हर साल रूस के पास 40 अरब डॉलर से अधिक रुपया जमा हो जाएगा. उन्होंने कहा कि रूस का मानना है कि इतना ज्यादा रुपया जमा करना रूस के लिए किसी काम का नहीं है.
भारतीय रुपये को पूरी तरह से दूसरे देशों की मुद्रा में नहीं बदला जा सकता है. वैश्विक निर्यात में भारत की हिस्सेदारी महज 2 फीसद है जिस कारण देश भारतीय रुपये को अपने पास नहीं रखना चाहते हैं.
भारतीय रिजर्व बैंक ने जुलाई 2022 में रुपये में भुगतान तंत्र की घोषणा की थी. इसके बाद से भारत ने रूस से व्यापार के लिए कई बार रुपये में भुगतान किया भी है. इस कारण रूस के बैंकों में भारत के अरबों रुपये पड़े हुए हैं. रूस उस पैसे को अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकता क्योंकि पश्चिम ने उस पर प्रतिबंध लगाए हैं. ऐसे में उसके बैंकों में पड़े रुपये अपना मूल्य खोते जा रहे हैं. भारत और रूस ने स्थानीय मुद्रा में व्यापार को सुविधाजनक बनाने को लेकर बात की लेकिन दिशानिर्देशों को औपचारिक रूप नहीं दिया गया.
भारत रूस से अपने अधिकतर व्यापार के लिए डॉलर के भुगतान करता है. लेकिन अब संयुक्त अरब अमीरात की मुद्रा दिरहम में भी व्यापार के कुछ हिस्से का भुगतान किया जा रहा है. दूसरे भारतीय अधिकारी ने कहा कि रूस अपने बैंकों में रुपये नहीं रखना चाहता. वो चाहता है कि भारत उसे चीनी मुद्रा युआन या अन्य मुद्राओं में भुगतान करे.
‘रुपये में व्यापार तंत्र नहीं कर रहा काम’।
मामले से परिचित एक तीसरे सूत्र ने बताया, ‘हम रुपये में व्यापार के भुगतान को और आगे नहीं बढ़ाना चाहते हैं, यह तंत्र अभी काम नहीं कर रहा है. भारत ने बहुत कोशिश की कि रुपये में भुगतान तंत्र पर रूस से बात बन जाए, लेकिन सभी प्रयास असफल रहे हैं.
एक अन्य भारतीय अधिकारी ने बताया कि पिछले साल 24 फरवरी को यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद से, रूस से भारत का आयात 5 अप्रैल तक बढ़कर 51.3 अरब डॉलर हो गया है. पिछले साल की समान अवधि में यह आयात 10.6 अरब डॉलर था.
भारत के लिए कितना बड़ा सिरदर्द बन सकता है रूस का ये फैसला ।
भारत पिछले साल फरवरी से ही रूस से रुपये में सेटलमेंट की संभावना की तलाश रहा है. रूस ने भी भारत को इसके लिए प्रोत्साहित किया. लेकिन रुपये के सेटलमेंट को लेकर कुछ भी क्लियर नहीं हो पाया था, लेकिन उम्मीद जरूर थी. अब लावरोफ के बयान ने भारत की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है.
न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने एक स्रोत के हवाले से बताया कि रूस रुपये में सेटलमेंट को बढ़ावा नहीं देना चाहता. ऐसे में भारत की रुपये में सेटलमेंट की सभी कोशिशें नाकामयाब होती नजर आ रही हैं. वहीं रूस ने बड़े हथियार और दूसरे सैनिक हथियारों की सप्लाई पर भी रोक लगा दी है. क्योंकि रूस को पेमेंट करने का भारत के पास जो मैकेनिज्म है, उस पर अमेरिका ने प्रतिबंध लगा रखा है.
भारत को अभी रूस को हथियार और दूसरे सैनिक उपकरण की सप्लाई के बदले 2 अरब डॉलर देने हैं. लेकिन प्रतिबंध की वजह से ये पेमेंट पिछले एक साल से पूरा नहीं किया जा सका है.