विरोध करने का अधिकार लोकतंत्र में हर किसी को है और कहीं न कहीं अहम भी भूमिका निभाता है। राजधानी दिल्ली में स्थित जंतर-मंतर पूरे देश में काफी लोकप्रिय है। हो भी क्यूं न, पर्यटक स्थल की जगह की वजह अब ये धरना प्रदर्शन का अड्डे के नाम से लोकप्रिय हैं।
राजधानी के दिलों में बसा जंतर-मंतर खूबसूरती और आसपास की हरियाली से घिरा हुआ है। ये ऐतिहासिक जगह काफी समय से वैज्ञानिक उन्नति की मिसाल बनी हुई है। लेकिन आज की पीढ़ियों के लिए जंतर-मंतर एक धरना प्रदर्शन स्पॉट बन चुका है। बता दें, आज ही नहीं ये जगह तो काफी समय से प्रदर्शनों का साक्षी रही है, जंतर-मंतर ने तो देश की सत्ता और शासन दोनों को झुकने पर मजबूर कर दिया है। लेकिन क्या आप जानते हैं, जंतर-मंतर पर धरने का प्रदर्शन 28 साल पुराना है। लोकतंत्र की आवाज बनी इस जगह के बारे में चलिए आज हम आपको कुछ अहम जानकारी देते हैं।
कब हुआ था जंतर-मंतर पर पहले प्रदर्शन ।
आप भी जरूर ये बात सोचते होंगे, आखिर जंतर-मंतर पर पहले धरना प्रदर्शन कब हुआ था, तो इसकी भी कहानी बड़ी ही रोचक है। संसद भवन के पास होने की वजह से यहां हर समय विरोध प्रदर्शन या फिर आंदोलन चलता रहता है। जंतर-मंतर पर पहले प्रदर्श 1993 में DUSU के अध्यक्ष ने केंद्र सरकार के एक आदेश पर किया था। इसके बाद से ही, हजारों प्रदर्शन यहां होने लगे थे।
कब बनाया गया था जंतर-मंतर ।
दिल्ली के बीचों-बीच मौजूद जंतर-मंतर को साल 1724 में महाराजा जयसिंह द्वारा बनवाया गया था। ये एक खगोलीय वेधशाला भी है। इसके बनने के पीछे का भी एक कारण है, बता दें, मोहम्मद शाह के शासन काल में हिंदू और मुस्लिम खगोलशास्त्रियों के बीच ग्रहों की स्थिति को लेकर बहस छिड़ी, जिसे देखते हुए जय सिंह ने जंतर-मंतर का निर्माण करवा डाला। दिल्ली के अलावा, उन्होंने जयपुर, उज्जैन, मथुरा और वाराणसी में भी इस संरचना का निर्माण करवाया।
जंतर मंतर पर खिलाड़ी का प्रदर्शन जारी।
दिल्ली के जंतर-मंतर पर देश के पहलवानों को धरना देते हुए कई दिन बीतचुके हैं. पहलवानों ने अपना धरना प्रदर्शन जारी रखा है. उनका कहना है कि जब तक नयाय नहीं मिल जाता है वह इसी तरह धरने पर बैठे रहेंगे. 3 मई की देर रात प्रदर्शन कर रहे पहलवानों और दिल्ली पुलिस के बीच नोक-झोंक के बाद पहलवानों ने यह तक कह दिया था कि अगर अब उन्हें न्याय नहीं मिला तो वह पदक भी लौटा देंगे.
ऐसा ऐसा कहा जाता है किसान नेता के नेतृत्व में भारतीय किसान संघ के विरोध ने अक्टूबर, 1988 में सरकार को हिलाकर रख दिया था। उस समय राजधानी ने तब का सबसे बड़ा विरोध प्रदर्शन देखा था। इस दौरान हजारों आंदोलकारी किसानों और मवेशियों के साथ प्रदर्शन के लिए दिल्ली के बोट क्लब गए थे। मवेशियों की वजह से आसपास का इलाका पूरी तरह से गंदगी से भर गया था। इसके बाद सरकार ने एक कानून बनाया जिसमें उन्होंने बोट क्लब पर विरोध प्रदर्शन करने पर बैन लगा दिया। इसके बाद से ही जंतर-मंतर प्रदर्शनकारियों के लिए एक नई जगह बन गई है। बता दें, बोट क्लब से पहले दिल्ली में ोर्दर्शन अकबर रोड पर होते थे।