57 साल से ठाकरे परिवार की शिवसेना अब उनसे छिन गई है। केंद्रीय चुनाव आयोग ने शिवसेना पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह धनुष बाण एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली पार्टी को दिया गया है. कुछ दिन पहले चुनाव आयोग के सामने पार्टी और चुनाव चिन्ह पर दावे को लेकर सुनवाई हुई थी। चुनाव आयोग ने शुक्रवार को कहा कि पार्टी का नाम ‘शिवसेना’ और धनुष और तीर का पार्टी चिन्ह एकनाथ शिंदे गुट के पास रहेगा।
चुनाव आयोग का फैसला।
उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना गुट को झटका देते हुए चुनाव आयोग ने शिवसेना का नाम और चुनाव चिह्न ‘धनुष-बाण’ एकनाथ शिंदे गुट को दे दिया हैं। आयोग ने अपने फैसले में जहां शिंदे की अगुवाई वाले गुट को असली शिवसेना के रूप में मान्यता दी, वहीं उद्धव ठाकरे गुट को राज्य में विधानसभा उपचुनावों के पूरा होने तक ‘मशाल’ चुनाव चिह्न रखने की इजाजत दी।
एकनाथ शिंदे को मिले थे ज्यादा वोट
पिछले साल शिवसेना के 67 विधायकों में 40 विधायकों को तोड़कर बीजेपी के साथ सरकार बनाने वाले सीएम एकनाथ शिंदे ने बहुत बड़ी लड़ाई जीत ली। पार्टी के अधिकांश विधायक और सांसद शिंदे के साथ होने का तर्क उनके पक्ष में गया है।
चुनाव आयोग ने अपने आदेश में कहा कि शिंदे को 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में पार्टी के 76 फीसदी विजयी वोटों के साथ विधायकों का समर्थन प्राप्त है।
पार्टी लोकतंत्रिक ना होकर पारिवारिक बनकर रह गई।
चुनाव आयोग ने पाया है कि शिवसेना पार्टी द्वारा 2018 में पार्टी संविधान में किए गए बदलाव लोकतंत्र के अनुकूल नहीं हैं। बिना पार्टी चुनाव कराये पदाधिकारियों की नियुक्ति की गयी। इससे उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना ने चुनाव आयोग का विश्वास खो दिया था।
1966 में बनी थी शिवसेना
1966 में बाल ठाकरे ने शिवसेना का गठन किया था। मराठी लोगों के अधिकारों के संघर्ष के लिए इस पार्टी का गठन किया गया। शिवसेना के गठन से पहले बाल ठाकरे एक अंग्रेजी अखबार में कार्टूनिस्ट थे। उनके पिता ने मराठी बोलने वालों के लिए अलग राज्य की मांग को लेकर आंदोलन किया था।
1990 में शिवसेना ने पहली बार महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव लड़ा, जिसमें 183 में से पार्टी के 52 प्रत्याशियों को जीत मिली। इससे एक साल पहले 1989 में हुए लोकसभा चुनावों में पहली बार शिवसेना का कोई नेता लोकसभा पहुंचा।