नई दिल्लीः इन दिनों ज्ञानवापी का मामला देशभर में चर्चा का विषय बना हुआ है, जहां जिला अदालत के बाद पूजा-पाठ का कार्य शुरू हो चुका है. वाराणसी की एक अदालत द्वारा व्यास परिवार को ज्ञानवापी के तहखाना में पूजा करने का अधिकार दिए जाने के बाद, मुस्लिम पक्ष ने इस फैसले को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चुनौती दी.
हाई कोर्ट इस याचिका पर आज यानी 6 फरवरी को सुनवाई होगी. कोर्ट ज्ञानवापी परिसर स्थित व्यास जी तहखाना के तहखाने में पूजा पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करेगा. मुस्लिम पक्ष ने डीएम वाराणसी को रिसीवर नियुक्त करने के जिला जज के आदेश को भी चुनौती दी है. 31 जनवरी को वाराणसी डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के जज ने बेसमेंट में पूजा करने की इजाजत दे दी.हाई कोर्ट में याचिका मस्जिद इंतेजामिया कमेटी ने दायर की है. जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की एकल पीठ आज सुनवाई करेगी.
इस बीच, हिंदू पक्ष के याचिकाकर्ताओं और भक्तों ने व्यास का ‘तहखाना’ जहां प्रार्थना की जाती है, वहां घंटी और अन्य पूजा सामग्री स्थापित करने की मांग की है. हिंदू पक्ष के वकील सुधीर त्रिपाठी ने कहा कि डीएम की मंजूरी के बाद हम परिसर में घंटी लगाएंगे.
दूसरी ओर, श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के कोषाध्यक्ष गोविंद देव गिरि महाराज ने कहा कि अगर इन मंदिरों यानी ज्ञानवापी और कृष्ण जन्मभूमि को शांतिपूर्वक मुक्त कर दिया गया तो हिंदू समुदाय अन्य सभी चीजों को भूल जाएगा. उन्होंने मुस्लिम पक्ष से इन तीनों मंदिरों के शांतिपूर्ण समाधान की अपील भी की.
हिंदू पक्ष के वकील ने बताई बड़ी बात
ज्ञानवापी मामले में हिंदू पक्ष के वकील सुभाष नंदन चतुर्वेदी ने विश्वास जताया कि ज्ञानवापी आदेश को चुनौती देने वाली मस्जिद इंतेज़ामिया कमेटी द्वारा दायर याचिका निश्चित रूप से अदालत द्वारा खारिज कर दी जाएगी.
जानिए क्या है पूरा मामला
जानकारी के लिए बता दें कि हिंदू पक्ष ने अपनी याचिका में दावा किया है, “परिसर की दक्षिण दिशा में स्थित तहखाने में मूर्ति की पूजा होती थी. दिसंबर 1993 के बाद पुजारी श्री व्यास जी को ज्ञानवापी के बैरिकेड वाले क्षेत्र में घुसने से रोक दिया गया. इस वजह से तहखाने में होने वाले राग, भोग आदि संस्कार भी रुक गए.
हिंदू पक्ष का दावा है कि राज्य सरकार और ज़िला प्रशासन ने बिना किसी कारण तहखाने में पूजा पर रोक लगा दी थी. हिंदू पक्ष यह भी दावा करता है, “ब्रितानी शासनकाल में भी तहखाने पर व्यास जी के परिवार का कब्ज़ा था और उन्होंने दिसंबर 1993 तक वहां पूजा अर्चना की है.