भोजन में जीरा एक जरुरी मसाला है। पर क्या आपको पता है छोटा सा दिखने वाला जीरा आपको लाखो की कमाई दे सकता है। जी हां आप जीरे की खेती से कई गुना मुनाफा कमा सकते है। देश का 80 फीसदी से अधिक जीरा राजस्थान और गुजरात में उगाया जाता है। 5 एकड़ पर जीरे की खेती से 2 लाख रूपए की कमाई की जा सकती है।
जरुरी मसलों में से एक है जीरा।
यह दिखने में सोंफ की तरह ही होता है, लेकिन इसका रंग थोड़ा मटमैला किस्म का होता है। जीरे का इस्तेमाल कई रूपों में होता है। इसे कई तरह के व्यंजनों में खुशबू उत्पन्न करने के लिए काम लेते हैं। इसके अलावा जीरा अगर सब्जी या अन्य वेज-नॉनवेज डिश में नहीं डाला जाए तो उसका स्वाद कम हो जाता है। यही नहीं, जीरे का खाने में कई तरह से उपयोग करते हैं। इसे भूनकर छाछ, दही, लस्सी आदि में मिलाकर उपयोग में लाते हैं। इससे इनका स्वाद बढ़ जाता है। यही नहीं जीरे के सेवन से पेट संबंधित कई प्रकार की बीमारियों से छुटकारा मिल जाता है। जीरा स्वास्थ्य के लिए काफी लाभकारी माना गया है। यह एक ऐसी मसाला फसल है जिसकी देश-विदेश में मांग सदैव उच्च स्तर पर बनी रहती है।
जीरे की खेती से मुनाफा
जीरे की खेती में लगभग 30 से 35 हजार रुपये प्रति हेक्टयर का खर्च आता है। जीरे के दाने का 100 रुपये प्रति किलो भाव रहने पर 40 से 45 हजार रुपए प्रति हेक्टयर का शुद्ध लाभ प्राप्त किया जा सकता है। अगर किसान इसकी खेती पांच एकड़ की भूमि पर करें तो उसे दो से सवा दो लाख रुपये की कमाई की जा सकती है।
कैसे करे जीरे की खेती
जीरे की बुवाई 15 से 20 नवंबर के बीच करना उपयुक्त माना जाता है। जीरे की बुवाई के लिए एक हेक्टेयर खेत में 12 से 15 किलोग्राम की दर से बीजों की आवश्यकता होती हैं। बीजों की बुवाई से पहले जीरे के बीज को उपचारित करना बहुत जरूरी है। इसके बीजों के उपचार के लिए 4 ग्राम ट्राइकजोडरमाबेडी भी मिला सकते हैं। जीरे की बुवाई अधिकतर किसान छिडक़ाव विधि से की जाती है।
व्यावसायिक तौर पर जीरे की खेती के लिए जीरे की कई उन्नत किस्में जैसे आर जेड-19, आरजेड-209, जीसी-4, आरजेड-223 इत्यादि हैं। कृषि अनुसंधान विभाग द्वारा जीरे की कई उन्नत किस्में तैयार की गई हैं जिन्हें आप अपने क्षेत्र के अनुसार इसका खेती के लिए चयन कर सकते हैं। जलवायु के हिसाब से अधिक पैदावार लेने के लिए उगा सकते हैं। जीरे की इन किस्मों के पकने की अवधि 110 से 120 दिन तक की होती है। इन किस्मों की औसतन उपज 7 से 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
जीरे के बीजों की बुवाई बीज के रूप में की जाती है। इसके लिए छिडक़ाव और ड्रिल विधि का इस्तेमाल किया जाता है। जीरे की बुआई करने से पहले खेतों में क्यारी बना लें फिर उसमें बीज का छिडक़ाव कर दें। बीज छिडक़ने के बाद लोहे दंताली या हाथ से बीजों को मिट्टी में एक से डेढ़ सेमी नीचे दब दें, ताकि बीजों पर मिट्टी की हल्की परत चढ़ जाए। ध्यान रखें कि बीज जमीन में अधिक गहरे नहीं जा पाएं। इसके अलावा यदि आप ड्रिल विधि द्वारा बीजो की रोपाई करना चाहते है, तो उसके लिए आपको खेत में क्यारियों को तैयार कर लेना होता है। प्रत्येक क्यारी के मध्य एक फीट की दूरी रखी जाती है। पंक्तियों में बीजो की बुवाई 10 से 15 सेमी. की दूरी पर की जाती है। बुवाई के वक्त यह ध्यान रखें कि बीज मिट्टी से ठीक ढग़ से ढंक जाए।
जीरे के पौधों को सिंचाई की सामान्य जरूरत होती है। जीरे की फसल में पहली सिंचाई बीजों की बुवाई के तुरंत बाद कर दी जाती है। सिंचाई धीमे बहाव से हल्की मात्रा में करनी चाहिए। इसके बाद खेत की दूसरी सिंचाई बुवाई से 10 से 15 दिनों के अन्तराल में एवं तीसरी सिंचाई 20 से 25 दिन पर करनी चाहिए। जीरे के खेत को कुल 5 से 7 सिंचाई की आवश्यकता होती है। जीरे के खेत की सिंचाई करते समय यह ध्यान रखें की पानी का बहाव तेज न हो। तेज पानी के बहाव से पौधे उखडऩे का खतरा होता है।