जीत का डर ।दिखा बीजेपी के सर!!

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जीत का सवाल इस बार बीजेपी को दहला रहा है। बीजेपी किसी भी कीमत पर मध्यप्रदेश के अपने हाथ से निकलने नहीं देना चाहती। दिग्गजों ने सारी ताकत झोंक दी है। युवाओं और महिलाओं से लेकर सारे वर्गों के समीकरण साधने की भी पूरी कोशिश है, लेकिन कोई रिपोर्ट बीजेपी का फेवर नहीं कर रही। एक के बाद एक होने वाले इंटरनल सर्वे तो बीजेपी का पारा हाई कर ही रहे थे। अब संघ के माथे पर भी बल पढ़ने लगे हैं। क्योंकि, संघ की रिपोर्ट में और भी ज्यादा चौंकने वाले फैक्ट्स निकलकर सामने आए हैं।

पार्टी लाइन को भूलकर बीजेपी नतमस्तक होने को भी तैयार है

जीत के लिए बीजेपी हर तरह के पापड़ बेलने को तैयार है। मध्यप्रदेश पार्टी के लिए कितना अहम है इसका अंदाजा इसी बात से लगा लीजिए कि यहां पार्टी लाइन को दरकिनार कर बीजेपी नतमस्तक भी होने को तैयार है और हो भी चुकी है। प्रीतम लोधी इसका बड़ा उदाहरण है जिनकी वजह से चंबल और बुंदेलखंड में हालात खराब हो रहे थे। इसके अलावा युवाओं और महिलाओं पर सीएम शिवराज सिंह चौहान बड़ा दांव खेल ही चुके हैं।

कुछ दिन पहले हुए संघ के सर्वे ने टेंशन को और बढ़ा दिया है आदिवासी, एससी, एसटी और ओबीसी को पक्ष में लाने के लिए भी बड़े बड़े जतन हो रहे हैं। इसके बावजूद आंकड़े बीजेपी के पक्ष में जाने को तैयार नजर नहीं आ रहे। ये हालात तब हैं जब बीजेपी ने चुनावी तैयारियों के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। बीजेपी के सामने खड़ा विपक्ष यानी कांग्रेस अभी पूरी तरह खामोश नजर आ रही है। उन हालातों में बीजेपी के तकरीबन आधे विधायक सीट निकालते नजर नहीं आ रहे हैं। बीजेपी के इंटरनल सर्वे तो इस तरफ इशारा कर ही रहे थे। कुछ दिन पहले हुए संघ के सर्वे ने टेंशन को और बढ़ा दिया है।

अब की बार 200 पार दूर की बात है।

चुनावी जंग जीतने के लिए बीजेपी की तरीका सबसे अलग बीजेपी एक बड़ी और व्यापक रणनीति पर तो काम करती है। अलग-अलग वर्ग, तबके और क्षेत्र के हिसाब से माइक्रो लेवल की प्लानिंग में भी उतरती है। इसके अलावा सीटों की मौजूदा स्थिति और पुराने हालातों को ध्यान में रखकर माइक्रो से भी माइक्रो लेवल की प्लानिंग होती है। उस पर कार्यकर्ताओं का हुजूम, पुराना तजुर्बा और पूरी मशीनरी की ताकत भी जुटा दी जाती है। उसके बावजूद कोई रिपोर्ट बीजेपी को तसल्ली नहीं दे रही। अब की बार 200 पार तो दूर की बात है। कुछ मौजूदा विधायक ही सीट नहीं निकाल पा रहें। जिनकी गिनती तगड़ी है। यही बात संघ को भी परेशान कर रही है।

एक इंटरनल सर्वे ने संघ की नींद भी उड़ा दी है

अगर हम ये कहें कि बीजेपी पूरी गाड़ी है और संघ उसका इंजन तो कुछ गलत नहीं होगा। चुनावी मौसम में हर बार बीजेपी की गाड़ी को रफ्तार देने का काम संघ का इंजन ही करता है। इस बार प्रदेश का हाल देखकर बीजेपी का इंजन ही अटक गया है। हालांकि, ये इंजन दुरुस्त होने और रफ्तार पकड़ने में देर नहीं लगाएगा, ये भी तय माना जा सकता है। लेकिन ताजा हालात परेशान करने वाले हैं। एक इंटरनल सर्वे ने संघ की नींद भी उड़ा दी है। इस रिपोर्ट के मुताबिक मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के चालीस प्रतिशत से ज्यादा विधायकों का हाल बहुत बुरा है। इस रिपोर्ट के बाद बीजेपी और संघ में बैठकों का दौर जारी है। माना जा रहा है कि दिग्गजों के दौरों की संख्या भी इन्हीं रिपोर्ट्स के बाद बढ़ा दी गई है।

इस रिपोर्ट के बाद संघ के पदाधिकारी खुद मैदान में उतरने पर मजबूर हो गए हैं और मोर्चा संभाल रहे हैं। क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल खुद मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की अलग-अलग सीटों का दौरा कर रहे हैं। जमीनी हालात का जायजा ले रहे हैं। जिसके आधार पर नए सिरे से कमजोर सीटों के लिए प्लानिंग शुरू होगी। इस बीच बीजेपी के दिग्गजों के भी प्रदेश में दौरे शुरू हो चुके हैं। इन हालातों को देखते हुए ये कहा जा सकता है कि बीजेपी को अब ये अंदाजा हो चुका है कि अकेले एक नेता या रणनीति की बदौलत वो मध्यप्रदेश में सत्ता पर काबिज नहीं हो सकती।

बीजेपी की 2018 में गंवाई सीटें अब भी डेंजर जोन में हैं

टेंशन इतने पर ही कम नहीं होता । चालीस फीसदी विधायकों का हाल बुरा है और उन सीटों पर बदलाव तय है। इसके अलावा जो सीटें बीजेपी ने 2018 में गंवा थीं उनके हालात इस बार भी खराब है। इन सीटों को आंकाक्षी सीटें करार कर यहां संघ के नेताओं सहित सांसदों और विधायकों को भी एक्टिव कर दिया गया है। सबकी रिपोर्ट यही इशारा कर रही है कि अब भी कई सीटों डेंजर जोन में है।

नवंबर में तीन राज्यों के चुनाव हैं मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़। इसमें से सिर्फ मध्यप्रदेश में बीजेपी काबिज है। लेकिन ये सरकार भी बहुत खींचतान और जोड़तोड़ करके बनाई गई है। अब इसे 2023 में बनाए रखने की चुनौती साबित हो रहा है। विकास यात्रा के दौरान दिखी लोगों की नाराजगी से बीजेपी की स्थिति का अंदाजा लगाया ही जा सकता है। अब संघ की रिपोर्ट ने और भी टेंशन बढ़ा दिया है। डेंजर जोन से बाहर निकलने के लिए डैमेज कंट्रोल की कवायदें शुरू हो चुकी हैं। ये कोशिशें बीजेपी की आकांक्षाओं को पूरा कर सकेंगी या नहीं देखना दिलचस्प होगा।

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