हर साल जगन्नाथ रथ यात्रा आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को निकालती जाती है। इस यात्रा को लेकर अलग अलग धारणाएं हैं जिनमें से एक अनुसार इस दिन भगवान कृष्ण अपने बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ अपनी मौसी के घर जाते हैं। इस दौरान तीनों के लिए अलग अलग रथ तैयार किए जाते हैं।
20 जून को रथ यात्रा।
हिंदू कैलेंडर के अनुसार आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को पुरी में जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली जाती है। साल 2023 में 20 जून, मंगलवार के दिन को जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली जाएगी।
ये हैं प्रमुख रस्में
रथ यात्रा रास्ते में कई जगहों पर रुकते हुए जाती है। जहां देवता भक्तों को दर्शन देते हैं। रास्ते में भक्त फल, मिठाई और फूल जैसी चीजें भेंट करते हैं। रथ यात्रा को गुंडिचा मंदिर तक पहुंचने में 1 दिन लगता है और देवता यहां 7 दिनों तक रहते हैं। Jagannath Rath Yatra जब वापस आती है तो इस बहुदा यात्रा कहा जाता है। इस यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ का रथ मौसी मां मंदिर (देवता की चाची) में रुकता है। इस रथ यात्रा में शामिल होने वाले व्यक्ति को पहले खुद की शुद्धि करनी होती है और महोदधि की पवित्र नदी में डुबकी लगाते हैं।
नेत्र उत्सव मनाया जाएगा
108 घड़ा से पवित्र जल व चंदन के साथ भगवान जगन्नाथ को स्नान कराया जाएगा. नए वस्त्र धारण कराए जाएंगे. रोड़ी, चंदन, अक्षत व विभिन्न तरह के फूलों से पूजा-अर्चना होगी. विभिन्न मंत्रों के साथ हवन किया जाएगा. भोग व आरती होगी. ऐसी मान्यता है कि 108 घड़ा जल से स्नान के बाद भगवान ज़गन्नाथ बीमार हो जाते हैं. 14 दिनों तक भगवान एकांतवास में रहेंगे। 14 दिनों के एकांतवास के बाद 19 जून को भगवान जगन्नाथ का नेत्र उत्सव मनाया जाएगा।
जगन्नाथ रथ यात्रा से जुड़े तथ्य
रथ यात्रा में प्रयोग होने वाले रथों का निर्माण कार्य अक्षय तृतीया से प्रारंभ होता है। तीनों रथों में भगवान जगन्नाथ का रथ सबसे बड़ा होता है। इस पीले रंग के रथ को नंदीघोष या गरुध्वज कहा जाता है। रथ यात्रा में यह रथ सबसे पीछे होता है। सबसे आगे सुभद्रा जी का रथ होता है। इस नीले व लाल रंग के रथ को दर्पदलन या पद्म रथ कहते हैं। वहीं मध्य में बलराम जी का रथ चलता है। लाल व हरे रंग के रथ को तालध्वज कहते हैं।