बुड्ढों का देश जापानमालूम हो कि भारत और चीन जैसे देश जहां अपनी जनसंख्या घटाने की कोशिश कर रहे हैं तो फिर जापान को अपने घटती जनसंख्या को लेकर चिंता क्यों सत्ता रही है. दरअसल, जापान इस ट्रेंड के साथ बुद्धों का देश बनते चले जा रहा है. पान में ऐसे लोगों की संख्या तेजी से बढ़ी है, जो काम करने की उम्र पार कर चुके हैं, इसलिए वे पेंशन और सामाजिक सुरक्षा की योजनाओं पर आश्रित हैँ जिसका बोझ जापान की अर्थव्यवस्था पड़ रहा है. यहां जीवन प्रत्याशा दर इतना बढ़ गया है कि देश में 100 से अधिक उम्र वालों की संख्या डेढ़ हजार को पार कर चुकी है.
जापान की प्रजनन दर में गिरावट का मुख्य कारण कम युवतियों का विवाह होना है। जबकि 1970 के दशक के मध्य तक 25‒34 की अपनी चरम प्रजनन आयु में अविवाहित महिलाओं का अनुपात स्थिर था, 25-29 आयु वर्ग की एकल महिलाओं का अनुपात 1975 में 21% से बढ़कर 2020 में 66% हो गया 2024में अनुपात गिर गया हैं।।
देश की अर्थव्यवस्था पर भी होता हैं असर
किसी भी देश के लिए अपनी अर्थव्यवस्था की रफ़्तार को बनाए रखना उस स्थिति में बहुत मुश्किल हो जाता है, जहां आबादी का बड़ा हिस्सा रिटायर हो जाता है और कामकाजी आबादी की संख्या घट जाती है. वहां हेल्थ सर्विस और पेंशन सिस्टम अपनी क्षमता के सबसे ऊंचे पायदान को छू लेते हैं.
जापान इसी दिक्कत से जूझ रहा है. इसे देखते हुए प्रधानमंत्री किशिदा ने एलान किया कि वो जन्मदर को बढ़ावा देने के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रमों पर सरकार की ओर से ख़र्च होने वाली रकम को दोगुना कर रहे हैं. इसके जरिए बच्चों की परवरिश में मदद की जाएगी.
इसके मायने ये हैं कि इस क्षेत्र में सरकार का खर्च सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का करीब चार फ़ीसदी बढ़ जाएगा. जापान की सरकार पहले भी ऐसी रणनीतियां आजमा चुकी है लेकिन उन्हें मनचाहे नतीजे हासिल नहीं हुए हैं.
प्रधानमंत्री ने जाहिर की चिंता
प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा गिरते जनसंख्या को लेकर चिंता जाहिर की है. उन्होंने बताया कि बढ़ते जीवन प्रत्याशा और महंगी जीवन शैली से परेशान लोग ज्यादा बच्चा भी पैदा नहीं करना चाहते हैं जो भी एक चिंता का सबब है. उन्होंने घोषणा की की सरकार जल्द ही एक ऐसी एजेंसी बनाएगी जो इन मुद्दों पर ध्यान देगी और लोगों को अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित करेगी.
जापान में गिरते जनसंख्या दर सरकार के लिए चिंता का सबब बना हुआ है. स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों के अनुसार 2022 में जापान में कुल 7,99,728 शिशुओं ने जन्म लिया. जबकि इस दौरान मृत्यु दर 15 लाख 80 हजार से अधिक रही जो कि चौकाने वाला आकंड़ा है.
जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने अपने देश के लोगों को इसी अंदाज़ में आगाह किया. वो देश की जन्मदर में तेज़ी से आ रही कमी को लेकर बात कर रहे थे.
प्रधानमंत्री किशिदा ने जापान की जन्मदर में हुई ऐतिहासिक गिरावट पर चिंता जताई और कहा कि इसकी वजह से उनका देश एक समाज के तौर पर संतुलन बनाए रखने में नाकाम हो रहा है.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक जापान में बीते साल आठ लाख से कम बच्चे पैदा हुए. ऐसा सौ साल में पहली बार हुआ है कि किसी एक साल में इतने कम बच्चों का जन्म हुआ हो.
जापान में गिरते जनसंख्या दर सरकार के लिए चिंता का सबब बना हुआ है. स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों के अनुसार 2022 में जापान में कुल 7,99,728 शिशुओं ने जन्म लिया. जबकि इस दौरान मृत्यु दर 15 लाख 80 हजार से अधिक रही जो कि चौकाने वाला आकंड़ा है. मालूम हो कि ये पहली बार है जब जापान में 8 लाख से कम बच्चों ने जन्म लिया और मृत्यु इससे दोगुनी रही. लगातार जनसंख्या में गिरावट को रोकने की जापान सरकार की कोशिश कामयाब होते नहीं दिख रही है. 2022 के आंकड़ों ने जापान के नीति निर्माताओं की चिंता बढ़ा दी है.
जन्म से ज्यादा मृत्यु
जापान सरकार ने पिछले वर्ष का जन्म-मृत्यु दर का लेखा जोखा जारी कर इसमें भारी अंतर पर अपनी चिंता जाहिर की है. मंत्रालय के मुताबिक पिछले 40 वर्षों में ये पहली बार है कि देश में जन्मदर घटकर आधी हो गयी है, जबकि साल 1982 में देश में 15 से अधिक बच्चों ने जन्म लिया था. वहीं, मंत्रालय ने आगे बताया कि अगर द्वितीय विश्व युद्ध की बात हटा दें तो देश में कभी भी इतनी मृत्यु नहीं हुई थी. पिछले साल मृत्यु दर 15,80,000 रहा जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है. ये फासला बढ़ते ही जा रहा है. देश में प्रति महिला शिशु जन्म दर घटकर 1.3 रह गई है. जबकि स्थायी जनसंख्या के लिए ये कम से काम 2.1 होनी चाहिए. जापान की वर्तमान आबादी मात्र 12 करोड़ 55 लाख रह गई है.